मंगलवार, 27 अगस्त 2013

अच्युत केशवम

एक सुंदर भजन 

राधा की प्रीत


कृष्ण के साथ, राधा को सर्वोच्च देवी स्वीकार किया जाता है,
"यह एक जटिल संबंध है, क्योंकि भक्त `समान है फिर भी भिन्न है' भगवान से, और इसलिए मिलन की खुशी में वहां विरह का दर्द है. वास्तव में भक्ति का उच्चतम रूप, मिलन में नहीं होता बल्कि मिलन के बाद होता है, 'विरह के नए डर' में! राधा की विरह को दर्शाती छोटी सी रचना:-

कृष्णा तेरी मूरत में खोई हूँ ऐसे,
चँदा में खो जाए चकोर है जैसे!

तेरी मूरत में सारे जहाँ का प्यार है,
चकोर जैसे बिन चाँद के बेकरार है!

तू है मेरा चाँद चकोर हूँ मैं तेरी,
तेरे बिन क्या है जिंदगानी मेरी!

आँचल में छुपा ले ऐसे तू मुझे,
देख तू मुझको और देखूं मैं तुझे!
...___...

सोमवार, 26 अगस्त 2013

कृष्ण जन्माष्टमी भाग 2.

जन्माष्टमी व्रत :---
'जन्माष्टमी व्रत' एवं 'जयन्ती व्रत' ,कालनिर्णय ने दोनों को पृथक व्रत माना है, दोनों के निमित्त पृथक हैं (प्रथम तो कृष्णपक्ष की अष्टमी है और दूसरी रोहिणी से संयुक्त कृष्णपक्ष की अष्टमी), दोनों की ही विशेषताएँ पृथक हैं, क्योंकि जन्माष्टमी व्रत में शास्त्र में उपवास की व्यवस्था दी है और जयन्ती व्रत में उपवास, दान आदि की व्यवस्था है। इसके अतिरिक्त जन्माष्टमी व्रत नित्य है (क्योंकि इसके न करने से केवल पाप लगने की बात कही गयी है) और जयन्ती व्रत नित्य एवं काम्य दोनों ही है, क्योंकि उसमें इसके न करने से न केवल पाप की व्यवस्था है प्रत्युत करने से फल की प्राप्ति की बात भी कही गयी है।
जन्माष्टमी मनाने का समय :---
सभी पुराणों एवं जन्माष्टमी सम्बन्धी ग्रन्थों से स्पष्ट होता है कि कृष्णजन्म के सम्पादन का प्रमुख समय है 'श्रावण कृष्ण पक्ष की अष्टमी की अर्धरात्रि' (यदि पूर्णिमान्त होता है तो भाद्रपद मास में किया जाता है)। 
जन्माष्टमी व्रत में प्रमुख कृत्य :--- 
जन्माष्टमी व्रत में प्रमुख कृत्य है उपवास, कृष्ण पूजा, रात का जागरण, स्तोत्र पाठ एवं कृष्ण जीवन सम्बन्धी कथाएँ सुनना एवं पारण करना।
उद्यापन एवं पारण में अंतर :---
एकादशी एवं जन्माष्टमी जैसे व्रत जीवन भर किये जाते हैं। उनमें जब कभी व्रत किया जाता है तो पारण होता है, किन्तु जब कोई व्रत केवल एक सीमित काल तक ही करता है और उसे समाप्त कर लेता है तो उसकी परिसमाप्ति का अन्तिम कृत्य है उद्यापन।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव :---
  • देश भर के श्रद्धालु जन्माष्टमी पर्व को बड़े भव्य तरीक़े से एक महान पर्व के रूप में मनाते हैं।
  • सभी कृष्ण मन्दिरों में अति शोभावान महोत्सव मनाए जाते हैं।
  • विशेष रूप से यह महोत्सव वृन्दावन, मथुरा (उत्तर प्रदेश), द्वारका (गुजरात), गुरुवयूर (केरल), उडृपी (कर्नाटक) तथा इस्कॉन के मन्दिरों में होते हैं।
  • श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव सम्पूर्ण ब्रजमण्डल में, घर–घर में, मन्दिर–मन्दिर में मनाया जाता है।
  • अधिकतर लोग व्रत रखते हैं और रात को बारह बजे ही 'पंचामृत या फलाहार' ग्रहण करते हैं।
  • मथुरा के जन्मस्थान में विशेष आयोजन होता है। सवारी निकाली जाती है। दूसरे दिन नन्दोत्सव मन्दिरों में दधिकाँदों होता है।
  • फल, मिष्ठान, वस्त्र, बर्तन, खिलौने और रुपये लुटाए जाते हैं। जिन्हें प्रायः सभी श्रद्धालु लूटकर धन्य होते हैं।
  • गोकुल, नन्दगाँव, वृन्दावन आदि में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की बड़ी धूम–धाम होती है।
दुग्धाभिषेक मथुरा 
छबीले का छप्पन भोग :---
श्रीकृष्ण आजीवन सुख तथा विलास में रहे, इसलिए जन्माष्टमी को इतने शानदार ढंग से मनाया जाता है। इस दिन अनेक प्रकार के मिष्ठान बनाए जाते हैं। जैसे लड्डू, चकली, पायसम (खीर) इत्यादि। इसके अतिरिक्त दूध से बने पकवान, विशेष रूप से मक्खन (जो श्रीकृष्ण के बाल्यकाल का सबसे प्रिय भोजन था), श्रीकृष्ण को अर्पित किया जाता है। तरह–तरह के फल भी अर्पित किए जाते हैं। 
प्रभु के विग्रह की भव्य सज्जा :---
पूजा कक्ष में जहाँ श्रीकृष्ण का विग्रह विराजमान होता है, वहाँ पर आकर्षक रंगों की रंगोली चित्रित की जाती है। इस रंगोली को 'धान के भूसे' से बनाया जाता है। घर की चौखट से पूजाकक्ष तक छोटे–छोटे पाँवों के चित्र इसी सामग्री से बनाए जाते हैं। ये प्रतीकात्मक चिह्न भगवान श्रीकृष्ण के आने का संकेत देते हैं। मिट्टी के दीप जलाकर उन्हें घर के सामने रखा जाता है। बाल श्रीकृष्ण को एक झूले में भी रखा जाता है। पूजा का समग्र स्थान पुष्पों से सजाया जाता है।


ब्रज भूमि में जन्माष्टमी महोत्सव :---
ब्रजभूमि महोत्सव अनूठा व आश्चर्यजनक होता है।सबसे पवित्रतम स्थान तो मथुरा को ही माना जाता है, और मथुरा में भी एक सुन्दर मन्दिर को जिसमें ऐसा विश्वास है कि यही वह स्थान है, जहाँ पर श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था।इसे श्री कृष्ण जन्मभूमि मंदिर भी कहा जाता है |ऐसा अनुमान है कि सात लाख लोगों से भी अधिक श्रद्धालु मथुरा व आस–पास के इलाक़ों से इस स्थान पर पूजा–अर्चना के लिए आते हैं। इसी मंदिर के साथ एक दम एक मस्जिद की दीवार साँझा है जिसे मंदिर की छत्त से देखा जा सकता है इसलिए यहाँ जाने के लिए बहुत चेकिंग होती है कोई कैमरा या फ़ोन ले जाना सख्त मना है |
दही-हांडी समारोह :---
इसमें एक मिट्टी के बर्तन में दही, मक्खन, शहद, फल इत्यादि रख दिए जाते हैं। इस बर्तन को धरती से 30 – 40 फुट ऊपर टाँग दिया जाता है। युवा लड़के–लड़कियाँ इस पुरस्कार को पाने के लिए समारोह में हिस्सा लेते हैं। ऐसा करने के लिए युवा पुरुष एक–दूसरे के कन्धे पर चढ़कर पिरामिड सा बना लेते हैं। जिससे एक व्यक्ति आसानी से उस बर्तन को तोड़कर उसमें रखी सामग्री को प्राप्त कर लेता है। प्रायः रुपयों की लड़ी रस्से से बाँधी जाती है। इसी रस्से से वह बर्तन भी बाँधा जाता है। इस धनराशि को उन सभी सहयोगियों में बाँट दिया जाता है, जो उस मानव पिरामिड में भाग लेते हैं।

पूरे विश्व में जन्माष्टमी उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है सभी जगह कृष्ण की झाँकियो  से मंदिर सजे होते हैं कृष्ण को हिंडोले में डाल कर झूला झुलाया जाता है 12 बजते ही आतिशबाजी के बीच कृष्ण जन्म होता है फिर प्रसाद वितरण किया जाता है | 
जय श्री कृष्णा 


कृष्ण जन्माष्टमी भाग 1.

कृष्ण जन्माष्टमी भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव है। योगेश्वर कृष्ण के भगवद गीता के उपदेश अनादि काल से जनमानस के लिए जीवन दर्शन प्रस्तुत करते रहे हैं। जन्माष्टमी को भारत में हीं नहीं बल्कि विदेशों में बसे भारतीय भी पूरी आस्था व उल्लास से मनाते हैं। श्रीकृष्ण ने अपना अवतार भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि को अत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए मथुरा में लिया। चूंकि भगवान स्वयं इस दिन पृथ्वी पर अवतरित हुए थे अत: इस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। इसीलिए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर मथुरा नगरी भक्ति के रंगों से सराबोर हो उठती है।
जन्मोत्सव :---
भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव का दिन बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। कृष्ण जन्मभूमि पर देश–विदेश से लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती हें और पूरे दिन व्रत रखकर नर-नारी तथा बच्चे रात्रि 12 बजे मन्दिरों में अभिषेक होने पर पंचामृत ग्रहण कर व्रत खोलते हैं। कृष्ण जन्म स्थान के अलावा द्वारकाधीश, बिहारीजी एवं अन्य सभी मन्दिरों में इसका भव्य आयोजन होता हैं, जिनमें भारी भीड़ होती है।
श्रीकृष्ण का प्राकट्य उत्सव:---
  • भगवान श्रीकृष्ण ही थे, जिन्होंने अर्जुन को कायरता से वीरता, विषाद से प्रसाद की ओर जाने का दिव्य संदेश श्रीमदभगवदगीता के माध्यम से दिया।
  • कालिया नाग के फन पर नृत्य किया, विदुराणी का साग खाया और गोवर्धन पर्वत को उठाकर गिरिधारी कहलाये।
  • समय पड़ने पर उन्होंने दुर्योधन की जंघा पर भीम से प्रहार करवाया, शिशुपाल की गालियाँ सुनी, पर क्रोध आने पर सुदर्शन चक्र भी उठाया।
  • अर्जुन के सारथी बनकर उन्होंने पाण्डवों को महाभारत के संग्राम में जीत दिलवायी।
  • सोलह कलाओं से पूर्ण वह भगवान श्रीकृष्ण ही थे, जिन्होंने मित्र धर्म के निर्वाह के लिए ग़रीब सुदामा के पोटली के कच्चे चावलों को खाया और बदले में उन्हें राज्य दिया।
उन्हीं परमदयालु प्रभु के जन्म उत्सव को जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है।
विष्णु के आठवें अवतार :---
भगवान श्रीकृष्ण विष्णुजी के आठवें अवतार माने जाते हैं। यह श्रीविष्णु का सोलह कलाओं से पूर्ण भव्यतम अवतार है। श्रीकृष्ण का प्राकट्य आततायी कंस के कारागार में हुआ था। श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी की मध्यरात्रि को रोहिणी नक्षत्र में देवकी व श्रीवसुदेव के पुत्ररूप में हुआ था। 
कृष्ण जन्मभूमि, मथुरा:---
कृष्ण जन्म के समय घनघोर वर्षा हो रही थी। चारों तरफ़ घना अंधकार छाया हुआ था। श्रीकृष्ण का अवतरण होते ही वसुदेव–देवकी की बेड़ियाँ खुल गईं, कारागार के द्वार स्वयं ही खुल गए, पहरेदार गहरी निद्रा में सो गए। वसुदेव किसी तरह श्रीकृष्ण को उफनती यमुना के पार गोकुल में अपने मित्र नन्दगोप के घर ले गए। वहाँ पर नन्द की पत्नी यशोदा को भी एक कन्या उत्पन्न हुई थी। वसुदेव श्रीकृष्ण को यशोदा के पास सुलाकर उस कन्या को ले गए। कंस ने उस कन्या को पटककर मार डालना चाहा। किन्तु वह इस कार्य में असफल ही रहा। श्रीकृष्ण का लालन–पालन यशोदा व नन्द ने किया। श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव का नाम ही जन्माष्टमी है। गोकुल में यह त्योहार 'गोकुलाष्टमी' के नाम से मनाया जाता है।


कृष्ण जन्मभूमि मथुरा 


शास्त्रों के अनुसार :---
श्रावण कृष्ण पक्ष की अष्टमी को कृष्ण जन्माष्टमी या जन्माष्टमी व्रत एवं उत्सव प्रचलित है, जो भारत में सर्वत्र मनाया जाता है और सभी व्रतों एवं उत्सवों में श्रेष्ठ माना जाता है। कुछ पुराणों में ऐसा आया है कि यह भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। इसकी व्याख्या इस प्रकार है कि 'पौराणक वचनों में मास पूर्णिमान्त है तथा इन मासों में कृष्ण पक्ष प्रथम पक्ष है।'
  •  पद्म पुराण , मत्स्य पुराण , अग्नि पुराण में कृष्ण जन्माष्टमी के माहात्म्य का विशिष्ट उल्लेख है।
  • छान्दोग्योपनिषद में आया है कि कृष्ण देवकी पुत्र ने घोर आंगिर से शिक्षाएँ ग्रहण कीं। कृष्ण नाम के एक वैदिक कवि थे, जिन्होंने अश्विनों से प्रार्थना की है 
  • अनुक्रमणी ने ऋग्वेद को कृष्ण आंगिरस का माना है।
  • जैन परम्पराओं में कृष्ण 22वें तीर्थकर नेमिनाथ के समकालीन माने गये हैं और जैनों के प्राक्-इतिहास के 63 महापुरुषों के विवरण में लगभग एक तिहाई भाग कृष्ण के सम्बन्ध में ही है।
  • महाभारत में कृष्ण जीवन भरपूर हैं। महाभारत में वे यादव राजकुमार कहे गये हैं, वे पाण्डवों के सबसे गहरे मित्र थे, बड़े भारी योद्धा थे, राजनीतिज्ञ एवं दार्शनिक थे। । महाभारत शान्ति पर्व, द्रोण पर्व; कर्ण पर्व; वन पर्व; भीष्म पर्व। युधिष्ठिर, द्रौपदी एवं भीष्म ने कृष्ण के विषय में प्रशंसा के गान किये हैं। हरिवंश, विष्णु, वायु, भागवत एवं ब्रह्मवैवर्त पुराण में कृष्ण लीलाओं का वर्णन है जो महाभारत में नहीं पाया जाता है।
  • पाणिनि से प्रकट होता है कि इनके काल में कुछ लोग 'वासुदेवक' एवं 'अर्जुनक' भी थे, जिनका अर्थ है क्रम से वासुदेव एवं अर्जुन के भक्त।
  • पतंजलि के महाभाष्य के वार्तिकों में कृष्ण सम्बन्धी व्यक्तियों एवं घटनाओं की ओर संकेत है, यथा वार्तिक संहिता में कंस तथा बलि के नाम; वार्तिक संहिता में 'गोविन्द'; एवं पाणिनी के वार्तिक में वासुदेव एवं कृष्ण। पंतजलि में 'सत्यभामा' को 'भामा' भी कहा गया है। 'वासुदेववर्ग्य:' , ऋष्यन्धकवृष्णिकुरुभ्यश्च' में, उग्रसेन को अंधक कहा गया है एवं वासुदेव तथा बलदेव को विष्णु कहा गया है, आदि शब्द आये हैं।
  • अधिकांश विद्वानों ने पंतजलि को ई. पू. दूसरी शताब्दी का माना है। कृष्ण कथाएँ इसके बहुत पहले की हैं। आदि पर्व एवं सभा पर्व  में कृष्ण को वासुदेव एवं परमब्रह्म एवं विश्व का मूल कहा गया है।
  • ई. पू. दूसरी या पहली शताब्दी के घोसुण्डी अभिलेख एवं इण्डियन ऐण्टीक्वेरी, में कृष्ण को 'भागवत एवं सर्वेश्वर' कहा गया है। यही बात नागाघाट अभिलेखों, ई. पू. 200 ई. में भी है। बेसनगर के 'गरुणध्वज' अभिलेख में वासुदेव को 'देव-देव' कहा गया है। ये प्रमाण सिद्ध करते हैं कि ई. पू. 500 के लगभग उत्तरी एवं मध्य भारत में वासुदेव की पूजा प्रचलित थी।
  • श्री आर. जी. भण्डारकर कृत 'वैष्णविज्म, शैविज्म', जहाँ पर वैष्णव सम्प्रदाय एवं इसकी प्राचीनता के विषय में विवेचन उपस्थित किया गया है। यह आश्चर्यजनक है कि कृष्ण जन्माष्टमी पर लिखे गये मध्यकालीन ग्रन्थों में भविष्य, भविष्योत्तर, स्कन्द, विष्णुधर्मोत्तर, नारदीय एवं ब्रह्म वैवर्त पुराणों से उद्धरण तो लिये हैं, किन्तु उन्होंने उस भागवत पुराण को अछूता छोड़ रखा है जो पश्चात्कालीन मध्य एवं वर्तमानकालीन वैष्णवों का 'वेद' माना जाता है। भागवत में कृष्ण जन्म का विवरण संदिग्ध एवं साधारण है। वहाँ पर ऐसा आया है कि समय काल सर्वगुणसम्पन्न एवं शोभन था, दिशाएँ स्वच्छ एवं गगन निर्मल एवं उडुगण युक्त था, वायु सुखस्पर्शी एवं गंधवाही था और जब जनार्दन ने देवकी के गर्भ से जन्म लिया तो अर्धरात्रि थी तथा अन्धकार ने सबको ढक लिया था।
  • भविष्योत्तर पुराण में कृष्ण द्वारा 'कृष्णजन्माष्टमी व्रत' के बारे में युधिष्ठिर से स्वयं कहलाया गया है–'मैं वासुदेव एवं देवकी से भाद्र कृष्ण अष्टमी को उत्पन्न हुआ था, जबकि सूर्य सिंह राशि में था, चन्द्र वृषभ राशि में था और नक्षत्र रोहिणी था' जब श्रावण के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र होता है तो वह तिथि जयन्ती कहलाती है, उस दिन उपवास करने से सभी पाप जो बचपन, युवावस्था, वृद्धावस्था एवं बहुत से पूर्वजन्मों में हुए रहते हैं, कट जाते हैं। इसका फल यह है कि यदि श्रावण कृष्णपक्ष की अष्टमी को रोहिणी हो तो न यह केवल जन्माष्टमी होती है, किन्तु जब श्रावण की कृष्णाष्टमी से रोहिणी संयुक्त हो जाती है तो जयन्ती होती है।
कृष्ण जन्माष्टमी भाग 2. क्रमशः ----

रविवार, 25 अगस्त 2013

मुल्तान ज्योत महोत्सव हरिद्वार

हरिद्वार यात्रा का वृतांत फिर कभी लिखती हूँ ,अभी एक ख़ास उत्सव पर रौशनी डालना चाहती हूँ,उससे पहले हरिद्वार का एक संक्षिप्त सा परिचय 
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, हरिद्वार वह स्थान है जहाँ अमृत की कुछ बूँदें भूल से घडे से गिर गयीं जब खगोलीय पक्षी गरुड़ उस घडे को समुद्र मंथन के बाद ले जा रहे थे। चार स्थानों पर अमृत की बूंदें गिरीं, और ये स्थान हैं:- उज्जैन, हरिद्वार, नासिक, और प्रयाग| 
वह स्थान जहाँ पर अमृत की बूंदें गिरी थी उसे हर-की-पौडी पर ब्रह्म कुंड माना जाता है जिसका शाब्दिक अर्थ है 'ईश्वर के पवित्र पग'। हर-की-पौडी, हरिद्वार के सबसे पवित्र घाट माना जाता है और पूरे भारत से भक्तों और तीर्थयात्रियों के जत्थे त्योहारों या पवित्र दिवसों के अवसर पर स्नान करने के लिए यहाँ आते हैं। यहाँ स्नान करना मोक्ष प्राप्त करने के लिए आवश्यक माना जाता है।
हम सुबह 6.30 पर दिल्ली से चलकर दोपहर 1.30 बजे तक हरिद्वार पहुँचगए थे क्योंकि हर की पौड़ी की तरफ जाने वाले सारे रास्ते वाहनों के लिए बंद कर दिए जाते हैं इसलिए भीमगोड़ा रोड पर ही हमने एक दिन के लिए एक होटल ले लिया था यहाँ जाकर हमने अल्प विश्राम किया और फिर सब चल पड़े हर की पौड़ी की तरफ गंगा में डुबकी लगाने |
हर की पौड़ी  :---
यह स्थान भारत के सबसे पवित्र घाटों में एक है। कहा जाता है कि यह घाट विक्रमादित्य ने अपने भाई भतृहरि की याद में बनवाया था। इस घाट को 'ब्रह्मकुण्ड' के नाम से भी जाना जाता है। शाम के वक़्त यहाँ महाआरती आयोजित की जाती है। गंगा नदी में बहते असंख्य सुनहरे दीपों की आभा यहाँ बेहद आकर्षक लगती है। गंगा पूरे उफान पर थी और श्रद्धालुओं के हौंसले भी बुलंद थे , सब प्रवाह की परवाह किये बिना ,डुबकी लगा लेना चाहते थे| एक और बात जो सामने आई जब हर की पौड़ी की सफाई की जाती है तो सब कूड़ा पाइप लगाकर गंगा जी में बहा दिया जाता है जिसमें दूध की थैली ,फूलों वाली थैली आदि मुख्यता हैं ,जोकि रोका जाना चाहिए ताकि प्रदूषण को रोका जा सके |
हर की पौड़ी 


महिला घाट :---
हर की पौड़ी पर एक महिला घाट है ,हर की पौड़ी के नवनिर्माण के बाद इसका उद्घाटन माननीय प्रधानमंत्री राजीवगांधी द्वारा 2 अप्रैल, 1986 में कृष्ण अष्टमी वाले दिन बुद्धवार को किया था | जिसकी तरफ प्रबंधकों का ध्यान बिल्कुल भी नहीं है ,वैसे तो अन्दर जाकर कोई भी नहा नहीं सकता है वहां की तस्वीरें आप तक पहुंचाती हूँ |जैसा की वहां बोर्ड लगा है निशुल्क व्यवस्था है पर वास्तव में अन्दर घुसते ही वहां बैठी सेविकाएँ आपको अपने तरफ बुलाती हैं कि सामान उनके पास रखा जाए ताकि उनको जाती बार कुछ धनराशि दे दी जाए |


महिला घाट अन्दर से 

              वैसे तो हरिद्वार में पूरा वर्ष अनेकों धार्मिक उत्सव मनाये जाते हैं  और यहाँ पर काफी समय से जाना होता ही रहा है ,लेकिन आज जिस उत्सव का जिक्र करने जा रही हूँ वो है ''मुल्तान ज्योत महोत्सव '' जो देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ इस बार की हरिद्वार यात्रा पर भी |
                               103वां मुल्तान ज्योत महोत्सव 
परिचय :-----
मुल्तान ज्योत महोत्सव:--     भारत में पुरी रथ यात्रा, कुंभ का मेला व हरिद्वार में कावंड़ के बाद हरिद्वार निवासी इस महोत्सव की विशेष प्रतीक्षा में रहते है। महोत्सव में भाग लेने वाले लाखों श्रद्धालुओं का भव्य स्वागत किया जाता है।इस वर्ष 103वां मुल्तान ज्योत महोत्सव 11 अगस्त, 2013 रविवार को बड़ी धूम धाम से मनाया गया 
इतिहास :---
मुल्तान जोत महोत्सव का आयोजन वर्ष 1911 में भक्त रूपचंद द्वारा पाकिस्तान में बसे मुल्तान से पैदल चलकर समाज के भाईचारे व शांति की कामना को लेकर हरिद्वार में गंगा मैया को ज्योति अर्पित की थी परम्परानुसार प्रतिवर्ष बड़े पैमाने पर भव्य आयोजन मनाया जाता रहा है।
 महोत्सव :---
                  श्रावण मास की तेरस को प्रतिवर्ष 'अखिल भारतीय मुल्तान जोत संगठन की ओर से 'गंगा हरिद्वार में 'ज्योत महोत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। डा. महेन्द्र नागपाल इस संगठन के 'अध्यक्ष है। समस्त भारत ही नहीं विदेशों से भी श्रद्धालु इसमें भाग लेते हैं। अखिल भारतीय मुल्तान युवा संगठन की ओर से समस्त अतिथियों के हरिद्वार में रहने व खाने-पीने की व्यवस्था नि:शुल्क की जाती है। तीन दिवसीय कार्यक्रम में सारे हरिद्वार को दुल्हन की तरह खूब सजाया जाता है, शहर में झांकियां निकाली जाती हैं। गंगा मैया का दूध से अभिषेक किया जाता है 'हर की पौड़ी पर अन्य कार्यक्रमों के साथ-साथ ज्योति प्रज्वलित व 'गंगा मैया की आरती की जाती है। सारे हरिद्वार की छटा बहुत ही मनोरम व अनूठी होती है।
             इस आयोजन में इस वर्ष जोत महोत्सव में भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव वरूण गांधी, उत्तरी दिल्ली नगर निगम के महापौर आजाद सिंह, अध्यक्ष रामकिशन सिंघल, जगदीश मुखी, भाजपा के राष्ट्रीय मंत्री सुश्री आरती मेहरा, वाणी त्रिपाठी, विजय शर्मा, प्रवेश वर्मा, पूर्व विधायक विजय जौली, महाभारत सीरियल के टीवी कलाकार प्रवीन कुमार, विनोद बजाज आदि ने भाग लिया |
             गंगा में हर की पौड़ी पर डुबकी लगाने के बाद हम वापिस होटल पहुँच गए वहां कुछ चाय नाश्ता लेकर हम चप्पलें खरीदने निकल पड़े क्योंकि यहाँ चप्पलें सस्ती के इलावा मजबूत भी मिलती हैं इसके बाद थोडा विश्राम करने लगे |तभी बैंड बाजे की आवाज आने से हम उठ कर बाहर आ गए क्योंकि झांकियां निकलनी शुरू हो चुकी थीं जो सूखी नदी से शुरू होकर हर की पौड़ी तक जाती हैं ,सभी राज्यों से अलग अलग समुदाय इस महोत्सव के लिए आते हैं जिसमें पानीपत और करनाल वालों की ज्योत देखने वाली होती है वे अपनी अपनी ज्योत जो तीन दिन तक अनवरत जलती है और फिर ज्योत को गंगा में अर्पित कर दिया जाता है यह सिलसिला रात 10..11  बजे तक चलता है कुछ झाँकियो की तस्वीरें आप तक पहुंचाती हूँ |



                रात्रि भोजन करने के बाद हम दोबारा हर की पौड़ी पर गए क्योंकि ज्योत प्रवाह होते देखने का मन था ,क्योंकि भीम गोडा रोड से आजकल बैटरी रिक्शा चल पड़े हैं इसलिए दस दस रुपये में आप सुविधा से आ जा सकते हैं |
करनाल वालों की ज्योत 

ज्योत सभी भिन्न भिन्न प्रकार की बनवाते है किसी की किश्तीनुमा ज्योत और किसी की बतख बनी होती है ,थर्मो कोल  की बनी ज्योत देखने में बहुत सुंदर लगती है ज्योत प्रवाह की एक विडियो नीचे दी गई है |
ज्योत प्रवाह की विडियो 

ज्योत प्रवाह के बाद हम वापिस होटल चले गए |सारे दिन की थकान के बाद सुकून से सो गए| सुबह उठते ही फिर एक बार हर की पौड़ी पर पहुँच गए स्नान करने के लिए ,जल्दी से डुबकी लगाकर और ज्योत प्रवाह कर बाहर आए |यहाँ पर सुबह से ही हवन शुरू हो जाता है यहाँ कोई भी किसी भी प्रकार की पूजा या अनुष्ठान वहां  बैठे पुरोहितों से करवा सकते हैं | इसके बाद कुछ वहीँ पर स्थित मंदिर देखे |
हर की पौड़ी पर हवन 

जूता घर की अव्यवस्था 
जूता घर :---
जूता घर जो हर की पौड़ी पर दोनों तरफ से आने पर मिलते हैं ,उसमें अगर भीड़ हो जाए तो कोई उचित प्रबंध मुझे नजर नहीं आया कम लोग भी धक्का मुक्की कर रहे थे | यहाँ से निवृत होकर हमने मोहन जी पूरी वाले से आलू पूरी का नाश्ता किया जो वहीँ पर ही गरम गरम खाने का अपना ही  एक आनंद है |हम फिर वापिस होटल आ गए क्योंकि आगे हमें मसूरी के लिए निकलना था |
मिलते हैं फिर एक और यात्रा वृतांत के साथ शुभविदा ....

शनिवार, 24 अगस्त 2013

सुनो गुज़ारिश बांकेबिहारी


सोने जैसा रूप है तेरा,
तुम पर जायूं मैं वारी
अब तो दर्श दिखाओ
ओ मेरे गिरिधारी|

सुन्दर छवि है तेरी
कजरारे हैं तेरे नैन
कब से राह निहारूं
तुम बिन मैं बेचैन|

गोकुल हुआ दीवाना
घर बार है सबका छूटा
इंसान हो तुम या देवा
यह भ्रम भी सबका टूटा|

नंदलाल कहूँ, कन्हैया कहूँ
कृष्ण कहूँ या कहूँ गिरिधारी
तुम ही करोगे पार यह नैया 
सुनो गुज़ारिश बांकेबिहारी
__________



बुधवार, 21 अगस्त 2013

रक्षाबंधन

हिन्दू कैलेंडर के अनुसार श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है। इसे आमतौर पर भाई-बहनों का पर्व मानते हैं लेकिन, अलग-अलग स्थानों एवं लोक परम्परा के अनुसार अलग-अलग रूप में रक्षाबंधन का पर्व मानते हैं। 
वैसे इस पर्व का संबंध रक्षा से है। जो भी आपकी रक्षा करने वाला है उसके प्रति आभार दर्शाने के लिए आप उसे रक्षासूत्र बांध सकते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने रक्षा सूत्र के विषय में युधिष्ठिर से कहा था कि रक्षाबंधन का त्योहार अपनी सेना के साथ मनाओ इससे पाण्डवों एवं उनकी सेना की रक्षा होगी। श्रीकृष्ण ने यह भी कहा था कि रक्षा सूत्र में अद्भुत शक्ति होती है। रक्षाबंधन से सम्बन्धित इस प्रकार की अनेकों कथाएं हैं।

रक्षा बंधन पर्व मनाने की विधि :--- 
रक्षा बंधन के दिन सुबह भाई-बहन स्नान करके भगवान की पूजा करते हैं। इसके बाद रोली, अक्षत, कुंमकुंम एवं दीप जलकर थाल सजाते हैं। इस थाल में रंग-बिरंगी राखियों को रखकर उसकी पूजा करते हैं फिर बहनें भाइयों के माथे पर कुंमकुंम, रोली एवं अक्षत से तिलक करती हैं। 
इसके बाद भाई की दाईं कलाई पर रेशम की डोरी से बनी राखी बांधती हैं और मिठाई से भाई का मुंह मीठा कराती हैं। राखी बंधवाने के बाद भाई बहन को रक्षा का आशीर्वाद एवं उपहार व धन देता है। बहनें राखी बांधते समय भाई की लम्बी उम्र एवं सुख तथा उन्नति की कामना करती है।

रक्षाबंधन का मंत्र :----
येन बद्धो बलि: राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वामभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥

रक्षाबंधन का धार्मिक महत्व :----
भाई बहनों के अलावा पुरोहित भी अपने यजमान को राखी बांधते हैं और यजमान अपने पुरोहित को। इस प्रकार राखी बंधकर दोनों एक दूसरे के कल्याण एवं उन्नति की कामना करते हैं। प्रकृति भी जीवन के रक्षक हैं इसलिए रक्षाबंधन के दिन कई स्थानों पर वृक्षों को भी राखी बांधा जाता है। ईश्वर संसार के रचयिता एवं पालन करने वाले हैं अतः इन्हें रक्षा सूत्र अवश्य बांधना चाहिए। 

रक्षाबंधन की कथा :---
रक्षाबंधन कब प्रारम्भ हुआ इसके विषय में कोई निश्चित कथा नहीं है लेकिन जैसा कि भविष्य पुराण में लिखा है, उसके अनुसार सबसे पहले इन्द्र की पत्नी ने देवराज इन्द्र को देवासुर संग्राम में असुरों पर विजय पाने के लिए मंत्र से सिद्ध करके रक्षा सूत्र बंधा था। इससे सूत्र की शक्ति से देवराज युद्ध में विजयी हुए। शिशुपाल के वध के समय भगवान कृष्ण की उंगली कट गई थी तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी का आंचल फाड़कर कृष्ण की उंगली पर बांध दिया। इस दिन सावन पूर्णिमा की तिथि थी। 
भगवान श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को वचन दिया कि समय आने पर वह आंचल के एक-एक सूत का कर्ज उतारेंगे। द्रौपदी के चिरहरण के समय श्रीकृष्ण ने इसी वचन को निभाया। 

ऐतिहासिक प्रसंग :---
आधुनिक समय में राजपूत रानी कर्मावती की कहानी काफी प्रचलित है। राजपूत रानी ने अपने राज्य की रक्षा के लिए मुगल शासक हुमायूं को राखी भेजी। हुमायूं ने राजपूत रानी को बहन मानकर राखी की लाज रखी और उनके राज्य को बहादुर शाह जफ़र से बचाया। 

साहित्यिक प्रसंग :---
सबसे अधिक महत्वपूर्ण है हरिकृष्ण प्रेमी का ऐतिहासिक नाटक रक्षाबन्धन जिसका 1991 में 18वाँ संस्करण प्रकाशित हो चुका है। मराठी में रामराव सुभानराव बर्गे ने भी एक नाटक की रचना की जिसका शीर्षक है राखी ऊर्फ रक्षाबन्धन। पचास और साठ के दशक में रक्षाबन्धन हिंदी फ़िल्मों का लोकप्रिय विषय बना रहा। ना सिर्फ़ 'राखी' नाम से बल्कि 'रक्षाबन्धन' नाम से भी कई फ़िल्में बनायीं गयीं। 'राखी' नाम से दो बार फ़िल्‍म बनी, एक बार सन 1949 में, दूसरी बार सन 1962 में, सन 62 में आई फ़िल्‍म को ए. भीमसिंह ने बनाया था, राजेंद्र कृष्‍ण ने शीर्षक गीत लिखा था- "राखी धागों का त्‍यौहार"। सन 1972 में एस.एम.सागर ने फ़िल्‍म बनायी थी 'राखी और हथकड़ी' सन 1976 में राधाकान्त शर्मा ने फ़िल्‍म बनाई 'राखी और राइफल'।

सरकारी प्रबंध :---
भारत सरकार के डाक-तार विभाग द्वारा इस अवसर पर दस रुपए वाले आकर्षक लिफाफों की बिक्री की जाती हैं। लिफाफे की कीमत 5 रुपए और 5 रुपए डाक का शुल्क। इसमें राखी के त्योहार पर बहनें, भाई को मात्र पाँच रुपये में एक साथ तीन-चार राखियाँ तक भेज सकती हैं। डाक विभाग की ओर से बहनों को दिये इस तोहफे के तहत 50 ग्राम वजन तक राखी का लिफाफा मात्र पाँच रुपये में भेजा जा सकता है जबकि सामान्य 20 ग्राम के लिफाफे में एक ही राखी भेजी जा सकती है। यह सुविधा रक्षाबन्धन तक ही उपलब्ध रहती है। रक्षाबन्धन के अवसर पर बरसात के मौसम का ध्यान रखते हुए डाक-तार विभाग ने 2007 से बारिश से ख़राब न होने वाले वाटरप्रूफ लिफाफे भी उपलब्ध कराये हैं।

राखी और आधुनिक माध्यम :---
आज के आधुनिक तकनीकी युग एवं सूचना सम्प्रेषण युग का प्रभाव राखी जैसे त्योहार पर भी पड़ा है। अभी भी भारत या अन्य देशों में हैं। इण्टरनेट के आने के बाद कई सारी ई-कॉमर्स साइट खुल गयी हैं जो ऑनलाइन आर्डर लेकर राखी दिये गये पते पर पहुँचाती है।
                        ...............................................................

शुक्रवार, 9 अगस्त 2013

हरियाली तीज

असल में हर त्योहार या उत्सव को मनाने के पीछे के पारंपरिक तथा सांस्कृतिक कारणों के अलावा एक और कारण होता है, मानवीय भावनाओं का। चूँकि प्रकृति मनुष्य को जीवन देती है, जल, नभ और थल मिलकर उसके जीवन को सुंदर बनाते हैं और जीवनयापन के अनगिनत स्रोत उसे उपलब्ध करवाते हैं। इसी विश्वास और श्रद्धा के साथ प्रकृति से जुड़े तमाम त्योहार तथा दिवस मनाए जाते हैं। 
      वृक्षों, फसलों, नदियों तथा पशु-पक्षियों को पूजा जाता है, उनकी आराधना की जाती है। ताकि समृद्धि के ये सूचक हम पर अपनी कृपा सदैव बनाए रखें। हरियाली तीज को भी हम इसी कड़ी में रख सकते हैं।श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को श्रावणी तीज कहते हैं। जनमानस में यह हरियाली तीज के नाम से जानी जाती है। यह मुख्यत: स्त्रियों का त्योहार है। इस समय जब प्रकृति चारों तरफ हरियाली की चादर सी बिछा देती है तो प्रकृति की इस छटा को देखकर मन पुलकित होकर नाच उठता है। जगह-जगह झूले पड़ते हैं। स्त्रियों के समूह गीत गा-गाकर झूला झूलते हैं। हरतालिका तीज व्रत भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की तृतीय को हस्त नक्षत्र के दिन होता है.इस दिन कुमारी और सौभाग्यवती महिला गौरी शंकर की पूजा करती है | हरा रंग जो प्रतीक है प्रकृति का, समृद्धि का और जब इससे जुड़ता है पार्वती और शिव का नाम तो इसे पुकारा जाता है हरियाली तीज के नाम से | यह श्रावणी तीज और कजली तीज के रूप में भी मनायी जाती है|
रीति रिवाज :-----
 यह त्यौहार मुख्यत: महिलाओं का त्यौहार है जिसमें महिलाएं उपवास और व्रत रखती हैं और मां गौरी की पूजा करती हैं|इस व्रत को अविवाहित कन्याएं योग्य वर को पाने के लिए करती हैं तथा विवाहित महिलाएं अपने सुखी दांपत्य की चाहत के लिए करती हैं| इस समय वर्षा ऋतु की बौछारें प्रकृति को पूर्ण रूप से भिगो देती हैं|
सावन की तीज में महिलाएं व्रत रखती हैं देश के पूर्वी इलाकों में इसे कजली तीज के रुप में जाना जाता है तथा अधिकतर लोग इसे हरियाली तीज के नाम से जानते हैं |
 तीज उत्सव की परम्परा :----     
यह दिन स्त्रियों के लिए श्रृंगार तथा उल्लास से भरा होता है। हरी-भरी वसुंधरा के ऊपर इठलाते इंद्रधनुषी चुनरियों के रंग एक अलग ही छटा बिखेर देते हैं। स्त्रियाँ पारंपरिक तरीकों से श्रृंगार करती हैं तथा माँ पार्वती से यह कामना करती हैं कि उनकी जिंदगी में ये रंग हमेशा बिखरे रहें। 
      विवाहित स्त्रियाँ इस दिन खासतौर पर मायके आती हैं और यहाँ से उन्हें ढेर सारे उपहार दिए जाते हैं, जिसे तीज का शगुन या सिंजारा कहा जाता है। इसी तरह जिस युवती का विवाह तय हो गया होता उसे उसके ससुराल से ये सिंजारा भेजा जाता है। सिंजार में अनेक वस्तुएँ होती हैं। जैसे - मेंहदी, लाख की चूड़ियाँ, लहरिया नामक विशेष वेश–भूषा, जिसे बाँधकर रंगा जाता है तथा एक मिष्टान जिसे "घेवर" कहते हैं।
       पूजन के बाद महिलाएँ मिलकर शिव-गौरी के सुखद वैवाहिक जीवन से जुड़े लोकगीत गाती हैं। इन लोकगीतों की मिठास समूची प्रकृति में घुली हुई सी महसूस होती है। 
       मेहँदी भरे हाथों की खनक तथा सुमधुर ध्वनि के साथ छनकती चूड़ियाँ, माहौल को संगीतमय बना देती हैं। सौभाग्य और सुखी दांपत्य जीवन की कामना से मनाई जाने वाली तीन तीजों में से एक हरियाली तीज प्रकृति के सुंदर वरदानों के लिए उसका शुक्रिया अदा करने का भी उत्सव बन जाती है।
पौराणिक महत्व :----

  •   श्रावण शुक्ल तृतीया (तीज) के दिन भगवती पार्वती सौ वर्षों की  तपस्या साधना के बाद भगवान शिव से मिली थीं।
  • माँ पार्वती का इस दिन पूजन - आह्वान विवाहित स्त्री - पुरुष के जीवन में हर्ष प्रदान करता है।
  • समस्त उत्तर भारत में तीज पर्व बड़े उत्साह और धूमधाम से मनाया जाता है।
  • इसे श्रावणी तीज, हरियाली तीज तथा कजली तीज भी कहते हैं।
  • बुन्देलखंड के जालौन, झाँसी, दनिया, महोबा, ओरछा आदि क्षेत्रों में इसे हरियाली तीज के नाम से व्रतोत्सव के रूप में मनाते हैं।
  • पूर्वी उत्तर प्रदेश, बनारस, मिर्ज़ापुर, देवलि, गोरखपुर, जौनपुर, सुल्तानपुर आदि ज़िलों में इसे कजली तीज के रूप में मनाने की परम्परा है।
  • लोकगायन की एक प्रसिद्ध शैली भी इसी नाम से प्रसिद्ध हो गई है, जिसे 'कजली' कहते हैं।
  • राजस्थान के लोगों के लिए त्योहार ही जीवन का सार है।
  • हरियाली तीज के अवसर पर मौज मस्ती करती हुई लड़कियाँ
  • तीज के आगमन के हर्ष में मोर हर्षित हो नृत्य करने लगते हैं।
  • स्त्रियाँ उद्यानों में लगे रस्सी के झूले में झूलकर प्रसन्नचित् होती हैं तथा सुरीले गीतों से वातावरण गूँज उठता है।
तीज की विशेष रस्म बया :----
  • इसमें अनेक भेंट वस्तुएँ होती हैं, जिसमें वस्त्र व मिष्ठान होते हैं। इसे माँ अपनी विवाहित पुत्री को भेजती है। पूजा के बाद 'बया' को सास को सुपुर्द कर दिया जाता है।
  • पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी यदि कन्या ससुराल में है, तो मायके से तथा यदि मायके में है, तो ससुराल से मिष्ठान, कपड़े आदि भेजने की परम्परा है। इसे स्थानीय भाषा में 'तीज' की भेंट कहा जाता है।
  • राजस्थान हो या पूर्वी उत्तर प्रदेश प्रायः नवविवाहिता युवतियों को सावन में ससुराल से मायके बुला लेने की परम्परा है।
  • सभी विवाहिताएँ इस दिन विशेष रूप से शृंगार करती हैं।
  • सायंकाल बन ठनकर सरोवर के किनारे उत्सव मनाती हैं और उद्यानों में झूला झूलते हुए कजली के गीत गाती हैं।
जयपुर का तीज माता उत्सव :----

  • जयपुर के राजाओं के समय में पार्वती जी की प्रतिमा, जिसे 'तीज माता' कहते हैं, को एक जुलूस उत्सव में दो दिन तक ले जाया जाता था।
  • उत्सव से कुछ पूर्व प्रतिमा में दोबारा से रंगकारी की जाती है तथा त्योहार वाले दिन इसे नवपरिधानों से सजाया जाता है।
  • पारम्परिक आभूषणों से सुसज्जित राजपरिवार की स्त्रियाँ मूर्ति की पूजा, जनाना कमरे में करती हैं।
  • इसके पश्चात प्रतिमा को जुलूस में सम्मिलित होने के लिए प्रांगण में ले जाया जाता है।
  • हज़ारों दर्शक बड़ी अधीरता से भगवती की एक झलक पाने के लिए लालायित हो उठते हैं।
  • लोगों की अच्छी ख़ासी भीड़ होती है। मार्ग के दोनों ओर, छतों पर हज़ारों ग्रामीण अपने पारम्परिक रंग–बिरंगे परिधानों में एकत्रित होते हैं।
  • पुरोहित द्वारा बताए गए शुभ मुहूर्त में, जुलूस का नेतृत्व निशान का हाथी (इसमें एक विशेष ध्वजा बाँधी जाती है) करता है। सुसज्जित हाथी, बैलगाड़ियाँ व रथ इस जुलूस को अत्यन्त ही मनोहारी बना देते हैं।
  • यह जुलूस फिर त्रिपोलिया द्वार से प्रस्थान करता है और तभी लम्बी प्रतीक्षा के बाद तीज प्रतिमा दृष्टिगोचर होती है। भीड़ आगे बढ़ प्रतिमा की एक झलक के रूप में आशीर्वाद पाना चाहती है
                                      ***************

गुरुवार, 8 अगस्त 2013

सच्चा तू करतार है [प्रार्थना]

यह प्रार्थना मेरे बेटे ने हमेशा लोरी की तरह सुनी है इसलिए मैंने यह उसके लिए गाई है .....

सच्चा तू करतार है सबका पालनहार है |
तेरा सबको आसरा सुखों का भण्डार है || 

नदियाँ नाले पर्वत सारे तेरी याद दिलाते हैं ...तेरी याद 
ऋषि मुनि और योगी सारे तेरे ही गुण गाते हैं |
सच्चा तू करतार ....

बादल गर्जे बिजली चमके छम छम वर्षा आती है ...छम छम 
मीठी वाणी कोयल बोले यही राग सुनाती है |
सच्चा तू करतार ...

सत चित आनंद प्रभु को वेदों ने बतलाया है .....वेदों ने...
अंत तेरा ना किसी ने पाया सुंदर तेरी माया है |
सच्चा तू करतार ....

शुभ कर्मों से मानव का यह सुंदर चोला पाया है ....सुंदर चोला .
विषय विकारों में फंस करके इसको दाग लगाया है |
सच्चा तू करतार...

नंदलाल कहे श्रद्धा से चरणों में शीश झुकाते हैं ...चरणों में 
बल बुद्धि और विद्या का हम दान आपसे चाहते हैं |
सच्चा तू करतार .... 
मेरी आवाज में सुनें ..


मंगलवार, 6 अगस्त 2013

हनुमान मंदिर ,कनॉट प्लेस ,दिल्ली भाग 2.

गर्भ गृह और चोला :----गर्भ गृह में स्वयंभू बाल हनुमान के साथ साथ राम दरबार, राधा कृष्ण विराजमान हैं | सोमवार, बुधवार और शुक्रवार को मंदिर में चोला चढ़ाने की खास परंपरा है |मंगलवार के लिए सोमवार रात को और शनिवार के लिए शुक्रवार रात को चोला चढ़ाया जाता है |चोला चढ़ावे में श्रद्धालु घी, सिंदूर, चांदी का वर्क और इत्र की शीशी का इस्तेमाल करते हैं| कनाट प्लेस के हनुमान मंदिर की एक अद्भुद चमत्कारिक विशेषता है यहां हनुमानजी लगभग दस साल बाद अपना चोला छोड़कर अपने प्राचीन स्वरूप में आ जाते हैं।

चित्र:Hanuman and other deities in the Sanctum Santorum.JPG
गर्भ गृह की दीवार पर हनुमान जी 
एवं अन्य देवी देवता 

आज इसमें काफी परिवर्तन आ चुके हैं ,बाहर इसके प्रांगन का अभी लगभग दो वर्ष पहले ही नव निर्माण किया गया है ,पहले पार्किंग की व्यवस्था प्राइवेट ठेकेदार चलाते थे ,यहाँ कभी  कभी अपनी मनमानी भी करते थे ,जिसमें अब काफी सुधार हुआ है ,जबकि बहुत बढ़िया अंडर ग्राउंड पार्किंग बनाई गई है जिसका प्रयोग मैंने होते हुए कभी नहीं देखा है सब गाड़ियाँ आसपास की सडकों पर ही  खड़ी रहती हैं ,क्योंकि सामने ही कनॉट प्लेस थाना है इसलिए जब कोई उच्च अधिकारी जाँच के लिए आते हैं तो गाड़ियाँ उठा भी ली जाती हैं 
मंदिर के बाहर जूते वालों के टेंट 
         जूता घर ,शौचालयों का ,कुछ दुकानों का निर्माण भी इस निर्माण के साथ हुआ है जिनका प्रयोग ना के मात्र है ,सिर्फ शौचालय की सुविधा जरुर काम आ रही है ,जो पहले पास ही बने शनिमंदिर  तक जाना पड़ता था ,जूता घर का प्रयोग भी नहीं किया जाता क्योंकि कोई निशुल्क सेवा नहीं करना चाहता जो बहुत सारे लोग बाहर टेंट लगा कर बैठते हैं वोह बेकार हो जाते हैं ,क्योंकि 15...15 वर्षों से वो यहाँ से कमाई कर रहे हैं जो भी भक्तजन आते हैं अपनी श्रद्दा से 5...10 रुपये दे जाते हैं ,जबकि अब सुरक्षा की दृष्टि से टेंट हटा दिए गए हैं फिर भी जूता घर के बाहर ही  सब जूते वाले नजर आते हैं 

सुनसान जूता घर 
बाहर प्रांगन में बहुत सारी प्रसाद की ,भेंट खिलौने आदि की दुकानें हैं , कचोरी वाले मेंहदी वाले प्रांगन में जगह जगह पर कब्ज़ा जमाये हुए हैं बहुत सारे ज्योतिषी तांत्रिक भी मुख्यता मंगलवार और शनिवार को नजर आते हैं | त्योहारों पर मेहंदी लगवाने के लिए यहाँ औरतों का जमावड़ा रहता है |
नवभारत टाइम्स से साभार :----
यह मंदिर कनॉट प्लेस के व्यस्त इलाके में है, इसलिए इसकी सुरक्षा को लेकर खासे इंतजाम किए गए हैं। मंदिर के अंदर 21 सीसीटीवी कैमरे लगे हुए हैं। मंगलवार व शनिवार को वहां खासी सुरक्षा होती है और पुलिस का पर्याप्त इंतजाम किया जाता है। मंदिर और उसके आसपास सफाई व्यवस्था को लेकर भी खासी सजगता भी दिखाता है मंदिर प्रशासन ,ऐसा यहाँ के महंतजी का कहना है । 
             यह मंदिर आम के साथ साथ खास लोगों में भी खासा लोकप्रिय है। पुराने कलाकारों में राजकुमार से लेकर आज के फिल्मी स्टार आमिर खान सचिन तेंदुलकर भी सीपी के इस भव्य मंदिर के दर्शन कर चुके हैं। देश और दिल्ली के छोटे बड़े नेता भी जब तब इस मंदिर में आकर शीश नवाते रहे हैं।
भगवान दर्शन की विशेष तिथियाँ :---
इसके अतिरिक्त साल में चार तिथियां इस मंदिर के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण हैं. दीपावली, हनुमान जयंती, जन्माष्टमी, और शिवरात्रि के दिन मंदिर में बाल हनुमान का विशेष श्रृंगार किया जाता है. इस दिन भगवान को सोने का श्रंगार किया जाता है। यहां मनौती मानने वाले भक्त बड़ी संख्या में संसारभर से आते हैं और मनौती पूर्ण होने पर भगवान को सवामनी चढ़ाते हैं।
          कनॉट प्लेस में हनुमान मंदिर के निकट स्थित एशिया के सबसे बड़े फूलों के बाजार में पिछले पंद्रह सालों से फूलों का बाजार भी लगता है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2006-2007 में कुल 649.84 करोड़ रुपये का निर्यात हुआ जबकि पिछले वर्ष यह 210.99 करोड़ रुपये का था। केवल दिल्ली से लगभग 100 करोड़ रुपये का निर्यात हुआ है।अभी दो वर्ष से यह बाजार लगना बंद हो गया है 
           कनाट प्लेस देश और दिल्ली का व्यावसायिक केंद्र होने के साथ ही धर्म और आस्था का भी केंद्र है | इस लिहाज से कनाट प्लेस स्थित हनुमान मंदिर पर्यटन और धार्मिक पर्यटन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है | अमूमन देश विदेश से आने वाले पर्यटक और श्रद्धालु इस मंदिर में शीश झुकाना नहीं भूलते | मंगलवार और शनिवार भगवान हनुमान के पूजन के दो विशेष दिन हैं | इन दिनों में मंदिर 24 घंटे के लिए खुला होता है यानि इन दिनों भगवान ओवरटाइम करते हैं |
कुछ विशेष जानकारी :----
        यहाँ गद्दी पर विराजमान पुरोहित जी से जब मैंने महंत परम्परा की  जानकारी मांगी तो उन्होंने बताया यहाँ इस समय 36 महंत हैं जिनके बेटे बारी बारी से यहाँ मंदिर का कार्य सँभालते हैं जैसे जिसका एक बेटा है वोह एक दिन जिसके दो बेटे हैं दो दिन जिसके चार हैं वोह उसी क्रम में मंदिर की सेवा करते हैं उनके दिन निश्चित हैं |
          दूसरी जानकारी मैंने मंदिर के बाहर बैठने वाले जय सिंह से ली जो 1984 से जूता सेवा कर रहे हैं ,जैसा की उन्होंने बताया कि उनके पिता कनी सिंह जी ने 50 वर्ष इसी मंदिर के बाहर जूता सेवा की है जो अपने पिता जी और एक किसी और सज्जन को सबसे पुराने सेवादार बताते हैं |इससे स्पष्ट है कि मंदिर संभालने का और जूता सेवा का यह काम पीड़ी दर पीड़ी चला आ रहा है |
      मैंने कई बार गद्दी पर बैठे महंत जी से अनुरोध किया है कि इस प्राचीन मंदिर की गरिमा बनाए रखने के लिए श्रद्धालुओं को माथा टेकने में आने वाली भीड़ की समस्या का उचित प्रबंध किया जाए ,जोकि थोड़ी सी सावधानी से हो सकता है ताकि उनको यह सूचना बार बार ना देनी पड़े कि जेबकतरों से सावधान रहें,लेकिन कोई कारवाई नहीं होती है अब मंदिर प्रशासन से बात कर इसका समाधान हो सकता है |

                                  *************************************************

सोमवार, 5 अगस्त 2013

हनुमान मंदिर , कनॉट प्लेस , दिल्ली भाग 1.


दोस्तो आज आप सबसे साँझा करने जा रही हूँ सबसे बड़े दक्षिणमुखी  हनुमान मंदिर ,कनॉट प्लेस ,दिल्ली से जुडी कुछ स्मृतियाँ एवं इसके इतिहास के बारे में ,जहां कई वर्षों से लगातार जाना होता रहता है |
स्थिति :----
यह मंदिर बाबा खड़ग सिंह मार्ग पर स्थित है |दिल्ली मेट्रो के राजीव चौक स्टेशन से यह मात्र 500 मीटर की दूरी पर है यहां पहुँचने के लिए ब्लू लाइन या येलो लाइन का प्रयोग कर सकते हैं |वहां से खडक सिंह मार्ग वाले रास्ते से बाहर आकर आप पैदल ही आसानी से यहाँ पहुँच सकते हैं |इसके पास ही  बंगला साहिब गुरुद्वारा ,चर्च ,मस्जिद विराजमान हैं | 
परिचय :-----नई दिल्ली के हृदय कनॉट प्लेस में महाभारत कालीन श्री हनुमान जी का एक प्राचीन मंदिर है।यहाँ पर उपस्थित हनुमान जी स्वयंभू हैं। बालचन्द्र अंकित शिखर वाला यह मंदिर आस्था का महान केंद्र है।प्रत्येक मंगलवार एवं विशेषतः हनुमान जयंती के पावन पर्व पर यहां भजन संध्या और भंडारे लगाकर श्रद्धालुओं को प्रसाद वितरित किया जाता है। इसके साथ ही भागीरथी संस्था के तत्वाधान में संध्या का आयोजन किया जाता है, साथ ही क्षेत्र में झांकी निकाली जाती है।

हनुमान मंदिर कनॉट प्लेस 
               ज्यादातर यहाँ दोपहर में या रात में जाना हो पाता है पर एक बार यहाँ सुबह 5 बजे जाना हुआ ,जब मेरा जन्मदिन था और मंगलवार था तो सोचा वहां बहुत भिखारी बैठते हैं सुबह सुबह जो ज्यादातर अपाहिज होते हैं ,चलो आज उनको ही कुछ खिला कर अपना जन्मदिन मनाया जाए ,इसलिए मैंने उड़द की दाल बनाई और साथ में 10..12 ब्रेड लेकर वहां उनको वितिरित कर अपना जन्मदिन मनाया | सुबह सुबह की बेला और प्रभु भजनों का साथ हो तो वैसे ही आनंद दोगुना हो जाता है |
       इस मंदिर के प्रधान महंत मदनलाल शर्मा 'बाबाजी' के अनुसार  इतना बड़ा दक्षिणमुखी हनुमान मंदिर पूरे वर्ल्ड में कहीं नहीं है। बाबाजी के अनुसार इस मंदिर की देखरेख में उनके परिवार की 34 पीढ़ियां सेवा में जुटी हैं। मंदिर में लोगों की सुविधा के लिए लगातार निर्माण किए गए हैं, जिससे इसकी सुंदरता और भव्यता लगातार बढ़ती रही है। उन्होंने कहा कि मंगलवार और शनिवार को इस मंदिर में श्रद्धालुओं की खासी भीड़ रहती है। इन दिनों इनकी संख्या बढ़कर 70 हजार तक पहुंच जाती है। हनुमान जयंती से जुड़े विशेष पर्व पर तो भक्तों की तादाद एक लाख से ऊपर पहुंच जाती है।
        अभी बीते शनिवार को यहाँ सुबह 6 बजे जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ | सूर्य धीरे धीरे अपना तेज बिखेरना शुरू हो रहा था, जब हम घर से निकले बहुत मुद्दतों बाद देखा कुछ लोग सैर करने जा रहे है  कुछ वापिसी पर हैं ,सब दुकानें बंद नजर आई सिर्फ खाने पीने की दुकानों पर हलचल शुरू हो चुकी थी ,सुबह की मस्त हवा का आनंद लेते हुए हम 25 मिनट में ही मंदिर पहुँच गए जहां पहुँचने में कम से कम 40 मिनट तो लगते ही हैं ,सुबह ऐसे लग रहा था दिल्ली में ट्रैफिक की समस्या का ऐसे ही बवाल होता है यहाँ तो कोई समस्या ही नहीं है | वैसे अगर हम मेट्रो से जाते हैं तो 40 मिनट मेट्रो में ,घर से मेट्रो तक और वहां से पैदल का समय मिलाकर लगभग 1 घंटा लग जाता है पर टू व्हीलर पर महज 1 घंटे में हम दर्शन कर वापिस भी आ गए |
इतिहास :-----
दिल्ली का ऐतिहासिक नाम इंद्रप्रस्थ शहर है, जो यमुना नदी के तट पर पांडवों द्वारा महाभारत-काल में बसाया गया था। तब पांडव इंद्रप्रस्थ पर और कौरव हस्तिनापुर पर राज्य करते थे। ये दोनों ही कुरु वंश से निकले थे। हिन्दू मान्यता के अनुसार पांडवों में द्वितीय भीम को हनुमान जी का भाई माना जाता है। दोनों ही वायु-पुत्र कहे जाते हैं। इंद्रप्रस्थ की स्थापना के समय पांडवों ने इस शहर में पांच हनुमान मंदिरों की स्थापना की थी। ये मंदिर उन्हीं पांच में से एक है।
चित्र:Idol of Baby Hanuman facing south in Connaught Place temple.JPG
बाल हनुमान की स्वयंभू प्रतिमा 
                  मान्यता अनुसार प्रसिद्ध भक्तिकालीन संत तुलसीदास जी ने दिल्ली यात्रा के समय इस मंदिर में भी दर्शन किये थे। तभी उन्होंने इस स्थल पर ही हनुमान चालीसा की रचना की थी। तभी मुगल सम्राट ने उन्हें अपने दरबार में कोई चमत्कार दिखाने का निवेदन किया। तब तुलसीदास जी ने हनुमान जी की कृपा से सम्राट को संतुष्ट किया। सम्राट ने प्रसन्न होकर इस मंदिर के शिखर पर इस्लामी चंद्रमा सहित किरीट कलश समर्पित किया। इस कारण ही अनेक मुस्लिम आक्रमणों के बावजूद किसी मुस्लिम आक्रमणकारी ने इस इस्लामी चंद्रमा के मान को रखते हुए कभी भी इस मंदिर पर हमला नहीं किया।
मंदिर की वेब साईट :----
मंदिर की वेबसाइट 16 अक्तूबर ,2010 में बनाई गई और इसका शुभ आरम्भ 17 अक्तूबर ,2010 को दशहरे वाले दिन किया गया इसके अनुसार इसका इतिहास ...
ऐतिहासिक संदर्भों के साथ-साथ इस मंदिर से सर्वधर्म समभाव और सांप्रदायिक एकता की कई मिसालें भी इस मंदिर के साथ जुड़ी हुई हैं. कहा जाता है कि मुगल बादशाह अकबर को जब काफी समय तक पुत्र प्राप्ति नहीं हुई तब वे कनाट प्लेस के इस मंदिर में आए और पूरी आस्था के साथ पुत्ररत्न की कामना की । और अंतत बजरंग बली की कृपा से सलीम के रूप में उनकी मुराद पूरी हुई. सौहार्द्र की मिसाल के तौर पर मंदिर के विमान पर आज भी ओम अथवा कलश के स्थान पर चांद का चिन्ह अवस्थित है. इस मंदिर की तमाम विशेषताओं में सबसे उल्लेखनीय तथ्य यह है कि ये हनुमानजी के बाल्यकाल को दर्शाने वाले देश का सबसे प्रमुख मंदिर है। यहां बाल हनुमान के एक हाथ में खिलौना और दूसरा हाथ उनके सीने पर है.  ये महावली वीरवर बजरंगबली का ही प्रताप है कि इस मंदिर में 1 अगस्त 1964 से आज तक लगातार श्री राम जयराम जय जय राम का जाप जारी है. जिसके लिए इसे गिनीज बुक में भी शामिल किया गया है।
चित्र:Crescent on Spire of Hanuman Temple, Connaught Place.JPG
शिखर पर चन्द्रमा सहित किरीट कलश 
वर्तमान इमारत आंबेर के महाराजा मान सिंह प्रथम (1540-1614) ने मुगल सम्राट अकबर के शासन काल में बनवायी थी। इसका विस्तार महाराजा जयसिंह द्वितीय (1688-1743) ने जंतर मंतर के साथ ही करवाया था। दोनों इमारतें निकट ही स्थित हैं। इसके बाद भी इमारत में समय समय पर कुछ कुछ सुधार, बदलाव आदि होते रहे। इस मंदिर का विशेष आकर्षण यहां होने वाले 24-घंटे का अटूट मंत्र जाप है। ये जाप "श्रीराम जय राम, जय जय राम॥" मंत्र का होता है, और यह 1अगस्त, 1964 से अनवरत चलता आ रहा है। बताया जाता है, कि ये विश्व का सबसे लंबा जाप है और इसकी रिकॉर्डिंग गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में भी अंकित है।[ लगभग 20 वर्ष से इससे जुड़ी हुई हूँ दो बार इस मंदिर का चलिया कर चुकी हूँ ,इसलिए जाप होते क्योंकि कभी दिखा नहीं है इसलिए इसकी पुष्टि हेतु वहां गद्दी पर बैठे महंत जी से इस जाप के बारे में पूछा तो उन्होंने इससे इन्कार किया कि ऐसा कोई जाप यहाँ नहीं होता है ]
प्रवेश द्वार :----
शिल्पकला की दृष्टि भी ये मंदिर बेहद उत्कृष्ट कोटि का है. इसके मुख्य द्वार का वास्तुशिल्प रामायण में वर्णित कला के अनुरूप है. मुख्य द्वार के स्तंभों पर संपूर्ण सुंदरकांड की चौपाइयां खुदी हुई हैं. ऐसा माना जाता है कि रामचरित मानस जैसा ऐतिहासिक धर्मग्रंथ लिखने वाले गोस्वामी तुलसीदास 16वीं सदी में जब दिल्ली आए तब वे इस मंदिर में भी दर्शन को आए थे. कहा जाता है कि यही वो पवित्र स्थान है जहां से उन्हें 40 चौपाइयों की हनुमान चालीसा लिखने की प्रेरणा मिली |


मंदिर का प्रवेश द्वार 

मंदिर में प्रवेश करते ही सामने दिवार पर चारों तरफ हनुमान चालीसा संकटमोचन ,आरती और हनुमान एवं श्रीराम की प्रतिमाएं अंकित हैं बाये तरफ तुलसीदास जी की प्रतिमा लगाई गई है ,इसके साथ ही लक्ष्मी पूजन दरबार ,गणेश प्रतिमा भी स्थापित हैं।अब सरस्वती माँ और गायत्री माँ की मूर्ति भी स्थापित की गई है |प्रवेश करते ही सामने पंचमुखी हनुमान दरबार के साथ साथ संतोषी माँ की बहुत बड़ी प्रतिमा विराजमान है,जिसके आगे निरंतर ज्योति जलती रहती है यहाँ से परिक्रमा करते हुए पहुंचते हैं शिवालय में यहाँ शिव प्रतिमा के इलावा शिव पंचायत, साई बाबा की प्रतिमा विराजमान है यहाँ से बाहर आते ही मंदिर में एक समाधि है। महंत बाबाजी ने बताया कि यह समाधि महंत ध्यानचंद शर्मा की है, जिन्होंने वर्ष 1742 में यह समाधि ली थी।


Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...