बुधवार, 27 नवंबर 2013

हनुमान मंदिर चलिया भाग 13.

भाग 12.
आज शुक्रवार है ..... 8.11.2013....
समय हो गया 7.50
आज फिर भीड़ मिलेगी क्योंकि देर हो गई है ....
जैसा कि हर मेट्रो स्टेशन पर 5... 6 मशीन रख दी गई हैं जिससे आप अपने आप smart card को रिचार्ज कर सकते हैं ....
भीड़ से बचने आज चलते हैं रिचार्ज करने मशीन से ....



सबसे पहले आपके सामने मशीन पर लिखा आता है..
Token sale और add value और साथ ही नीचे लिखा है 
English हिन्दी 



कार्ड और नोट डालने के लिए स्लिट्स 

आप उसमें जो सेलेक्ट करेंगे वैसे ही आपको सूचना मिलेगी फिर दिखाएगा ..
फिर कार्ड यहाँ डालना है वहां लाइट जलती है आप कार्ड डालते हैं तो 
value पूछेगा 
100 / 150 / 200 /
आप चुनिए जितने का रिचार्ज कराना है आप 10 रुपये से शुरू कर सकते हैं फिर उतने का नोट उसमें डालिए यहाँ लाइट जलती है मशीन नोट अन्दर खींच लेती है और प्रोसेस शुरू हो जाता है अगर आपको reciept चाहिए तो वहां टच कीजिए आपकी रसीद नीचे आ जाएगी ...
कार्ड रिचार्ज हो गया है और बाहर आ जाता है आप उसे ले सकते हैं ...
मैंने कार्ड रिचार्ज कर लिया है और लाइन से बच गई हूँ जो रिचार्ज के लिए लगती है या टोकन के लिए लगती है  .....
मेट्रो लेकर पहुँच गई मंदिर......
मंदिर से होकर वापिस आ गई हूँ ....आज मेट्रो आती बार काफी खाली  है सीटें तो भरी हुई हैं पर बीच में खाली है .....
सीट मिल गई है मैं घर पहुँच गई हूँ ....
मिलते हैं कल नए मुद्दों के साथ ...

हनुमान मंदिर चलिया भाग 14.क्रमशः....

हनुमान मंदिर चलिया भाग 12.

आज वीरवार है .... 7.11.2013...
आज भी कार्यदिवस है ,आज 7.10 पर निकली हूँ ...
मेट्रो स्टेशन पर ऊपर पहुँचने के लिए 30 सीढियां पहले चढती हूँ ,वैसे दूसरी साइड से अगर जाते हैं तो वहां लिफ्ट उपलब्ध है .....
फिर वहां चेकिंग और टोकन गेट से निकल कर 30 सीढियां और चढ़ती हूँ ,यहाँ से लिफ्ट भी है जो प्लेटफ़ॉर्म तक जाती है ....
देरी की वजह से आज मेट्रो स्टेशन पर भीड़ ज्यादा बढ़ गई है |
ठीक लगभग 35 मिनट में राजीव चौंक पहुँच गई हूँ ..अब बाहर जा रही हूँ .... 
बाहर जाने के लिए एक स्वचालित सीढियां हैं और एक दूसरी हैं जो 40 सीढियां हैं .....
यहाँ से ज्यादातर स्वचालित सीढियां ही लेती हूँ  .....
यहाँ से 9 मिनट की दूरी पर है हनुमान मंदिर ... एक चौंक पार करना पड़ता है ...
लो पहुँच गई हूँ .....
आज गर्भ गृह के अन्दर बाकी तस्वीरों के बारे आपको बताती हूँ ...
श्री राम , सीता और लक्ष्मण की तस्वीर के बगल में है राधा कृष्ण की मनमोहक तस्वीर ...



राधा कृष्ण 

और इसके बगल में है अंजनी माँ के साथ हनुमान बाल रूप में ..
इसके ठीक आगे है एक छोटी तस्वीर में हनुमान पर्वत उठाये हुए हैं ..... 


 
हनुमान पर्वत उठाये 

हनुमान की मुख्य प्रतिमा के साथ एक लोहे का डंडा और फट्टा सा लगा है जिस पर नारियल तोड़ा जाता है ,इसे नारियल तोड़ने का उपकरण भी कह सकते हैं |



नारियल तोड़ने का स्टैंड 

माथा टेक कर बाहर आ गई हूँ .....
मेट्रो ले ली है ....और पहुँच गई हूँ घर... पैदल चलते हुए ....
मिलते हैं कल मंदिर की कुछ और झांकिओं के साथ ...

हनुमान मंदिर चलिया भाग 13. क्रमशः....

मंगलवार, 26 नवंबर 2013

हनुमान मंदिर चलिया भाग 11.

आज बुद्धवार है .... 6.11.2013...
आज से फिर स्कूल ऑफिस खुल गए हैं ....इसलिए काफी भीड़ है ....
समय 6.55 हो गए हैं ... जल्दी से मेट्रो स्टेशन पहुँच गई हूँ ....
आइये आज जानते हैं मेट्रो रेल का एक ख़ास डिब्बा ,पहला डिब्बा .....
यह डिब्बा महिलायों के लिए सुरक्षित है .... मेट्रो स्टेशन पर रुकने के लिए भी एक बोर्ड लगा है जिसके सामने यह रुकता है ...केवल महिलाएं ... 
Women Only ... ..यही लिखा है इस के ठीक नीचे मेट्रो स्टेशन के फर्श पर 



यह ड्राईवर के एक दम पीछे वाला डिब्बा है .....
इस डिब्बे में 7..7 सीट वाले पांच कोच हैं , 1 कोच 4 सीट वाला है और 2 कोच 2..2 सीट वाले हैं ..
सबसे पहले एक 4 सीट वाला और एक 7 सीट वाला कोच आमने सामने हैं ...फिर 7 ...7 सीट वाले चार कोच एक दूसरे के  आमने सामने हैं 
सात सीट वाले 2 कोच विकलांग एवं वृद्ध लोगों के लिए , 2 महिलाओं के लिए , 1 कोच वरिष्ठ नागरिकों के लिए आरक्षित हैं ऐसा लिखा हुआ है ...
2...2 सीट वाले भी विकलांग एवं वृद्ध के लिए आरक्षित हैं |
एक ख़ास बात इसमें पुरूष बिलकुल वर्जित हैं , जो गलती से भी इसमें नहीं चढ़ सकते .....
पहले यहाँ एक महिला सुरक्षा कर्मी तैनात रहती थीं अब ऐसा नहीं है ...
महिलाएं इसमें आकर एक सुकून सा पाती हैं .....जैसे आप देख रहे हैं ... घर के काम जल्दी से निपटाकर यहीं आकर थोड़ा आराम मिलता है ,इसलिए महिला डिब्बा एक की बजाये दो किये जाने चाहिए ताकि वो अपने कार्यक्षेत्र तक आराम से बैठकर पहुँच सकें ,कुछेक को सीट न मिलने पर नीचे बैठना पड़ता है ....





इन तस्वीरों को देख यह न सोचें कि महिलाएं आराम से ही जाती हैं ,यह उस समय की तस्वीरें हैं जब मेट्रो में बिलकुल भीड़ नहीं है .....

चलिए अब राजीव चौक पहुँच गए हैं ....बाहर निकल आई हूँ और मंदिर की तरफ प्रस्थान ....
मंदिर में कोई भीड़ नहीं है ...इसलिए आराम से फ्री होकर जल्दी ही बाहर आ गई हूँ ....
मेट्रो ले ली है और घर पहुँच गई हूँ ...
मिलते हैं कल कुछ नए पहलुओं के साथ ....

हनुमान मंदिर चलिया भाग 12.क्रमशः....

सोमवार, 18 नवंबर 2013

हनुमान मंदिर चलिया भाग 10.

आज मंगलवार है .... 5.11.2013 
आज भैया दूज है .... 
आज सुबह उठकर कुछ काम निपटाया है ,बाकी आकर निपटाना है सारे मेहमान 1 बजे तक आ जाते हैं ,आज जल्दी से निकल गई हूँ मंदिर के लिए ..... 6.35 पर ही ...
मेट्रो में इतनी जल्दी सुबह भी भीड़ है क्योंकि बहनें भाई को तिलक करने जा रही हैं ...
मंदिर में भी आज बहुत भीड़ है क्योंकि मंगलवार है ...
पुरुषों की पंक्ति बाहर तक आ रही है ..और राम सिया के आगे छोटे हनुमान जी का प्रतिरूप रख दिया गया है ताकि स्त्रियों को अलग से भोग लगा कर प्रसाद दिया जा सके ..





आज एक नया बैनर [गौवर्धन पूजा , भैया दूज गोपाल अष्टमी ]के लिए महंत अमित शर्मा द्वारा लगाया गया है ,जिसका भंडारा 10 को रविवार को किया जायेगा |
आज जल्दी से दर्शन कर घर के लिए चल दी हूँ ..
मिलते हैं कल नए अनुभवों के साथ ......

हनुमान मंदिर चलिया भाग 11.क्रमशः...

रविवार, 17 नवंबर 2013

प्रकाशोत्सव [गुरु नानक जयंती]

सिख धर्म के दस गुरुओं की कड़ी में प्रथम हैं गुरु नानक। गुरु नानकदेव से मोक्ष तक पहुँचने के एक नए मार्ग का अवतरण होता है। इतना प्यारा और सरल मार्ग कि सहज ही मोक्ष तक या ईश्वर तक पहुँचा जा सकता है।
भारतीय संस्कृति में गुरु का महत्व आदिकाल से ही रहा है। कबीर साहब ने कहा था कि गुरु बिन ज्ञान न होए साधु बाबा। तब फिर ज्यादा सोचने-विचारने की आवश्यकता नहीं है बस गुरु के प्रति समर्पण कर दो। हमारे सुख-दु:ख और हमारे आध्यात्मिक लक्ष्य गुरु को ही साधने दो। ज्यादा सोचोगे तो भटक जाओगे। अहंकार से किसी ने कुछ नहीं पाया। सिर और चप्पलों को बाहर ही छोड़कर जरा अदब से गुरु के द्वार खड़े हो जाओ बस। गुरु को ही करने दो हमारी चिंता। हम क्यों करें।

जीवन :---
नानकदेवजी के जन्म के समय प्रसूति गृह अलौकिक ज्योत से भर उठा। शिशु के मस्तक के आसपास तेज आभा फैली हुई थी, चेहरे पर अद्भुत शांति थी। पिता बाबा कालूचंद्र बेदी और माता त्रिपाता ने बालक का नाम नानक रखा। गाँव के पुरोहित पंडित हरदयाल ने जब बालक के बारे में सुना तो उन्हें समझने में देर न लगी कि इसमें जरूर ईश्वर का कोई रहस्य छुपा हुआ है।
जीती नौखंड मेदनी सतिनाम दा चक्र चलाया, भया आनंद जगत बिच कल तारण गुरू नानक आया ।
बचपन से ही नानक के मन में आध्यात्मिक भावनाएँ मौजूद थीं। पिता ने पंडित हरदयाल के पास उन्हें शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजा। पंडितजी ने नानक को और ज्ञान देना प्रारंभ किया तो बालक ने अक्षरों का अर्थ पूछा। पंडितजी निरुत्तर हो गए। नानकजी ने क से लेकर ड़ तक सारी पट्टी कविता रचना में सुना दी। पंडितजी आश्चर्य से भर उठे।
उन्हें अहसास हो गया कि नानक को स्वयं ईश्वर ने पढ़ाकर संसार में भेजा है। इसके उपरांत नानक को मौलवी कुतुबुद्दीन के पास पढ़ने के लिए बिठाया गया। नानक के प्रश्न से मौलवी भी निरुत्तर हो गए तो उन्होंने अलफ, बे की सीफहीं के अर्थ सुना दिए। मौलवी भी नानकदेवजी की विद्वता से प्रभावित हुए।
विद्यालय की दीवारें नानक को बाँधकर न रख सकीं। गुरु द्वारा दिया गया पाठ उन्हें नीरस और व्यर्थ प्रतीत हुआ। अंतर्मुखी प्रवृत्ति और विरक्ति उनके स्वभाव के अंग बन गए। एक बार पिता ने उन्हें भैंस चराने के लिए जंगल में भेजा। जंगल में भैसों की फिक्र छोड़ वे आँख बंद कर अपनी मस्ती में लीन हो गए। भैंसें पास के खेत में घुस गईं और सारा खेत चर डाला। खेत का मालिक नानकदेव के पास जाकर शिकायत करने लगा।
जब नानक ने नहीं सुना तो जमींदार रायबुलार के पास पहुँचा। नानक से पूछा गया तो उन्होंने जवाब दिया कि घबराओ मत, उसके ही जानवर हैं, उसका ही खेत है, उसने ही चरवाया है। उसने एक बार फसल उगाई है तो हजार बार उगा सकता है। मुझे नहीं लगता कोई नुकसान हुआ है। वे लोग खेत पर गए और वहाँ देखा तो दंग रह गए, खेत तो पहले की तरह ही लहलहा रहा था।
एक बार जब वे भैंस चराते समय ध्यान में लीन हो गए तो खुले में ही लेट गए। सूरज तप रहा था जिसकी रोशनी सीधे बालक के चेहरे पर पड़ रही थी। तभी अचानक एक साँप आया और बालक नानक के चेहरे पर फन फैलाकर खड़ा हो गया। जमींदार रायबुलार वहाँ से गुजरे। उन्होंने इस अद्भुत दृश्य को देखा तो आश्चर्य का ठिकाना न रहा। उन्होंने नानक को मन ही मन प्रणाम किया। इस घटना की स्मृति में उस स्थल पर गुरुद्वारा मालजी साहिब का निर्माण किया गया।
उस समय अंधविश्वास जन-जन में व्याप्त थे। आडंबरों का बोलबाला था और धार्मिक कट्टरता तेजी से बढ़ रही थी। नानकदेव इन सबके विरोधी थे। जब नानक का जनेऊ संस्कार होने वाला था तो उन्होंने इसका विरोध किया। उन्होंने कहा कि अगर सूत के डालने से मेरा दूसरा जन्म हो जाएगा, मैं नया हो जाऊँगा, तो ठीक है। लेकिन अगर जनेऊ टूट गया तो?
पंडित ने कहा कि बाजार से दूसरा खरीद लेना। इस पर नानक बोल उठे- 'तो फिर इसे रहने दीजिए। जो खुद टूट जाता है, जो बाजार में बिकता है, जो दो पैसे में मिल जाता है, उससे उस परमात्मा की खोज क्या होगी। मुझे जिस जनेऊ की आवश्यकता है उसके लिए दया की कपास हो, संतोष का सूत हो, संयम की गाँठ हो और उस जनेऊ सत्य की पूरन हो। यही जीव के लिए आध्यात्मिक जनेऊ है। यह न टूटता है, न इसमें मैल लगता है, न ही जलता है और न ही खोता है।'
एक बार पिता ने सोचा कि नानक आलसी हो गया है तो उन्होंने खेती करने की सलाह दी। इस पर नानकजी ने कहा कि वह सिर्फ सच्ची खेती-बाड़ी ही करेंगे, जिसमें मन को हलवाहा, शुभ कर्मों को कृषि, श्रम को पानी तथा शरीर को खेत बनाकर नाम को बीज तथा संतोष को अपना भाग्य बनाना चाहिए। नम्रता को ही रक्षक बाड़ बनाने पर भावपूर्ण कार्य करने से जो बीज जमेगा, उससे ही घर-बार संपन्न होगा।

दस सिद्धांत:---
गुरूनानक देव जी ने अपने अनु‍यायियों को जीवन के दस सिद्धांत दिए थे। यह सिद्धांत आज भी प्रासंगिक है।
1. ईश्वर एक है। 
2. सदैव एक ही ईश्वर की उपासना करो। 
3. जगत का कर्ता सब जगह और सब प्राणी मात्र में मौजूद है। 
4. सर्वशक्तिमान ईश्वर की भक्ति करने वालों को किसी का भय नहीं रहता। 
5. ईमानदारी से मेहनत करके उदरपूर्ति करना चाहिए। 
6. बुरा कार्य करने के बारे में न सोचें और न किसी को सताएँ। 
7. सदा प्रसन्न रहना चाहिए। ईश्वर से सदा अपने को क्षमाशीलता माँगना चाहिए। 
8. मेहनत और ईमानदारी से कमाई करके उसमें से जरूरतमंद को भी कुछ देना चाहिए। 
9. सभी स्त्री और पुरुष बराबर हैं। 
10. भोजन शरीर को जिंदा रखने के लिए जरूरी है पर लोभ-लालच व संग्रहवृत्ति बुरी है।

इनके जीवन से जुड़े प्रमुख गुरुद्वारा साहिब:---
1. गुरुद्वारा कंध साहिब- बटाला (गुरुदासपुर) गुरु नानक का यहाँ बीबी सुलक्षणा से 18 वर्ष की आयु में संवत्‌ 1544 की 24वीं जेठ को विवाह हुआ था। यहाँ गुरु नानक की विवाह वर्षगाँठ पर प्रतिवर्ष उत्सव का आयोजन होता है।
2. गुरुद्वारा हाट साहिब- सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला) गुरुनानक ने बहनोई जैराम के माध्यम से सुल्तानपुर के नवाब के यहाँ शाही भंडार के देखरेख की नौकरी प्रारंभ की। वे यहाँ पर मोदी बना दिए गए। नवाब युवा नानक से काफी प्रभावित थे। यहीं से नानक को 'तेरा' शब्द के माध्यम से अपनी मंजिल का आभास हुआ था।
3. गुरुद्वारा गुरु का बाग- सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला) यह गुरु नानकदेवजी का घर था, जहाँ उनके दो बेटों बाबा श्रीचंद और बाबा लक्ष्मीदास का जन्म हुआ था।
4. गुरुद्वारा कोठी साहिब- सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला) नवाब दौलतखान लोधी ने हिसाब-किताब में ग़ड़बड़ी की आशंका में नानकदेवजी को जेल भिजवा दिया। लेकिन जब नवाब को अपनी गलती का पता चला तो उन्होंने नानकदेवजी को छोड़ कर माफी ही नहीं माँगी, बल्कि प्रधानमंत्री बनाने का प्रस्ताव भी रखा, लेकिन गुरु नानक ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
5.गुरुद्वारा बेर साहिब- सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला) जब एक बार गुरु नानक अपने सखा मर्दाना के साथ वैन नदी के किनारे बैठे थे तो अचानक उन्होंने नदी में डुबकी लगा दी और तीन दिनों तक लापता हो गए, जहाँ पर कि उन्होंने ईश्वर से साक्षात्कार किया। सभी लोग उन्हें डूबा हुआ समझ रहे थे, लेकिन वे वापस लौटे तो उन्होंने कहा- एक ओंकार सतिनाम। गुरु नानक ने वहाँ एक बेर का बीज बोया, जो आज बहुत बड़ा वृक्ष बन चुका है।
6. गुरुद्वारा अचल साहिब- गुरुदासपुर अपनी यात्राओं के दौरान नानकदेव यहाँ रुके और नाथपंथी योगियों के प्रमुख योगी भांगर नाथ के साथ उनका धार्मिक वाद-विवाद यहाँ पर हुआ। योगी सभी प्रकार से परास्त होने पर जादुई प्रदर्शन करने लगे। नानकदेवजी ने उन्हें ईश्वर तक प्रेम के माध्यम से ही पहुँचा जा सकता है, ऐसा बताया।
7. गुरुद्वारा डेरा बाबा नानक- गुरुदासपुर जीवनभर धार्मिक यात्राओं के माध्यम से बहुत से लोगों को सिख धर्म का अनुयायी बनाने के बाद नानकदेवजी रावी नदी के तट पर स्थित अपने फार्म पर अपना डेरा जमाया और 70 वर्ष की साधना के पश्चात सन्‌ 1539 ई. में परम ज्योति में विलीन हुए।

जीवन की घटनाएं :---
भादों की अमावस की धुप अँधेरी रात में बादलों की डरावनी गड़गड़ाहट, बिजली की कौंध और वर्षा के झोंके के बीच जबकि पूरा गाँव नींद में निमग्न था, उस समय एक ही व्यक्ति जाग रहा था,'नानक'। नानक देर रात तक जागते रहे और गाते रहे। आधी रात के बाद माँ ने दस्तक दी और कहा- 'बेटे, अब सो भी जाओ। रात कितनी बीत गई है।'
नानक रुके, लेकिन उसी वक्त पपीहे ने शोर मचाना शुरू कर दिया। नानक ने माँ से कहा- 'माँ अभी तो पपीहा भी चुप नहीं हुआ। यह अब तक अपने प्यारे को पुकार रहा है। मैं कैसे चुप हो जाऊँ जब तक यह गाता रहेगा, तब तक मैं भी अपने प्रिय को पुकारता रहूँगा।
नानक ने फिर गाना प्रारंभ कर दिया। धीरे-धीरे उनका मन पुनः प्रियतम में लीन हो गया। कौन है ये नानक, क्या केवल सिख धर्म के संस्थापक। नहीं, मानव धर्म के उत्थापक। क्या वे केवल सिखों के आदि गुरु थे? नहीं, वे मानव मात्र के गुरु थे। पाँच सौ वर्षों पूर्व दिए उनके पावन उपदेशों का प्रकाश आज भी मानवता को आलोकित कर रहा है।

नाम धरियो हिंदुस्तान :---
कहते हैं कि नानकदेवजी से ही हिंदुस्तान को पहली बार हिंदुस्तान नाम मिला। लगभग 1526 में जब बाबर द्वारा देश पर हमला करने के बाद गुरु नानकदेवजी ने कुछ शब्द कहे थे तो उन शब्दों में पहली बार हिंदुस्तान शब्द का उच्चारण हुआ था-
खुरासान खसमाना कीआ 

हिंदुस्तान डराईआ।

कार्तिक पूर्णिमा


सृष्टि के आरंभ से ही एक तिथि बड़ी ही खास रही है। यह तिथि है कार्तिक पूर्णिमा। इसका महत्व सिर्फ वैष्णव भक्तों के लिए ही नहीं शैव भक्तों के लिए भी है।
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा कार्तिक पूर्णिमा कही जाती है। इस दिन महादेवजी ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का संहार किया था। इससे देवगण बहुत प्रसन्न हुए और भगवान विष्णु ने शिव जी को त्रिपुरारी नाम दिया जो शिव के अनेक नामों में से एक है।  इसलिए इसे 'त्रिपुरी पूर्णिमा' भी कहते हैं।

पौराणिक और लोककथाएँ:---
पुराणों में :--
विष्णु के भक्तों के लिए यह दिन इसलिए खास है क्योंकि भगवान विष्णु का पहला अवतार इसी दिन हुआ था। प्रथम अवतार में भगवान विष्णु मत्स्य यानी मछली रूप में थे।
भगवान को यह अवतार वेदों की रक्षा, प्रलय के अंत तक सप्तऋषियों, अनाजों एवं राजा सत्यव्रत की रक्षा के लिए लेना पड़ा था। इससे पुनः सृष्टि का निर्माण कार्य आसान हुआ।
महाभारत में :--
महाभारत काल में हुए 18 दिनों के विनाशकारी युद्ध में योद्धाओं और सगे संबंधियों को देखकर जब युधिष्ठिर कुछ विचलित हुए तो भगवान श्री कृष्ण पांडवों के साथ गढ़ खादर के विशाल रेतीले मैदान पर आए। कार्तिक शुक्ल अष्टमी को पांडवों ने स्नान किया और कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी तक गंगा किनारे यज्ञ किया। इसके बाद रात में दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए दीपदान करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की।
वैष्णव मत में :--
इस दिन कृत्तिका पर चंद्रमा और विशाखा पर सूर्य हो तो 'पद्मक योग' होता है जो पुष्कर में भी दुर्लभ है। इस दिन कृतिका पर चंद्रमा और बृहस्पति हो तो यह 'महापूर्णिमा' कहलाती है। इस दिन सन्ध्याकाल में त्रिपुरोत्सव करके दीपदान करने से पूनर्जन्मादि कष्ट नहीं होता। इस तिथि में कृत्तिका में विश्व स्वामी का दर्शन करने से ब्राह्मण सात जन्म तक वेदपाठी और धनवान होता है।
गुरुनानक जयंती :--
सिख सम्प्रदाय में कार्तिक पूर्णिमा का दिन प्रकाशोत्सव के रूप में मनाया जाता है। क्योंकि इस दिन सिख सम्प्रदाय के संस्थापक गुरू नानक देव का जन्म हुआ था। इस दिन सिख सम्प्रदाय के अनुयायी सुबह स्नान कर गुरूद्वारों में जाकर गुरूवाणी सुनते हैं और नानक जी के बताये रास्ते पर चलने की सौगंध लेते हैं। इसे गुरु पर्व भी कहा जाता है।

महत्व :---
इसलिए इस दिन गंगा स्नान का और विशेष रूप से गढ़मुक्तेश्वर तीर्थ नगरी में आकर स्नान करने का विशेष महत्व है। इस दिन गंगा स्नान के बाद दीप-दान आदि का फल दस यज्ञों के समान होता है। ब्रह्मा, विष्णु, शिव, अंगिरा और आदित्य ने इसे 'महापुनीत पर्व' कहा है। इसलिए इसमें गंगा स्नान, दीपदान, होम, यज्ञ तथा उपासना आदि का विशेष महत्त्व है।

पूजा और दान प्रथा:---
इस दिन चंद्रोदय पर शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा इन छ: कृतिकाओं का अवश्य पूजन करना चाहिए। कार्तिकी पूर्णिमा की रात्रि में व्रत करके वृष (बैल) दान करने से शिव पद प्राप्त होता है। गाय, हाथी, घोड़ा, रथ, घी आदि का दान करने से सम्पत्ति बढ़ती है। इस दिन उपवास करके भगवान का स्मरण, चिंतन करने से अग्निष्टोम यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है तथा सूर्यलोक की प्राप्ति होती है। इस दिन मेष (भेड़) दान करने से ग्रहयोग के कष्टों का नाश होता है। इस दिन कन्यादान से 'संतान व्रत' पूर्ण होता है। कार्तिकी पूर्णिमा से प्रारम्भ करके प्रत्येक पूर्णिमा को रात्रि में व्रत और जागरण करने से सभी मनोरथ सिद्ध होते हैं। इस दिन कार्तिक के व्रत धारण करने वालों को ब्राह्मण भोजन, हवन तथा दीपक जलाने का भी विधान है। इस दिन यमुना जी पर कार्तिक स्नान की समाप्ति करके राधा-कृष्ण का पूजन, दीपदान, शय्यादि का दान तथा ब्राह्मण भोजन कराया जाता है। कार्तिक की पूर्णिमा वर्ष की पवित्र पूर्णमासियों में से एक है।

स्नान और दान विधि :---
महर्षि अंगिरा ने स्नान के प्रसंग में लिखा है कि यदि स्नान में कुशा और दान करते समय हाथ में जल व जप करते समय संख्या का संकल्प नहीं किया जाए तो कर्म फल की प्राप्ति नहीं होती है। शास्त्र के नियमों का पालन करते हुए इस दिन स्नान करते समय पहले हाथ पैर धो लें फिर आचमन करके हाथ में कुशा लेकर स्नान करें, इसी प्रकार दान देते समय में हाथ में जल लेकर दान करें। आप यज्ञ और जप कर रहे हैं तो पहले संख्या का संकल्प कर लें फिर जप और यज्ञादि कर्म करें।

कार्तिक पूर्णिमा की कथा:---
एक बार त्रिपुर राक्षस ने एक लाख वर्ष तक प्रयागराज में घोर तप किया। इस तप के प्रभाव से समस्त जड़-चेतन, जीव तथा देवता भयभीत हो गए। देवताओं ने तप भंग करने के लिए अप्सराएं भेजीं, पर उन्हें सफलता न मिल सकी। आख़िर ब्रह्मा जी स्वयं उसके सामने प्रस्तुत हुए और वर मांगने को कहा। त्रिपुर ने वर मांगा- 'न देवताओं के हाथों मरूं, न मनुष्य के हाथों।' इस वरदान के बल पर त्रिपुर निडर होकर अत्याचार करने लगा। इतना ही नहीं उसने कैलाश पर्वत पर भी चढ़ाई कर दी। परिणामत: महादेव तथा त्रिपुर में घमासान युद्ध छिड़ गया। अंत में शिव जी ने ब्रह्मा तथा विष्णु की सहायता से उसका संहार कर दिया। इस दिन क्षीरसागर दान का अनंत माहात्म्य है, क्षीरसागर का दान 24 अंगुल के बर्तन में दूध भरकर उसमें स्वर्ण या रजत की मछली छोड़कर किया जाता है। यह उत्सव दीपावली की भांति दीप जलाकर सायंकाल में मनाया जाता है |



मंगलवार, 12 नवंबर 2013

हनुमान मंदिर चलिया भाग 9.

आज सोमवार है ..... 4.11.13....
आज गोवर्धन पूजा है ...कुछ लोग इसे विश्वकर्मा दिवस भी कहते हैं ....
मंदिरों में यह अन्नकूट के रूप में भी मनाया जाता है ......
कल बहुत देर हो गई थी इसलिए आज भी सुबह सुबह ही मदिर चली गई थी ..... लगभग 6.45 हुए होंगे 
मेट्रो स्टेशन पर भी ख़ास भीड़ नहीं है क्योंकि स्कूल ऑफिस इस समय बंद हैं कुछ प्राइवेट कंपनियों को छोड़ कर ..... आज सभी दुकानों पर भी पूजा होती है और ज्यादातर छुट्टी ही रहती है .....
मौसम में काफी बदलाव आ गया है अब सुबह सुबह सर्दी लगने लगी है ...
मेट्रो से बाहर निकलते ही इस बात का अहसास होता है ...
मंदिर पहुंचकर माथा टेकने के बाद परिक्रमा कर रही थी ...तभी देखा ....
सारे फूल वगेरह जो समाधि [ जैसा महंत जी ने कहा यहाँ फूल दिए वगेरह रखे जाते हैं जो प्रतिमाओं पर चढ़ाये जाते हैं] में रखे हुए थे आज बिलकुल साफ़ है यह एक खाली सीड़ी है .....


जब माथा टेक कर बाहर आई तो देखा वोह समाधि से हटाए गए फूल वगेरह बाहर एक ढेर के रूप में पड़े हैं क्योंकि अभी कोई उचित समाधान नहीं हुआ है .....


चप्पल पहन मैं मेट्रो स्टेशन की तरफ बढ़ गई .....
और आज जल्दी घर भी पहुच गई ...

कल मिलते हैं कुछ नए पहलुओं के साथ....

हनुमान मंदिर चलिया भाग 10.क्रमशः......

हनुमान मंदिर चलिया भाग 8

आज रविवार है ... 3.11.2013....
आज दीपावली है ....
आज मैंने बाद में मंदिर जाने का सोचा क्योंकि मन में यही थी कि दिवाली का दिन है तो पीछे से सुबह सुबह कोई आ न जाए ,इसलिए दोपहर के भोजन के बाद 2 बजे घर से निकली तो बाजार से थोड़ा सामान वगेरह लेकर घर पहुँचाया और तब निकली मंदिर के लिए तो लगभग 2.20 हो चुके थे ....
आज बाजार में काफी भीड़ है ,बाजार में दोनों तरफ ठेले वाले अपना अपना सामान बेच रहे हैं ......मेट्रो स्टेशन पहुंची तो याद आया आज स्मार्ट कार्ड तो दूसरे पर्स में रह गया है इसलिए टोकन लेने के लिए भी काफी लम्बी कतार में इंतज़ार करना पड़ा .....
मेट्रो भी आज ठसाठस भरी हुई है सीट मिलने का कोई चांस नहीं था पर अन्दर प्रवेश करते ही सामने की सीट खाली मिल गई | आराम से बैठ कर गई ,....
आज मेट्रो से उतरकर जब रास्ते से गुजर रही थी तो पूरा रिवोली सिनेमा के सामने का आँगन कपड़ों से सजा हुआ था ....इसमें नए कपडे कम ही होते हैं जहां तक मुझे पता है यह कपडे बाहर के देशों से आते हैं जो गरीब देशों को फ्री में भेजे जाते हैं ,....पहले यही कपड़े 20.. 20 रुपये में मिल जाते थे अब यह 100 रुपये में मिलने लगे हैं ..यहाँ काफी भीड़ रहती है ....आज देर से आई हूँ इसलिए सारा बाजार लगा हुआ है ....




आज हनुमान मंदिर के बगल में ही सब मेंहदी वाले, टैटू वाले और तांत्रिक बाबा भी अपनी अपनी जगह पर जम चुके हैं .....



मंदिर में भी आज बहुत भीड़ है , 3 बज गए हैं ......
मंदिर में आज भंडारा चल रहा है ...पहले से इसमें भी परिवर्तन आया है पहले दो दो डोने दिए जाते थे एक सब्जी का एक में पूड़ी और बाद में एक हलवे का ,लेकिन अब थर्मोकोल की थाली दी गई है जिससे अब बैठकर आराम से खाया जा सकता है ...
आज सब मूर्तियाँ विशेष रूप से सजी हुई हैं और हनुमान प्रतिमा का सुन्दर स्वर्ण श्रृंगार किया गया है आज खुले दर्शन हो रहे हैं ....बीच में थोड़ी देर भीड़ कम हुई तो यह तस्वीर ले पाई हूँ जो आप तक पहुंचाती हूँ ....




सुसज्जित प्रतिमाएं 

मैंने भी माथा टेकने के बाद प्रसाद ग्रहण किया ,फिर वापिस चल दी ..
आज घर पहुँचाने में भी 4.30 बज गए हैं क्योंकि बाजारों में काफी भीड़ है ..
         पटाखों को अब लोग न ही कहने लगे हैं या यह समझ लो कि जेब ही जवाब दे गई है खरीदने की हिम्मत ही केवल वोही करता है जिसके पास पैसे बर्बाद करने के लिए हैं क्योंकि पटाखों की कीमत आज तीन गुना है | ...यहाँ त्यौहार मनाने के लिए प्याज आलू खाने के तो पैसे नहीं हैं आम आदमी की जेब में मिठाई खाए बिना ही तनाव से ही उसे शुगर हो रही है कि कैसे मनाये आखिर वो दिवाली ?



मिलते हैं कल नए अनुभव लिए अगले पोस्ट में ...

हनुमान मंदिर चलिया भाग 9.क्रमशः.....

सोमवार, 11 नवंबर 2013

हनुमान मंदिर चलिया भाग 7.

आज शनिवार है ...  2.11.2013...
आज छोटी दिवाली है ...सड़कों पर ..मेट्रो में काफी भीड़ है ... 
आज राजीव चौक पर मेट्रो से निकल कर जल्दी में गलत गेट से बाहर निकल गई ,पर उसी वक्त समझ आ गया गड़बड़ हो गई है कुछ अलग सा निकास द्वार है...
वहीँ खड़े एक कर्मचारी से पूछा मुझे वापिस इधर ही जाना है तो क्या करूँ ?
उन्होंने बताया आप दोबारा से प्रवेश कर जाएँ आपके 8 रुपये फालतू कट जायेंगे ,मैंने वैसे ही किया क्योंकि दूसरे गेट से बाहर निकल कर पता नहीं कितना दूर चलना पड़ता इसलिए यही बेहतर था ....
गेट नंबर 7 से बाहर निकल जब मोहन सिंह पैलेस के आगे पहुंची तो जैसे फूलों की बहार आ गई हो ....बहुत सारे फूल लगे हुए थे ... उत्सुकतावश पूछा भैया आज क्या है ? आज इतने फूल ...



उसने बताया कल दिवाली है तो बिक्री ज्यादा होती है ...
फूल वाले अंकल जी जिनका नाम राजीव कपूर है वो यहाँ 15 वर्षों से फूलों का काम कर रहे हैं ...
उन्होंने बताया पहले फूल ...पास में ही फूलों की मंडी थी वहां से आते थे जो एशिया की सबसे बड़ी मंडी मानी जाती रही है ,परन्तु 3 वर्ष से वोह बंद हो गई है ...अब फूल गाजीपुर से आते हैं ...
यहाँ से निकलते हुए मंदिर पहुंची तो पता चला आज तो यहाँ भी 8 बजे ही इतनी भीड़ हो गई है ,फिर याद आया आज शनिवार है ....हनुमान जी का एक और ख़ास वार .....
आज भी बैरियर लगा दिया गया है महिलाएं अलग और पुरूष अलग जायेंगे ... जैसा की तस्वीर में आप देख रहे हैं ...


गर्भ गृह के अन्दर बिलकुल सामने और हनुमान प्रतिमा के बगल में आपको भगवान राम ,सीता मैया और लक्ष्मण की प्रतिमाएं नजर आती हैं उनके आगे बहुत छोटी छोटी बहुत सारी प्रतिमाएं ....


माथा दूर से ही टेक कर बाहर आ गई परिक्रमा की और घर के लिए निकल पड़ी ,मेट्रो स्टेशन पहुँच कर जल्दी से मेट्रो ली और घर आ गई |
चलिए मिलते हैं कल दीपावली की बहुत सारी खुशिओं के साथ ...





शनिवार, 9 नवंबर 2013

हनुमान मंदिर चलिया भाग 6.

आज शुक्रवार है ..... 1.11.2013....
आज धनतेरस है ..बाजार सजने शुरू हो चुके हैं ....
आज स्कूल के बच्चों का भी आखिरी कार्यदिवस है इसलिए सड़क पर बच्चों का और स्कूल वैन का आना जाना लगा है ...इसके बाद दिवाली की छुट्टियाँ होने जा रही हैं |
जल्दी से मेट्रो तक पहुंची हूँ ,आज स्टेशन पर काफी भीड़ है ...गाड़ी आने में अभी 3 मिनट का समय है इसलिए महिलायों के डिब्बे तक आराम से पहुँच गई हूँ ....
कभी सामने मेट्रो खड़ी होती है तो महिलायों के डिब्बे तक पहुँचने का समय नहीं होता है तो सामने खुले आम डिब्बे में ही प्रवेश कर लेते हैं .....
आज कुछ पढने का लिखने का मन नहीं कर रहा है इसलिए ऐसे ही आते जाते लोगों को देख रही हूँ ...
राजीव चौक पहुंचकर जल्दी से गेट  नंबर 7 से बाहर आ गई हूँ .....
मंदिर पहुँच गई हूँ ..... 
गर्भ गृह में प्रवेश करने से पहले ऊपर दिवार पर चालीसा लिखा हुआ है कुछ लोग वहां से ही पढ़ते हैं और कुछ लोग वहीँ से चालीसा लेकर भी पढ़ लेते हैं |

माथा टेक कर मैंने महंत जी से फूलों के बारे में बात की ...
आज कूड़ा और बाहर तक बिखरा हुआ है ,जैसा की महंत जी ने बताया इसे समाधि बोलते हैं यहाँ फूल दिए वगेरह इकठ्ठे होते रहते हैं और हर बुद्दवार को इसे भेज दिया जाता है...


मैंने उनको बताया दूसरे मंदिर वाले फूलों की समस्या से निपटने के लिए क्या कर रहे हैं ?

  • एक मंदिर के प्रधान जी ने बताया कि वो फूलों को गड्गंगा में बहाने के लिए भेजते रहे हैं ..पर अब वो भी शायद बैन हो रहा है ....
  • या फिर फूलों को अखबार पर बिछाकर छत्त पर सुखा लिया जाता है तो उससे जो बीज एकत्र होते हैं वोह नर्सरी में दे दिए जाते हैं ....
  • एक मंदिर वाले ने बताया कि कुछ खाद बनाने वाले या अगरबत्ती बनाने वाले भी ले जाते हैं 
  • कुछ ने सुझाव दिया सामग्री में भी इसका प्रयोग होता है ....कुछ सामग्री बनाने वाले भी ले जाते हैं ....

इतना बताकर मैं मंदिर से बाहर आ गई ..
मेट्रो लेकर घर पहुँच गई आज काफी भीड़ है मेट्रो में ...
जानते हैं आगे का हाल मेरे साथ ....अगले भाग में...

हनुमान मंदिर चलिया भाग 7.क्रमशः.... 

हनुमान मंदिर चलिया भाग 5.

आज वीरवार है ... 31.10.2013...
आज सुबह 6.45 पर ही फ्री होकर निकल गई मंदिर के लिए ..
आज रास्ते सजे हुए हैं सभी बाजारों में लड़ियाँ वगेरह लग चुकी हैं क्योंकि दिवाली आने वाली है ......
6.59 पर मेट्रो में प्रवेश कर चुकी हूँ सामने वाले डिब्बे खाली मिलते हैं तो उसी में चढ़ जाते हैं नहीं तो महिलायों वाले डिब्बे में आगे चलकर जाना पड़ता है ,अगर सीट नहीं मिलती तो अन्दर से ही आगे पहुँच जाते हैं 
जैसे कि सुबह सुबह काफी स्टूडेंट्स दिखाई देते हैं तो....
 आज भी किसी स्कूल के स्टूडेंट्स दो लड़के मेट्रो में चढ़े और आपस में वार्तालाप शुरू हो गया ...
आजकल के बच्चों को पता नहीं क्या हो गया है गली निकाले बिना बात नहीं करते हैं साला साला तो ऐसे बोलते हैं जैसे इनकी मातृभाषा हो ...
आपस में जो बातचीत हो रही थी वो बहुत ही टेंशन में थे कि स्कूल पहुँचाने में आज फिर लेट हो गए हैं ...
कहीं प्रिंसी [ शार्ट फॉर्म of प्रिंसिपल ] मेरे घर फ़ोन न कर दे पापा आज घर पर हैं बहुत गालियां देंगे ,अगर पापा चले गए तो मम्मी को तो मैं संभाल लूँगा ..
दूसरा बोला अगर स्कूल में enter नहीं करने दिया तो मैं तो घर आ जायूँगा आराम से आकर रेस्ट करूँगा फिर उठकर पढूंगा ....
अरे अमित बम फोड़ता है तो प्रिंसी उसे कुछ नहीं कहती हमें तो स्कूल से निकाल देगी ....
आज का हमारा भविष्य कितना तनावपूर्ण माहौल में जी रहा है भगवान ही मालिक है इन सबका ....
मेट्रो से उतरकर मंदिर पहुँच गई हूँ और माथा टेकने के बाद वोही फूलों का ढेर देख मन में आया महंत जी से पूछती हूँ इसकी क्या व्यवस्था है ...
इसलिए महंत प्रमोद शर्मा जी से पूछा आप फूलों का क्या करते हैं तो उन्होंने कहा पहले तो यमुना जी में बहा देते थे लेकिन अब समस्या हो गई है आपके पास कोई उपाय हो तो बताएं ,मैंने कहा मैं आपको कल ही पता करके बताती हूँ ....
इतना कह मैं बाहर आ गई और पहुँच गई मेट्रो से अपने घर की तरफ ...
आते समय सड़क पर भीड़ हो जाती है सभी ऑफिस वगेरह जा रहे होते हैं |
तो मिलते हैं कल फूलों के समाधान के साथ .....

हनुमान मंदिर चलिया भाग 6 ......

शुक्रवार, 8 नवंबर 2013

छठ पर्व

छठ पर्व या छठ कार्तिक शुक्ल की षष्ठी को मनाया जाने वाला एक हिन्दू पर्व है। सूर्योपासना का यह अनुपम लोकपर्व मुख्य रूप से पूर्वी भारत के बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है। प्रायः हिंदुओं द्वारा मनाए जाने वाले इस पर्व को इस्लाम सहित अन्य धर्मावलंवी भी मनाते देखे गए हैं।

नामकरण :---
छठ पर्व छठ, षष्टी का अपभ्रंश है। कार्तिक मास की अमावस्या को दीवाली मनाने के तुरंत बाद मनाए जाने वाले इस चार दिवसिए व्रत की सबसे कठिन और महत्वपूर्ण रात्रि कार्तिक शुक्ल सष्ठी की होती है। इसी कारण इस व्रत का नामकरण छठ व्रत हो गया।

Kartik Chhath,

तिथि :---
दीपावली के छठे दिन से शुरू होने वाला छठ का पर्व चार दिनों तक चलता है। इन चारों दिन श्रद्धालु भगवान सूर्य की आराधना करके वर्षभर सुखी, स्वस्थ और निरोगी होने की कामना करते हैं। चार दिनों के इस पर्व के पहले दिन घर की साफ-सफाई की जाती है।

लोक आस्था का पर्व :---
हमारे देशमें सूर्योपासनाके लिए प्रसिद्ध पर्व है छठ । मूलत: सूर्य षष्ठी व्रत होनेके कारण इसे छठ कहा गया है । यह पर्व वर्षमें दो बार मनाया जाता है । पहली बार चैत्रमें और दूसरी बार कार्तिकमें । चैत्र शुक्लपक्ष षष्ठीपर मनाए जानेवाले छठ पर्वको चैती छठ व कार्तिक शुक्लपक्ष षष्ठीपर मनाए जानेवाले पर्वको कार्तिकी छठ कहा जाता है । पारिवारिक सुख-स्मृद्धि तथा मनोवांछित फलप्राप्तिके लिए यह पर्व मनाया जाता है । इस पर्वको स्त्री और पुरुष समानरूपसे मनाते हैं ।लोकपरंपराके अनुसार सूर्य देव और छठी मइयाका संबंध भाई-बहनका है । 

सूर्य पूजा का संदर्भ :---
छठ पर्व मूलतः सूर्य की आराधना का पर्व है, जिसे हिंदू धर्म में विशेष स्थान प्राप्त है। हिंदू धर्म के देवताओं में सूर्य ऐसे देवता हैं जिन्हें मूर्त रूप में देखा जा सकता है।
सूर्य की शक्तियों का मुख्य श्रोत उनकी पत्नी ऊषा और प्रत्यूषा हैं। छठ में सूर्य के साथ-साथ दोनों शक्तियों की संयुक्त आराधना होती है। प्रात:काल में सूर्य की पहली किरण (ऊषा) और सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण (प्रत्यूषा) को अघ्र्य देकर दोनों का नमन किया जाता है।

सूर्योपासना की परंपरा :---
भारत में सूर्योपासना ऋग वैदिक काल से होती आ रही है। सूर्य और इसकी उपासना की चर्चा विष्णु पुराण, भगवत पुराण, ब्रह्मा वैवर्त पुराण आदि में विस्तार से की गई है। मध्य काल तक छठ सूर्योपासना के व्यवस्थित पर्व के रूप में प्रतिष्ठित हो गया, जो अभी तक चला आ रहा है। तालाब में पूजा करते हैं।
देवता के रूप में:-
सृष्टि और पालन शक्ति के कारण सूर्य की उपासना सभ्यता के विकास के साथ विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग रूप में प्रारंभ हो गई, लेकिन देवता के रूप में सूर्य की वंदना का उल्लेख पहली बार ऋगवेद में मिलता है। इसके बाद अन्य सभी वेदों के साथ ही उपनिषद आदि वैदिक ग्रंथों में इसकी चर्चा प्रमुखता से हुई है। निरुक्त के रचियता यास्क ने द्युस्थानीय देवताओं में सूर्य को पहले स्थान पर रखा है।
मानवीय रूप की कल्पना:-
उत्तर वैदिक काल के अंतिम कालखंड में सूर्य के मानवीय रूप की कल्पना होने लगी। इसने कालांतर में सूर्य की मूर्ति पूजा का रूप ले लिया। पौराणिक काल आते-आते सूर्य पूजा का प्रचलन और अधिक हो गया। अनेक स्थानों पर सूर्य देव के मंदिर भी बनाए गए।
आरोग्य देवता के रूप में:-
पौराणिक काल में सूर्य को आरोग्य देवता भी माना जाने लगा था। सूर्य की किरणों में कई रोगों को नष्ट करने की क्षमता पाई गई। ऋषि-मुनियों ने अपने अनुसंधान के क्रम में किसी खास दिन इसका प्रभाव विशेष पाया। संभवत: यही छठ पर्व के उद्भव की बेला रही हो। भगवान कृष्ण के पौत्र शाम्ब को कुष्ठ हो गया था। इस रोग से मुक्ति के लिए विशेष सूर्योपासना की गई, जिसके लिए शाक्य द्वीप से ब्राह्मणों को बुलाया गया था।

प्रचलित लोक कथाएं :---
रामायण से :-
एक मान्यता के अनुसार लंका विजय के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान राम और माता सीता ने उपवास किया और सूर्यदेव की आराधना की। सप्तमी को सूर्योदय के समय पुनः अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशिर्वाद प्राप्त कियाथा।
महाभारत से :-
एक अन्य मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। सबसे पहले सूर्य पुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा शुरू की। कर्ण भगवान सूर्य का परम भक्त था। वह प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में ख़ड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देता था। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बना था। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही पद्धति प्रचलित है।
एक कथाके अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुएमें हार गए, तब द्रौपदीने छठ व्रत रखा । तब उसकी मनोकामनाएं पूरी हुईं तथा पांडवोंको राजपाट वापस मिल गया ।
कुछ कथाओं में पांडवों की पत्नी द्रोपदी द्वारा भी सूर्य की पूजा करने का उल्लेख है। वे अपने परिजनों के उत्तम स्वास्थ्य की कामना और लंबी उम्र के लिए नियमित सूर्य पूजा करती थीं।
पुराणों से:-
एक कथा के अनुसार राजा प्रियवद को कोई संतान नहीं थी, तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए बनाई गई खीर दी। इसके प्रभाव से उन्हें पुत्र हुआ परंतु वह मृत पैदा हुआ। प्रियवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त भगवान की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुई और कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं। राजन तुम मेरा पूजन करो तथा और लोगों को भी प्रेरित करो। राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी। 

सांस्कृतिक महत्व :---
छठ पूजा का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष इसकी सादगी पवित्रता और लोकपक्ष है। भक्ति और आध्यात्म से परिपूर्ण इस पर्व के लिए न विशाल पंडालों और भव्य मंदिरों की जरूरत होती है न ऐश्वर्य युक्त मूर्तियों की। बिजली के लट्टुओं की चकाचौंध, पटाखों के धमाके और लाउडस्पीकर के शोर से दूर यह पर्व बाँस निर्मित सूप, टोकरी, मिट्टी के बरतनों, गन्ने के रस, गुड़, चावल और गेहूँ से निर्मित प्रसाद, और सुमधुर लोकगीतों से युक्त होकर लोक जीवन की भरपूर मिठास का प्रसार करता है।
शास्त्रों से अलग यह जन सामान्य द्वारा अपने रीति-रिवाजों के रंगों में गढ़ी गई उपासना पद्धति है। इसके केंद्र में वेद, पुराण जैसे धर्मग्रंथ न होकर किसान और ग्रामीण जीवन है। इस व्रत के लिए न विशेष धन की आवश्यकता है न पुरोहित या गुरु के अभ्यर्थअना की। जरूरत पड़ती है तो पास-पड़ोस के साथकी जो अपनी सेवा के लिए सहर्ष और कृतज्ञतापूर्वक प्रस्तुत रहता है। इस उत्सव के लिए जनता स्वयं अपने सामूहिक अभियान संगठित करती है। नगरों की सफाइ, व्रतियों के गुजरने वाले रास्तों का प्रबंधन, तालाव या नदी किनारे अर्घ्य दान की उपयुक्त व्यवस्था के लिए समाज सरकार के सहायता की राह नहीं देखता। इस उत्सव में खरना के उत्सव से लेकर अर्ध्यदान तक समाज की अनिवार्य उपस्थिति बनी रहती है। यह सामान्य और गरीब जनता के अपने दैनिक जीवन की मुश्किलों को भुलाकर सेवा भाव और भक्ति भाव से किए गए सामूहिक कर्म का विराट और भव्य प्रदर्शन है।

वैज्ञानिक महत्व :---
छठ पर्वकी परंपरा में बहुत ही गहरा विज्ञान छिपा हुआ है, षष्ठी तिथि (छठ) एक विशेष खगौलीय अवसर है । उस समय सूर्य की पराबैगनी किरणें (ultra violet rays) पृथ्वीकी सतहपर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं । उसके संभावित कुप्रभावोंसे मानवकी यथासंभव रक्षा करनेका सामर्थ्य इस परंपरामें है । पर्वपालनसे सूर्य (तारा) प्रकाश (पराबैगनी किरण) के हानिकारक प्रभावसे जीवोंकी रक्षा संभव है । पृथ्वीके जीवोंको इससे बहुत लाभ मिल सकता है । सूर्यके प्रकाशके साथ उसकी पराबैगनी किरण भी चंद्रमा और पृथ्वीपर आती हैं । सूर्यका प्रकाश जब पृथ्वीपर पहुंचता है, तो पहले उसे वायुमंडल मिलता है । वायुमंडलमें प्रवेश करनेपर उसे आयन मंडल मिलता है । पराबैगनी किरणोंका उपयोग कर वायुमंडल अपने ऑक्सीजन तत्त्वको संश्लेषित कर उसे उसके एलोट्रोप ओजोनमें बदल देता है । इस क्रियाद्वारा सूर्यकी पराबैगनी किरणोंका अधिकांश भाग पृथ्वीके वायुमंडलमें ही अवशोषित हो जाता है । पृथ्वीकी सतहपर केवल उसका नगण्य भाग ही पहुंच पाता है । सामान्य अवस्थामें पृथ्वीकी सतहपर पहुंचनेवाली पराबैगनी किरणकी मात्रा मनुष्यों या जीवोंके सहन करनेकी सीमामें होती है । अत: सामान्य अवस्थामें मनुष्योंपर उसका कोई विशेष हानिकारक प्रभाव नहीं पडता, बल्कि उस धूपद्वारा हानिकारक कीटाणु मर जाते हैं, जिससे मनुष्य या जीवनको लाभ ही होता है । छठ जैसी खगौलीय स्थिति (चंद्रमा और पृथ्वीके भ्रमण तलोंकी सम रेखाके दोनों छोरोंपर) सूर्यकी पराबैगनी किरणें कुछ चंद्र सतहसे परावर्तित तथा कुछ गोलीय अपवर्तित होती हुई, पृथ्वीपर पुन: सामान्यसे अधिक मात्रामें पहुंच जाती हैं । वायुमंडलके स्तरोंसे आवर्तित होती हुई, सूर्यास्त तथा सूर्योदयको यह और भी सघन हो जाती है । ज्योतिषीय गणनाके अनुसार यह घटना कार्तिक तथा चैत्र मासकी अमावस्याके छ: दिन उपरांत आती है । ज्योतिषीय गणनापर आधारित होनेके कारण इसका नाम और कुछ नहीं, बल्कि छठ पर्व ही रखा गया है ।

छठ पर्व पर लोकगीत की परंपरा : - 
वैसे तो हर तीज-त्योहार पर लोकगीतों की परंपरा रही है किंतु छठ पर्व पर विशेष धुन और विशिष्ट अंदाज में लोकगीत गाने की परंपरा है। लोकपर्व छठ के विभिन्न अवसरों पर जैसे प्रसाद बनाते समय, खरना के समय, अर्घ्य देने के लिए जाते हुए, अर्घ्य दान के समय और घाट से घर लौटते समय अनेकों सुमधुर और भक्ति भाव से पूर्ण लोकगीत गाए जाते हैं। पुरूष,महिलाएं,बच्चे समूह में लोकगीत जिसे सोहर कहते हैं ,गाते हुए चलते हैं यथा :

काचि ही बांस कै बहिंगी लचकत जाय
भरिहवा जै होउं कवनरम, भार घाटे पहुँचाय 
बाटै जै पूछेले बटोहिया ई भार केकरै घरै जाय 
आँख तोरे फूटै रे बटोहिया जंगरा लागै तोरे घूम 
छठ मईया बड़ी पुण्यात्मा ई भार छठी घाटे जाय

छठ पर्व का विधान:---
छठ पूजा चार दिवसीय उत्सव है। इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को तथा समाप्ति कार्तिक शुक्ल सप्तमी को होती है। इस दौरान व्रतधारी लगातार 36 घंटे का व्रत रखते हैं। इस दौरान वे पानी भी ग्रहण नहीं करते। लहसून, प्याज वर्ज्य है । जिन घरों में यह पूजा होती है, वहां भक्तिगीत गाए जाते हैं । 
गन्ने के छत्र के नीचे छठ मैया का चढ़ावा

आजकल कुछ नई रीतियां भी आरंभ हो गई हैं, जैसे पंडाल और सूर्यदेवता की मूर्ति की स्थापना करना । उसपर भी रोषनाई पर काफी खर्च होता है और सुबह के अर्घ्यके उपरांत आयोजनकर्ता माईक पर चिल्लाकर प्रसाद मांगते हैं । पटाखे भी जलाए जाते हैं । कहीं-कहीं पर तो ऑर्केस्ट्राका भी आयोजन होता है; परंतु साथ ही साथ दूध, फल, उदबत्ती भी बांटी जाती है । पूजा की तैयारी के लिए लोग मिलकर पूरे रास्ते की सफाई करते हैं ।
नहाय खाय:-
पहला दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी ‘नहाय-खाय’ के रूप में मनाया जाता है। सबसे पहले घर की सफाइ कर उसे पवित्र बना लिया जाता है। इसके पश्चात छठव्रती स्नान कर पवित्र तरीके से बने शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण कर व्रत की शुरुआत करते हैं। घर के सभी सदस्य व्रती के भोजनोपरांत ही भोजन ग्रहण करते हैं। भोजन के रूप में कद्दू-दाल और चावल ग्रहण किया जाता है। यह दाल चने की होती है।
लोहंडा और खरना:-
दूसरे दिन कार्तीक शुक्ल पंचमी को व्रतधारी दिन भर का उपवास रखने के बाद शाम को भोजन करते हैं। इसे ‘खरना’ कहा जाता है। खरना का प्रसाद लेने के लिए आस-पास के सभी लोगों को निमंत्रित किया जाता है। प्रसाद के रूप में गन्ने के रस में बने हुए चावल की खीर के साथ दूध, चावल का पिट्ठा और घी चुपड़ी रोटी बनाई जाती है। इसमें नमक या चीनी का उपयोग नहीं किया जाता है। इस दौरान पूरे घर की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है।
संध्या अर्घ्य:-
तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को दिन में छठ प्रसाद बनाया जाता है। प्रसाद के रूप में ठेकुआ, जिसे कुछ क्षेत्रों में टिकरी भी कहते हैं, के अलावा चावल के लड्डू, जिसे लड़ुआ भी कहा जाता है, बनाते हैं। इसके अलावा चढ़ावा के रूप में लाया गया साँचा और फल भी छठ प्रसाद के रूप में शामिल होता है।
छठ पूजा

शाम को पूरी तैयारी और व्यवस्था कर बाँस की टोकरी में अर्घ्य का सूप सजाया जाता है और व्रति के साथ परिवार तथा पड़ोस के सारे लोग अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने घाट की ओर चल पड़ते हैं। सभी छठव्रती एक नीयत तालाब या नदी किनारे इकट्ठा होकर सामूहिक रूप से अर्घ्य दान संपन्न करते हैं। सूर्य को जल और दूध का अर्घ्य दिया जाता है तथा छठी मैया की प्रसाद भरे सूप से पूजा की जाती है। इस दौरान कुछ घंटे के लिए मेले का दृश्य बन जाता है।
उषा अर्घ्य:-
चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह उदियमान सूर्य को अघ्र्य दिया जाता है। ब्रती वहीं पुनः इक्ट्ठा होते हैं जहाँ उन्होंने शाम को अर्घ्य दिया था। पुनः पिछले शाम की प्रक्रिया की पुनरावृत्ति होती है। अंत में व्रति कच्चे दूध का शरबत पीकर तथा थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत पूर्ण करते हैं।

chhath

छठ व्रत :---
छठ उत्सव के केंद्र में छठ व्रत है जो एक कठिन तपस्या की तरह है। यह प्रायः महिलाओं द्वारा किया जाता है किंतु कुछ पुरुष भी यह व्रत रखते हैं। व्रत रखने वाली महिला को परवैतिन भी कहा जाता है। चार दिनों के इस व्रत में व्रती को लगातार उपवास करना होता है। भोजन के साथ ही सुखद शैय्या का भी त्याग किया जाता है। पर्व के लिए बनाए गए कमरे में व्रती फर्श पर एक कंबल या चादर के सहारे ही रात बिताई जाती है। इस उत्सव में शामिल होने वाले लोग नए कपड़े पहनते हैं। पर व्रती ऐसे कपड़े पहनते हैं, जिनमें किसी प्रकार की सिलाई नहीं की होती है। महिलाएं साड़ी और पुरुष धोती पहनकर छठ करते हैं। ‘शुरू करने के बाद छठ पर्व को सालोंसाल तब तक करना होता है, जब तक कि अगली पीढ़ी की किसी विवाहित महिला को इसके लिए तैयार न कर लिया जाए। घर में किसी की मृत्यु हो जाने पर यह पर्व नहीं मनाया जाता है।’
ऐसी मान्यता है कि छठ पर्व पर व्रत करने वाली महिलाओं को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। पुत्र की चाहत रखने वाली और पुत्र की कुशलता के लिए सामान्य तौर पर महिलाएं यह व्रत रखती हैं। किंतु पुरुष भी यह व्रत पूरी निष्ठा से रखते हैं।

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गुरुवार, 7 नवंबर 2013

हनुमान मंदिर चलिया भाग 4.

आज बुद्धवार है .... 30.10.2013....
आज घर से निकलने में थोड़ी देर हो गई है 7.05 हो चुके हैं ..
इसलिए सड़क पर चहलकदमी शुरू हो चुकी है बहुत सारी स्कूल वैन का आना जाना लगा हुआ है ...
पैदल चलने वाले लोग भी जल्दी जल्दी अपने गंतव्य पर पहुँचने को बेताब हैं ...
मैं भी जल्दी से मेट्रो स्टेशन पहुँच गई हूँ लेकिन आज देरी के कारण भीड़ अधिक हो गई है इसलिए मुझे मेट्रो में सीट नहीं मिली है ऐसे ही एक कोने में खड़ी हो गई हूँ सबको देख रही हूँ कौन क्या कर रहा है ?
तीन दिन से यही हो रहा था क्योंकि मुझे कानों में लगा कर सुनने की आदत नहीं है इसलिए आज मैं एक पुस्तक ले आई हूँ कुछ लेखकों की कविताएँ हैं इसमें ...
28 रचनाकारों का एक साँझा संकलन है बारी बारी सबको जानने की कोशिश कर रही हूँ मुझे यही समय का उचित प्रयोग नजर आया इसलिए पुस्तक पढने में लगी हूँ .....
ठीक समय पर राजीव चौक पहुँच चुकी हूँ और जल्दी से बाहर निकल गई हूँ क्योंकि मेरे पास स्मार्ट कार्ड है जिसके कुछ लाभ आपको बताती हूँ ...
1. आपको लम्बी पंक्तिओं में नहीं लगना पड़ता है | 
2. समय की बचत होती है |
3. भागदौड़ से बच जाते हो |
4. इसमें आपको डिस्काउंट भी मिलता है 10% का |
5.स्मार्ट कार्ड रिचार्ज की लम्बी पंक्तियाँ नहीं लगती हैं | 
6. अब आप अपने आप रिचार्ज कर सकते हैं हर स्टेशन पर इसकी मशीनें रख दी गई हैं |
7.अब एक और सुविधा इसकी आप घर बैठे ऑनलाइन रिचार्ज भी कर सकते हैं |
8.सबसे बड़ा फायदा अगर आप कहीं बाहर से आए हैं तो आते ही टोकन लेने के बजाये स्मार्ट कार्ड बनवाएं जितने दिन प्रयोग हो करें उसके बाद वापिस कर दें आपकी बकाया राशि आपको वापिस मिल जाएगी |
.... इतनी सुविधाएँ तो आखिर कोई क्यों नहीं लेगा स्मार्ट कार्ड ...

मंदिर पहुंचकर माथा टेका है आज फिर हनुमान जी का रजत श्रृंगार किया गया है इस के बाद परिक्रमा कर जल्दी से बाहर आ गई हूँ 



मोहन सिंह पैलेस के सामने यह भिखारी लोग उठने शुरू हो चुके हैं और अपनी अपनी दिनचर्या में व्यस्त हैं |


मैंने जल्दी से सड़क क्रॉस कर ली है और मेट्रो तक पहुँच गई हूँ आती बार भीड़ कम होती है इसलिए सीट मिल ही जाती है | कविताएँ पढते पढते अपने स्टेशन पहुँच चुकी हूँ जब यहाँ पहुंचती हूँ तो पुरुषों की पंक्ति काफी लम्बी हो चुकी है जो बाहर गेट से लेकर मेट्रो स्टेशन के अन्दर तक जा रही है | 
मिलते हैं कुछ और नए अनुभवों के साथ ....


बुधवार, 6 नवंबर 2013

हनुमान मंदिर चलिया भाग 3.

तीसरा दिन :--
आज मंगलवार है 29.10.2013 ...
हनुमान जी का वार ..
आज 6.45 पर घर से निकल गई थी जैसे ही मेट्रो से पहुंचकर मंदिर का रास्ता लिया ..
तो सब कुछ बदला बदला सा था ..
क्योंकि आज मंगलवार था इसलिए अब एक के स्थान पर बहुत सारे जूते चप्पल के रखवाले बैठे थे और सारा आलम ही बदला हुआ था ...


जूते चप्पल वाले

सब भिखारी जल्दी से पंक्ति में आकर बैठ गए हैं ..... अलग अलग जगह पर


 

केले वाले प्रसाद वाले सभी बाकी दिनों की बजाये ज्यादा हैं ,कचौरी वाले चाय वाले फूल वाले सब जगह फैले हुए हैं .....
मंदिर में भी भीड़ बढ़ने लगी है ..
हनुमान जी की मूर्ति जो की प्रवेश करते ही सामने नजर आती है उसके आगे आज बहुत सारे दिये प्रज्वलित हुए हैं.... 



गर्भ गृह के अन्दर हनुमान जी की प्रतिमा के आगे बहुत भीड़ रहती है और सबसे बड़ी बात वहां औरतों और पुरुषों को अलग अलग जाना पड़ता है औरते बाएँ तरफ से आगे बढती हैं और पुरूष लोग दायें तरफ से ....



गर्भ गृह में भीड़ 

इस बारे में गद्दी पर बैठे महंत जी से बात हुई थी ,मंगलवार को और शनिवार को बस बीच में बैरियर लगा दिए जाते हैं हर जगह सेवक तैनात रहते हैं ,अपने सामान की पर्स मोबाइल की सुरक्षा आपको स्वयं करनी पड़ती है ....मतलब कोई सिस्टम नहीं है ....
जल्दी ही अपने कुछ मित्रों की मदद से हम इसे सुधारने की कोशिश करेंगे अगर मंदिर प्रशासन हमें इसकी इज़ाज़त देता है तो .......
हनुमान प्रतिमा का आज फिर से रजत श्रृंगार किया गया है ...



हनुमान प्रतिमा के बिलकुल बराबर में है श्री राम लक्ष्मण और सीता मैया की प्रतिमा है ...
इसके आगे मंगलवार और शनिवार को एक और हनुमान प्रतिमा रख दी जाती है क्योंकि बाएं तरफ से आने वाली महिलाएं मुख्य प्रतिमा तक नहीं पहुँच पाती हैं इसलिए उनके प्रसाद का भोग इसी प्रतिमा को लगाया जाता है 



जानते हैं बाकी मदिर की व्यवस्था और मंदिर में स्थापित तस्वीरों के बारे में अगले भाग में ...
कल मिलते हैं कुछ और खट्टे मीठे अनुभवों के साथ ......

हनुमान मंदिर चलिया भाग 4.क्रमशः ......

हनुमान मंदिर चलिया भाग 2.

आज सोमवार का दिन है ,28 अक्तूबर 2013 ...
 समय वोही सुबह के 6.59 .
आज जैसे ही घर से निकली तो पैर टकराया सड़क पर पड़े पत्थरों से और चप्पल टूट गई |
क्योंकि नेता जी का 5 वर्ष का कार्य अब केवल पचास दिन में पूरा होना है इसलिए कोई भी सड़क ठीक ठाक मिलना नमुमकिन है |
दोबारा घर आकर चप्पल बदली और रवाना हुई जिसमें 4 मिनट और लग गए ,आज सड़क पर भी काफी भीड़ है क्योंकि आज कार्यदिवस है इसलिए मेट्रो पहुँचने में थोड़ी देर हो गई और वहां भी भीड़ अधिक मिली |
सुबह सुबह वैसे तो छात्र छात्राएं ही अधिक होते हैं जो स्कूल तक का गंतव्य मेट्रो में तय करते हैं |
मेट्रो का आने का समय निश्चित नहीं रहता है कभी कभी तो 5 या 6 मिनट बाद आती है ,जैसे जैसे समय बढ़ता जाता है तो कभी कभी हर 3 मिनट बाद भी आ जाती है भीड़ अधिक होने के कारण |
राजीव चौक पहुँचने के बाद वोही खड़क सिंह मार्ग वाले गेट से निकलकर मंदिर की तरफ प्रस्थान किया |
यहाँ एक बात जो रोज नजर आती है मंदिर की तरफ बढ़ते हुए ....
रिवोली सिनेमा से थोड़ा आगे ही मोहन सिंह पैलेस के ठीक सामने से मंदिर तक बहुत सारे भिखारी सपरिवार सो रहे होते हैं और सफाई कर्मचारी अपना काम शुरू कर चुके होते हैं जो उनके आसपास ही झाड़ू लगाते जाते हैं ....


यह समझ से परे है कि इनका यहाँ रुकना कैसे उचित है ??
मंदिर के दोनों तरफ बैरिकेड लगे हुए हैं और खानापूर्ति के लिए मैटल डिटेक्टर भी ... यहाँ कभी कोई ड्यूटी पर नहीं होता है |
आज गद्दी पर बैठे महंत जी बदल गए हैं श्री प्रमोद शर्मा जी से आज बात हुई ...
मैंने पूछा सब तस्वीरों को चोला चढाने का क्या खर्च है ?
तो उन्होंने बताया 50,000 रुपये ,बाकी आप अपनी श्रद्धा से 1100 ,2100, 3100 तक का भी चढ़ा सकते हैं |
आज हनुमान जी का स्वर्ण श्रृंगार किया गया है ...






सामने प्रवेश करते ही आज बैनर भी बदल गया है जो दीपावली के लिए लगा दिया गया है |



जैसा कि महंत जी ने बताया कार्तिक मास तक उनका परिवार यहाँ सेवा करेगा और उनकी 46 वीं पीढ़ी इसमें लगी हुई है | 
कूड़े का ढेर और बढ़ गया है जो बाहर निकल आया है |



मंदिर में अब 8.15 हो गए हैं इसलिए मैं घर के लिए निकल पड़ी हूँ |
मेट्रो स्टेशन से जैसे ही निकली और घर की तरफ बढ़ने लगी तभी कोई जानकार बाइक पर थे वोह आए और कहने लगे कि घर छोड़ देता हूँ मैंने कहा मुझे पैदल चलना है पर वो कहाँ मानने वाले थे इसलिए उनके साथ आना पड़ा उन्होंने मुझे घर के सामने ही उतारा |
कल फिर मिलते हैं नए अनुभवों के साथ .....

हनुमान मंदिर चलिया भाग 3. क्रमशः 

मंगलवार, 5 नवंबर 2013

चित्रगुप्त जयंती

हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। यम द्वितीया के दिन ही यह त्यौहार भी मनाया जाता है। यह खासकर कायस्थ वर्ग में अधिक प्रचलित है। उनके ईष्ट देवता ही चित्रगुप्त जी हैं|

सन्दर्भ:---
जो भी प्राणी धरती पर जन्म लेता है उसकी मृत्यु निश्चित है क्योकि यही विधि का विधान है। विधि के इस विधान से स्वयं भगवान भी नहीं बच पाये और मृत्यु की गोद में उन्हें भी सोना पड़ा। चाहे भगवान राम हों, कृष्ण हों, बुध और जैन सभी को निश्चित समय पर पृथ्वी लोक आ त्याग करना पड़ता है। मृत्युपरान्त क्या होता है और जीवन से पहले क्या है यह एक ऐसा रहस्य है जिसे कोई नहीं सुलझा सकता। लेकिन जैसा कि हमारे वेदों एवं पुराणों में लिखा और ऋषि मुनियों ने कहा है उसके अनुसार इस मृत्युलोक के उपर एक दिव्य लोक है जहां न जीवन का हर्ष है और न मृत्यु का शोक वह लोक जीवन मृत्यु से परे है।
इस दिव्य लोक में देवताओं का निवास है और फिर उनसे भी ऊपर विष्णु लोक, ब्रह्मलोक और शिवलोक है। जीवात्मा जब अपने प्राप्त शरीर के कर्मों के अनुसार विभिन्न लोकों को जाता है। जो जीवात्मा विष्णु लोक, ब्रह्मलोक और शिवलोक में स्थान पा जाता है उन्हें जीवन चक्र में आवागमन यानी जन्म मरण से मुक्ति मिल जाती है और वे ब्रह्म में विलीन हो जाता हैं अर्थात आत्मा परमात्मा से मिलकर परमलक्ष्य को प्राप्त कर लेता है।
जो जीवात्मा कर्म बंधन में फंसकर पाप कर्म से दूषित हो जाता हैं उन्हें यमलोक जाना पड़ता है। मृत्यु काल में इन्हे आपने साथ ले जाने के लिए यमलोक से यमदूत आते हैं जिन्हें देखकर ये जीवात्मा कांप उठता है रोने लगता है परंतु दूत बड़ी निर्ममता से उन्हें बांध कर घसीटते हुए यमलोक ले जाते हैं। इन आत्माओं को यमदूत भयंकर कष्ट देते हैं और ले जाकर यमराज के समक्ष खड़ा कर देते हैं। इसी प्रकार की बहुत सी बातें गरूड़ पुराण में वर्णित है।
यमराज के दरवार में उस जीवात्मा के कर्मों का लेखा जोखा होता है। कर्मों का लेखा जोखा रखने वाले भगवान हैं चित्रगुप्त। यही भगवान चित्रगुप्त जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त जीवों के सभी कर्मों को अपनी पुस्तक में लिखते रहते हैं और जब जीवात्मा मृत्यु के पश्चात यमराज के समझ पहुचता है तो उनके कर्मों को एक एक कर सुनाते हैं और उन्हें अपने कर्मों के अनुसार क्रूर नर्क में भेज देते हैं।

कथा:---
सौराष्ट्र में एक राजा हुए जिनका नाम सौदास था। राजा अधर्मी और पाप कर्म करने वाला था। इस राजा ने कभी को पुण्य का काम नहीं किया था। एक बार शिकार खेलते समय जंगल में भटक गया। वहां उन्हें एक ब्रह्मण दिखा जो पूजा कर रहे थे। राजा उत्सुकतावश ब्रह्ममण के समीप गया और उनसे पूछा कि यहां आप किनकी पूजा कर रहे हैं। ब्रह्मण ने कहा आज कार्तिक शुक्ल द्वितीया है इस दिन मैं यमराज और चित्रगुप्त महाराज की पूजा कर रहा हूं। इनकी पूजा नरक से मुक्ति प्रदान करने वाली है। राजा ने तब पूजा का विधान पूछकर वहीं चित्रगुप्त और यमराज की पूजा की।
काल की गति से एक दिन यमदूत राजा के प्राण लेने आ गये। दूत राजा की आत्मा को जंजीरों में बांधकर घसीटते हुए ले गये। लहुलुहान राजा यमराज के दरबार में जब पहुंचा तब चित्रगुप्त ने राजा के कर्मों की पुस्तिका खोली और कहा कि हे यमराज यूं तो यह राजा बड़ा ही पापी है इसने सदा पाप कर्म ही किए हैं परंतु इसने कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि को हमारा और आपका व्रत पूजन किया है अत: इसके पाप कट गये हैं और अब इसे धर्मानुसार नरक नहीं भेजा जा सकता। इस प्रकार राजा को नरक से मुक्ति मिल गयी।

चित्रगुप्त जी :---
"एक दिव्य देव शक्ति जो चिन्तान्त: करण में चित्रित चित्रों को पढ़ती है, उसी के अनुसार उस व्यक्ति के जीवन को नियमित करती है, अच्छे-बुरे कर्मो का फल भोग प्रदान करती है, न्याय करती है। उसी दिव्य देव शक्ति का नाम चित्रगुप्त है।" चित्रगुप्तजी कायस्थों के जनक हैं।
भगवान चित्रगुप्त परमपिता ब्रह्मा जी के अंश से उत्पन्न हुए हैं और यमराज के सहयोगी हैं। इनकी कथा इस प्रकार है कि सृष्टि के निर्माण के उद्देश्य से जब भगवान विष्णु ने अपनी योग माया से सृष्टि की कल्पना की तो उनकी नाभि से एक कमल निकला जिस पर एक पुरूष आसीन था चुंकि इनकी उत्पत्ति ब्रह्माण्ड की रचना और सृष्टि के निर्माण के उद्देश्य से हुआ था अत: ये ब्रह्मा कहलाये। इन्होंने सृष्ट की रचना के क्रम में देव-असुर, गंधर्व, अप्सरा, स्त्री-पुरूष पशु-पक्षी को जन्म दिया। इसी क्रम में यमराज का भी जन्म हुआ जिन्हें धर्मराज की संज्ञा प्राप्त हुई क्योंकि धर्मानुसार उन्हें जीवों को सजा देने का कार्य प्राप्त हुआ था। धर्मराज ने जब एक योग्य सहयोगी की मांग ब्रह्मा जी से की तो ब्रह्मा जी ध्यानलीन हो गये और एक हजार वर्ष की तपस्या के बाद एक पुरूष उत्पन्न हुआ। इस पुरूष का जन्म ब्रह्मा जी की काया से हुआ था अत: ये कायस्थ कहलाये और इनका नाम चित्रगुप्त पड़ा।
भगवान चित्रगुप्त जी के हाथों में कर्म की किताब, कलम, दवात और करवाल है। ये कुशल लेखक हैं और इनकी लेखनी से जीवों को उनके कर्मों के अनुसार न्याय मिलती है। कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि को भगवान चित्रगुप्त की पूजा का विधान है। इस दिन भगवान चित्रगुप्त और यमराज की मूर्ति स्थापित करके अथवा उनकी तस्वीर रखकर श्रद्धा पूर्वक सभी प्रकार से फूल, अक्षत, कुमकुम, सिन्दूर एवं भांति भांति के पकवान, मिष्टान एवं नैवेद्य सहित इनकी पूजा करें। और फिर जाने अनजाने हुए अपराधों के लिए इनसे क्षमा याचना करें। यमराज और चित्रगुप्त की पूजा एवं उनसे अपने बुरे कर्मों के लिए क्षमा मांगने से नरक का फल भोगना नहीं पड़ता है।

चित्रगुप्त जी हमारी-आपकी तरह इस धरती पर किसी नर-नारी के सम्भोग से उत्पन्न नहीं हुए... न किसी नगर निगम में उनका जन्म प्रमाण पत्र है.
कायस्थों से द्वेष रखनेवालों ने एक पौराणिक कथा में उन्हें ब्रम्हा से उत्पन्न बताया... ब्रम्हा पुरुष तत्व है जिससे किसी की उत्पत्ति नहीं हो सकती. नव उत्पत्ति प्रकृति तत्व से होती है.
'चित्र' का निर्माण आकार से होता है. जिसका आकार ही न हो उसका चित्र नहीं बनाया जा सकता... जैसे हवा का चित्र नहीं होता. चित्र गुप्त होना अर्थात चित्र न होना यह दर्शाता है कि यह शक्ति निराकार है.हम निराकार शक्तियों को प्रतीकों से दर्शाते हैं... जैसे ध्वनि को अर्ध वृत्तीय रेखाओं से या हवा का आभास देने के लिये पेड़ों की पत्तियों या अन्य वस्तुओं को हिलता हुआ या एक दिशा में झुका हुआ दिखाते हैं.
कायस्थ परिवारों में आदि काल से चित्रगुप्त पूजन में दूज पर एक कोरा कागज़ लेकर उस पर 'ॐ' अंकितकर पूजने की परंपरा है.'ॐ' परात्पर परम ब्रम्ह का प्रतीक है.सनातन धर्म के अनुसार परात्पर परमब्रम्ह निराकार विराट शक्तिपुंज हैं जिनकी अनुभूति सिद्ध जनों को 'अनहद नाद' (कानों में निरंतर गूंजनेवाली भ्रमर की गुंजार) केरूप में होती है और वे इसी में लीन रहे आते हैं. यही शक्ति सकल सृष्टि की रचयिता और कण-कण की भाग्य विधाता या कर्म विधान की नियामक है. सृष्टि में कोटि-कोटि ब्रम्हांड हैं. हर ब्रम्हांड का रचयिता ब्रम्हा,पालक विष्णु और नाशक शंकर हैं किन्तु चित्रगुप्त कोटि-कोटि नहीं हैं, वे एकमात्र हैं... वे ही ब्रम्हा, विष्णु, महेश के मूल हैं.आप चाहें तो 'चाइल्ड इज द फादर ऑफ़ मैन' की तर्ज़ पर उन्हें ब्रम्हा का आत्मज कह सकते हैं.
वैदिक काल से कायस्थ जान हर देवी-देवता, हर पंथ और हर उपासना पद्धति का अनुसरण करते रहे हैं चूँकि वे जानते और मानते रहे हैं कि सभी में मूलतः वही परात्पर परमब्रम्ह (चित्रगुप्त) व्याप्त है.... यहाँ तक कि अल्लाह और ईसा में भी... इसलिए कायस्थों का सभी के साथ पूरा ताल-मेल रहा. कायस्थों ने कभी ब्राम्हणों की तरह इन्हें या अन्य किसी को अस्पर्श्य या विधर्मी मान कर उसका बहिष्कार नहीं किया.
निराकार चित्रगुप्त जी कोई मंदिर, कोई चित्र, कोई प्रतिमा. कोई मूर्ति, कोई प्रतीक, कोई पर्व,कोई जयंती,कोई उपवास, कोई व्रत, कोई चालीसा, कोई स्तुति, कोई आरती, कोई पुराण, कोई वेद हमारे मूल पूर्वजों ने नहीं बनाया चूँकि उनका दृढ़ मत था कि जिस भी रूप में जिस भी देवता की पूजा, आरती, व्रत या अन्य अनुष्ठान होते हैं सब चित्रगुप्त जी के एक विशिष्ट रूप के लिये हैं. उदाहरण खाने में आप हर पदार्थ का स्वाद बताते हैं पर सबमें व्याप्त जल (जिसके बिना कोई व्यंजन नहीं बनता) का स्वाद अलग से नहीं बताते. यही भाव था... कालांतर में मूर्ति पूजा प्रचालन बढ़ने और विविध पूजा-पाठों, यज्ञों, व्रतों से सामाजिक शक्ति प्रदर्शित की जाने लगी तो कायस्थों ने भी चित्रगुप्त जी का चित्र व मूर्ति गढ़कर जयंती मानना शुरू कर दिया. यह सब विगत ३०० वर्षों के बीच हुआ जबकि कायस्थों का अस्तित्व वैदिक काल से है.

वर्तमान में ब्रम्हा की काया से चित्रगुप्त के प्रगट होने की अवैज्ञानिक, काल्पनिक और भ्रामक कथा के आधार पर यह जयंती मनाई जाती है जबकि चित्रगुप्त जी अनादि, अनंत, अजन्मा, अमरणा, अवर्णनीय हैं...
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