रविवार, 17 नवंबर 2013

प्रकाशोत्सव [गुरु नानक जयंती]

सिख धर्म के दस गुरुओं की कड़ी में प्रथम हैं गुरु नानक। गुरु नानकदेव से मोक्ष तक पहुँचने के एक नए मार्ग का अवतरण होता है। इतना प्यारा और सरल मार्ग कि सहज ही मोक्ष तक या ईश्वर तक पहुँचा जा सकता है।
भारतीय संस्कृति में गुरु का महत्व आदिकाल से ही रहा है। कबीर साहब ने कहा था कि गुरु बिन ज्ञान न होए साधु बाबा। तब फिर ज्यादा सोचने-विचारने की आवश्यकता नहीं है बस गुरु के प्रति समर्पण कर दो। हमारे सुख-दु:ख और हमारे आध्यात्मिक लक्ष्य गुरु को ही साधने दो। ज्यादा सोचोगे तो भटक जाओगे। अहंकार से किसी ने कुछ नहीं पाया। सिर और चप्पलों को बाहर ही छोड़कर जरा अदब से गुरु के द्वार खड़े हो जाओ बस। गुरु को ही करने दो हमारी चिंता। हम क्यों करें।

जीवन :---
नानकदेवजी के जन्म के समय प्रसूति गृह अलौकिक ज्योत से भर उठा। शिशु के मस्तक के आसपास तेज आभा फैली हुई थी, चेहरे पर अद्भुत शांति थी। पिता बाबा कालूचंद्र बेदी और माता त्रिपाता ने बालक का नाम नानक रखा। गाँव के पुरोहित पंडित हरदयाल ने जब बालक के बारे में सुना तो उन्हें समझने में देर न लगी कि इसमें जरूर ईश्वर का कोई रहस्य छुपा हुआ है।
जीती नौखंड मेदनी सतिनाम दा चक्र चलाया, भया आनंद जगत बिच कल तारण गुरू नानक आया ।
बचपन से ही नानक के मन में आध्यात्मिक भावनाएँ मौजूद थीं। पिता ने पंडित हरदयाल के पास उन्हें शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजा। पंडितजी ने नानक को और ज्ञान देना प्रारंभ किया तो बालक ने अक्षरों का अर्थ पूछा। पंडितजी निरुत्तर हो गए। नानकजी ने क से लेकर ड़ तक सारी पट्टी कविता रचना में सुना दी। पंडितजी आश्चर्य से भर उठे।
उन्हें अहसास हो गया कि नानक को स्वयं ईश्वर ने पढ़ाकर संसार में भेजा है। इसके उपरांत नानक को मौलवी कुतुबुद्दीन के पास पढ़ने के लिए बिठाया गया। नानक के प्रश्न से मौलवी भी निरुत्तर हो गए तो उन्होंने अलफ, बे की सीफहीं के अर्थ सुना दिए। मौलवी भी नानकदेवजी की विद्वता से प्रभावित हुए।
विद्यालय की दीवारें नानक को बाँधकर न रख सकीं। गुरु द्वारा दिया गया पाठ उन्हें नीरस और व्यर्थ प्रतीत हुआ। अंतर्मुखी प्रवृत्ति और विरक्ति उनके स्वभाव के अंग बन गए। एक बार पिता ने उन्हें भैंस चराने के लिए जंगल में भेजा। जंगल में भैसों की फिक्र छोड़ वे आँख बंद कर अपनी मस्ती में लीन हो गए। भैंसें पास के खेत में घुस गईं और सारा खेत चर डाला। खेत का मालिक नानकदेव के पास जाकर शिकायत करने लगा।
जब नानक ने नहीं सुना तो जमींदार रायबुलार के पास पहुँचा। नानक से पूछा गया तो उन्होंने जवाब दिया कि घबराओ मत, उसके ही जानवर हैं, उसका ही खेत है, उसने ही चरवाया है। उसने एक बार फसल उगाई है तो हजार बार उगा सकता है। मुझे नहीं लगता कोई नुकसान हुआ है। वे लोग खेत पर गए और वहाँ देखा तो दंग रह गए, खेत तो पहले की तरह ही लहलहा रहा था।
एक बार जब वे भैंस चराते समय ध्यान में लीन हो गए तो खुले में ही लेट गए। सूरज तप रहा था जिसकी रोशनी सीधे बालक के चेहरे पर पड़ रही थी। तभी अचानक एक साँप आया और बालक नानक के चेहरे पर फन फैलाकर खड़ा हो गया। जमींदार रायबुलार वहाँ से गुजरे। उन्होंने इस अद्भुत दृश्य को देखा तो आश्चर्य का ठिकाना न रहा। उन्होंने नानक को मन ही मन प्रणाम किया। इस घटना की स्मृति में उस स्थल पर गुरुद्वारा मालजी साहिब का निर्माण किया गया।
उस समय अंधविश्वास जन-जन में व्याप्त थे। आडंबरों का बोलबाला था और धार्मिक कट्टरता तेजी से बढ़ रही थी। नानकदेव इन सबके विरोधी थे। जब नानक का जनेऊ संस्कार होने वाला था तो उन्होंने इसका विरोध किया। उन्होंने कहा कि अगर सूत के डालने से मेरा दूसरा जन्म हो जाएगा, मैं नया हो जाऊँगा, तो ठीक है। लेकिन अगर जनेऊ टूट गया तो?
पंडित ने कहा कि बाजार से दूसरा खरीद लेना। इस पर नानक बोल उठे- 'तो फिर इसे रहने दीजिए। जो खुद टूट जाता है, जो बाजार में बिकता है, जो दो पैसे में मिल जाता है, उससे उस परमात्मा की खोज क्या होगी। मुझे जिस जनेऊ की आवश्यकता है उसके लिए दया की कपास हो, संतोष का सूत हो, संयम की गाँठ हो और उस जनेऊ सत्य की पूरन हो। यही जीव के लिए आध्यात्मिक जनेऊ है। यह न टूटता है, न इसमें मैल लगता है, न ही जलता है और न ही खोता है।'
एक बार पिता ने सोचा कि नानक आलसी हो गया है तो उन्होंने खेती करने की सलाह दी। इस पर नानकजी ने कहा कि वह सिर्फ सच्ची खेती-बाड़ी ही करेंगे, जिसमें मन को हलवाहा, शुभ कर्मों को कृषि, श्रम को पानी तथा शरीर को खेत बनाकर नाम को बीज तथा संतोष को अपना भाग्य बनाना चाहिए। नम्रता को ही रक्षक बाड़ बनाने पर भावपूर्ण कार्य करने से जो बीज जमेगा, उससे ही घर-बार संपन्न होगा।

दस सिद्धांत:---
गुरूनानक देव जी ने अपने अनु‍यायियों को जीवन के दस सिद्धांत दिए थे। यह सिद्धांत आज भी प्रासंगिक है।
1. ईश्वर एक है। 
2. सदैव एक ही ईश्वर की उपासना करो। 
3. जगत का कर्ता सब जगह और सब प्राणी मात्र में मौजूद है। 
4. सर्वशक्तिमान ईश्वर की भक्ति करने वालों को किसी का भय नहीं रहता। 
5. ईमानदारी से मेहनत करके उदरपूर्ति करना चाहिए। 
6. बुरा कार्य करने के बारे में न सोचें और न किसी को सताएँ। 
7. सदा प्रसन्न रहना चाहिए। ईश्वर से सदा अपने को क्षमाशीलता माँगना चाहिए। 
8. मेहनत और ईमानदारी से कमाई करके उसमें से जरूरतमंद को भी कुछ देना चाहिए। 
9. सभी स्त्री और पुरुष बराबर हैं। 
10. भोजन शरीर को जिंदा रखने के लिए जरूरी है पर लोभ-लालच व संग्रहवृत्ति बुरी है।

इनके जीवन से जुड़े प्रमुख गुरुद्वारा साहिब:---
1. गुरुद्वारा कंध साहिब- बटाला (गुरुदासपुर) गुरु नानक का यहाँ बीबी सुलक्षणा से 18 वर्ष की आयु में संवत्‌ 1544 की 24वीं जेठ को विवाह हुआ था। यहाँ गुरु नानक की विवाह वर्षगाँठ पर प्रतिवर्ष उत्सव का आयोजन होता है।
2. गुरुद्वारा हाट साहिब- सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला) गुरुनानक ने बहनोई जैराम के माध्यम से सुल्तानपुर के नवाब के यहाँ शाही भंडार के देखरेख की नौकरी प्रारंभ की। वे यहाँ पर मोदी बना दिए गए। नवाब युवा नानक से काफी प्रभावित थे। यहीं से नानक को 'तेरा' शब्द के माध्यम से अपनी मंजिल का आभास हुआ था।
3. गुरुद्वारा गुरु का बाग- सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला) यह गुरु नानकदेवजी का घर था, जहाँ उनके दो बेटों बाबा श्रीचंद और बाबा लक्ष्मीदास का जन्म हुआ था।
4. गुरुद्वारा कोठी साहिब- सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला) नवाब दौलतखान लोधी ने हिसाब-किताब में ग़ड़बड़ी की आशंका में नानकदेवजी को जेल भिजवा दिया। लेकिन जब नवाब को अपनी गलती का पता चला तो उन्होंने नानकदेवजी को छोड़ कर माफी ही नहीं माँगी, बल्कि प्रधानमंत्री बनाने का प्रस्ताव भी रखा, लेकिन गुरु नानक ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
5.गुरुद्वारा बेर साहिब- सुल्तानपुर लोधी (कपूरथला) जब एक बार गुरु नानक अपने सखा मर्दाना के साथ वैन नदी के किनारे बैठे थे तो अचानक उन्होंने नदी में डुबकी लगा दी और तीन दिनों तक लापता हो गए, जहाँ पर कि उन्होंने ईश्वर से साक्षात्कार किया। सभी लोग उन्हें डूबा हुआ समझ रहे थे, लेकिन वे वापस लौटे तो उन्होंने कहा- एक ओंकार सतिनाम। गुरु नानक ने वहाँ एक बेर का बीज बोया, जो आज बहुत बड़ा वृक्ष बन चुका है।
6. गुरुद्वारा अचल साहिब- गुरुदासपुर अपनी यात्राओं के दौरान नानकदेव यहाँ रुके और नाथपंथी योगियों के प्रमुख योगी भांगर नाथ के साथ उनका धार्मिक वाद-विवाद यहाँ पर हुआ। योगी सभी प्रकार से परास्त होने पर जादुई प्रदर्शन करने लगे। नानकदेवजी ने उन्हें ईश्वर तक प्रेम के माध्यम से ही पहुँचा जा सकता है, ऐसा बताया।
7. गुरुद्वारा डेरा बाबा नानक- गुरुदासपुर जीवनभर धार्मिक यात्राओं के माध्यम से बहुत से लोगों को सिख धर्म का अनुयायी बनाने के बाद नानकदेवजी रावी नदी के तट पर स्थित अपने फार्म पर अपना डेरा जमाया और 70 वर्ष की साधना के पश्चात सन्‌ 1539 ई. में परम ज्योति में विलीन हुए।

जीवन की घटनाएं :---
भादों की अमावस की धुप अँधेरी रात में बादलों की डरावनी गड़गड़ाहट, बिजली की कौंध और वर्षा के झोंके के बीच जबकि पूरा गाँव नींद में निमग्न था, उस समय एक ही व्यक्ति जाग रहा था,'नानक'। नानक देर रात तक जागते रहे और गाते रहे। आधी रात के बाद माँ ने दस्तक दी और कहा- 'बेटे, अब सो भी जाओ। रात कितनी बीत गई है।'
नानक रुके, लेकिन उसी वक्त पपीहे ने शोर मचाना शुरू कर दिया। नानक ने माँ से कहा- 'माँ अभी तो पपीहा भी चुप नहीं हुआ। यह अब तक अपने प्यारे को पुकार रहा है। मैं कैसे चुप हो जाऊँ जब तक यह गाता रहेगा, तब तक मैं भी अपने प्रिय को पुकारता रहूँगा।
नानक ने फिर गाना प्रारंभ कर दिया। धीरे-धीरे उनका मन पुनः प्रियतम में लीन हो गया। कौन है ये नानक, क्या केवल सिख धर्म के संस्थापक। नहीं, मानव धर्म के उत्थापक। क्या वे केवल सिखों के आदि गुरु थे? नहीं, वे मानव मात्र के गुरु थे। पाँच सौ वर्षों पूर्व दिए उनके पावन उपदेशों का प्रकाश आज भी मानवता को आलोकित कर रहा है।

नाम धरियो हिंदुस्तान :---
कहते हैं कि नानकदेवजी से ही हिंदुस्तान को पहली बार हिंदुस्तान नाम मिला। लगभग 1526 में जब बाबर द्वारा देश पर हमला करने के बाद गुरु नानकदेवजी ने कुछ शब्द कहे थे तो उन शब्दों में पहली बार हिंदुस्तान शब्द का उच्चारण हुआ था-
खुरासान खसमाना कीआ 

हिंदुस्तान डराईआ।

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