मंगलवार, 28 मई 2013

वृन्दावन यात्रा भाग 3.

हम इस्कान मंदिर से कीर्तन का आनंद लेकर बाहर आ गए ,बाकि सब परिवार के सदस्य भी मिल गए जो हमारा इंतज़ार कर रहे थे ,अब सब प्रेम मंदिर की तरफ चल दिए जोकि कृष्ण सुधामा धाम के पास ही था ,यहाँ हम ठहरे थे और इस्कान मंदिर से भी पैदल ही कुछ दूरी पर था ,इसलिए सब ने जूते ट्रैवलर में ही रख दिए और पहुँच गए 'प्रेम मंदिर'
प्रेम मंदिर 
अद्भुत,अद्वितीय,भव्य ,बेजोड़,विशाल,जगद्गुरु कृपालु जी महाराज द्वारा निर्मित अद्भुत वास्तुकला का झांकियो का मिश्रण, प्रेम जिसकी दूधिया रंगबिरंगी रोशनिओं से टपकता है ,इसे देखे बिना जैसे वृन्दावन यात्रा अधूरी रह जाती ,हर कोई जिसकी प्रशंसा कर रहा था| 
कृपालु जी महाराज ने इसका निर्माण 'भगवान कृष्ण एवं राधा के मंदिर के रूप में करवाया है  |इसका लोकार्पण 18 फरवरी को किया गया था |इसके निर्माण में 11 वर्ष का समय लगा और 100 करोड़ की लागत आई,इसमें इटैलियन संगमरमर का प्रयोग किया गया है |राजस्थान और उत्तरप्रदेश के 1000 शिल्पकारों ने इसका निर्माण किया है |इसका शिलान्यास कृपालु जी महाराज द्वारा 14 जनवरी 2001  में किया गया था |यह मंदिर प्राचीन भारतीय शिल्पकला के पुनर्जागरण का एक नमूना है | यह मंदिर 54 एकड़ में बना है इसकी ऊंचाई 125 फुट ,लम्बाई 122 फुट ,चौड़ाई 115 फुट है |


प्रेम मंदिर का बाहरी दॄश्य 
प्रेम मंदिर का बाहरी दृश्य 

सभी जाति धर्म के लिए खुले इसके प्रवेश द्वार सभी दिशाओं में खुलते हैं प्रवेश द्वारों पर आठ मयूरों के नक्काशीदार तोरण हैं और मंदिर की बहरी दीवारों को राधा कृष्ण की लीलाओं से शिल्पांकित किया गया है|  

मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार 

प्रवेश द्वार से अंदर जाकर हमने बाकी सबका इंतजार किया ताकि सब इस भव्य मंदिर का आनंद इकठ्ठे उठा सकें | रात को मंदिर देखने का आनंद दोगुना हो जाता है |मंदिर के गर्भ गृह के ऊपर पल पल रंग बदलती रोशनियाँ आपका मन मोह लेती हैं | पूरी आंतरिक दीवारों पर राधा कृष्ण  एवं कृपालु जी महाराज की झांकियां नजर आती हैं जिसकी तस्वीरें आप तक साथ साथ पहुंचाती रहूंगी |एक विडियो जो प्रवेश द्वार के अंदर के दृश्यों को बखूबी आप तक पहुंचाएगी ,देखिये ....


राधा कृष्ण के भजनों का सुंदर कीर्तन पूरे भवन में कानों में सुनाई पड़ता है जिससे आपकी यात्रा वाकई राधा कृष्णमई  हो जाती है |बगीचों में सजी सुंदर राधा कृष्ण की झांकियां अपलक आप देखते ही रह जाते हैं  




हम सब जल्दी से आगे बढ़ रहे थे क्योंकि फव्वारा शो का समय हो रहा था ,सुंदर उद्दानों से होते हुए दायीं तरफ मंदिर का पुस्तकालय एवं मंदिर का कार्यालय है | उसके बाद श्री गोवर्धन लीला की सुंदर झांकी है ,इसके साथ ही आगे भोजनालय है  यहाँ से आप भूख की तृप्ति कर सकते हैं ,कुछ खाने का मन था पर सामने शो शुरू हो चूका था सब वहीँ आसपास बगीचों में बैठ गए देखने के लिए संगीतमय फव्वारे सुंदर झलक प्रस्तुत कर रहे थे उसकी ठंडी फुहारें यदा कदा आकर मन पुलकित कर रहीं थी ,फिर हमने सोचा चलते चलते देखते हैं साथ में और झांकियां भी देख ली जाएँ इसलिए वहां से चलकर उसके गर्भ गृह के बाहर के आंगन में पहुँच गए यहाँ से फव्वारा शो देखना ज्यादा बेहतर था | कुछ लोग बाहर आँगन में बैठ गए बाकी सब हम लोग मंदिर के भीतर चल दिए| मंदिर के बाहर और अंदर प्राचीन वास्तुशिल्प की उत्कृष्ट पच्चीकारी और नक्काशी की गई है |संगमरमर की शिलाओं पर राधा गोविन्द गीत सरल भाषाओँ में लिखे गए हैं |गर्भगृह के भीतर भी राधा कृष्ण और कृपालु जी महाराज की सुंदर झांकियो से मंदिर सुसज्जित है लीजिए देखिये कुछ तस्वीरें ......






मंदिर से बाहर आकर सबके पास जब पहुंचे तो पता चला की असल में फव्वारा शो तो अब दिखाया गया जिसमें राधा कृष्ण की नृत्य करते और कृपालु जी महाराज की प्रवचन करते हुए झांकियां पानी की बौशारों के ऊपर दर्शाई गई |हम इस विहंगम दृश्य से चूक गए | तस्वीरें खींचते हुए हम पहुंचे मंदिर के दूसरी तरफ अद्भुत सुंदर मंदिर एक बड़े चबूतरे पर बना है यहाँ से उतरने के बाद हम पहुंचे कालिया नाग की दमन लीला की झांकी देखने आप भी देखिये ....


बहुत ही मधुर यादें लेकर हम इस मंदिर से निकले | यहाँ कोई फोटो खींचने पर प्रतिबन्ध नहीं है न ही मंदिर के अंदर न ही मंदिर के बाहर इसलिए आप ढेरों यादें अपने साथ समेट कर ला सकते हैं | सबसे बड़ी बात यहाँ कोई शुल्क नहीं लिया जाता है सुंदर झांकियो के दर्शन हेतु 






रविवार, 26 मई 2013

'तोरी कृष्णा प्रीत मोहे भांवरी बनाए रे'




तोरी कृष्णा प्रीत मोहे भांवरी बनाए रे
चैन ना आए मोहे चैन ना आए रे

सब जग रूठा , सब बंधन झूठा
तू ही मुझे घड़ी घड़ी अपना बनाए रे

तोरी कृष्णा प्रीत मोहे भांवरी बनाए रे
चैन ना आए मोहे चैन ना आए रे

रिश्ते काहे के , नाते काहे के
तुझसे ही नाता मेरा जुड़ता जाए रे

तोरी कृष्णा प्रीत मोहे भांवरी बनाए रे
चैन ना आए मोहे चैन ना आए रे

राधा सी प्रीत दे दे,मीरा सी दीवानगी
तेरा ही रंग मोह पे चढ़ता जाए रे

तोरी कृष्णा प्रीत मोहे भांवरी बनाए रे
चैन ना आए मोहे चैन ना आए रे

शुक्रवार, 24 मई 2013

वृन्दावन यात्रा भाग 2.

दोस्तो श्री बांके बिहारी मंदिर से बाहर आकर मंदिर देखने का सारा नशा काफूर हो चुका था इसलिए निधिवन जाने का प्रोग्राम रद्द कर दिया ,जिसका जिक्र मैं पहले भाग में कर चुकी हूँ | दोबारा से इच्छा शक्ति को जगाने के लिए हमने वहीँ एक दुकान पर टिक्की ,पकौड़े ,लस्सी वगेरह ली ,जो स्वादहीन  थी ,बंदरों से बचते हुए उसे निगला और दोबारा से उस संकरी गली से निकल कर हम बंदरों से बचते हुए ट्रैवलर तक पहुंचे | बस थोड़ी दूरी पर ही था इस्कान मंदिर ,जो कृष्ण बलराम मंदिर के नाम से भी जाना जाता है ,इसे आप भारतीय और पाश्चात्य सभ्यता का मिश्रण कह सकते हैं |
इस्कान मंदिर वृन्दावन 
इस्कान या कृष्ण भावनामृत संघ [ISKCON International society for krishna conciousness] इस मंदिर को 'हरे कृष्ण आन्दोलन' के नाम से भी जाना जाता है  |इसे 1966 में भक्तिवेदांत स्वामी श्री प्रभुपाद ने न्यूयार्क में शुरु किया था अपने गुरु भक्ति सिद्दांत सरस्वती स्वामी के आदेश का पालन करते हुए उन्होंने संन्यास लेकर अपने अथक प्रयासों से पूरे विश्व में 10 वर्षों में ही 108 मंदिरों का निर्माण कर दिया ,जल्दी ही कृष्ण अमृत की निर्मल धारा विश्व के कोने कोने में बहने लगी |पूरी दुनिया में इतने अधिक अनुयायी होने का कारण यहाँ मिलने वाली असीम शान्ति है |भक्तिवेदांत स्वामी सरीला प्रभुपाद ने इस मंदिर का निर्माण 20 अप्रैल,1975 में रामनवमी वाले दिन किया |
 स्वामी श्री प्रभुपाद 

इस्कान मंदिर 

यह मंदिर रमणरेती रोड पर स्थित है ,जैसा कि सबका मन नहीं था अंदर जाने का श्री बांके बिहारी के दर्शन के बाद हम कुछ लोग मंदिर में दाखिल हुए ,चप्पल बाहर ही छोड़ गए थे  | इसमें प्रवेश करते ही मुख्य द्वार पर वेलकम सेंटर है ,जिसकी आप सहायता ले सकते हैं , वृन्दावन यात्रा में , टैक्सी वगेरह में ,वीजा के बारे सूचना,कहाँ ठहरा जाए | इसके लिए आपको एक सप्ताह पहले इनको मेल करना पड़ता है| 

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वेलकॉम सेंटर 

मंदिर में प्रवेश करते ही कीर्तन का आंनंद आप अनुभव करने लगते हैं ,यहाँ की भव्य आरती देखने के लिए लोग पहले से एकत्र हो जाते हैं ,पर हमारे पास समय कम था इसलिए हम आरती तक नहीं रुके परन्तु हमने वहां के कीर्तन का पूरा आंनंद उठाया जिसकी कुछ तस्वीरें आप तक पहुंचाती हूँ | यहाँ सफ़ेद साड़ी में लिपटी माथे पर चन्दन तिलक लगाए बहुत सी विदेशी बहनें एवं भाई सफ़ेद कुरता पहने गले में तुलसी की माला पहने आपको दिख जाएंगे प्रभु कीर्तन का आनंद लेते हुए| 

राधा-कृष्ण 

कीर्तन करते भक्त 


परिवार संग 


यहाँ पर एक गिफ्ट शॉप है यहाँ से आप अंतर्राष्ट्रीय साहित्य ले सकते हैं ,यह मंदिर परिक्रमा के बाएँ तरफ है इसके साथ ही सूचना केंद्र है |
यहाँ से सात मिनट की दूरी पर गौशाला है ,जिसका निर्माण 1976 में किया गया था 10 गायें के साथ अब इनकी संख्या 400 के लगभग है |
यहाँ पर गुरुकुल स्कूल है ,यहाँ देश विदेश से छात्र शिक्षा दीक्षा लेने आते हैं , भव्य प्रसादम हॉल, सरीला प्रभुपाद संग्रहालय है जो इसकी शान में चार चाँद लगाते हैं| इसके दर्शन करने के बाद और कीर्तन का आनंद लेकर हम जल्दी से बाहर आ गए ,क्योंकि प्रेम मंदिर का फव्वारा शो देखने के लिए सब उत्सुक थे |इसकी आरती आप यहाँ देख सकते हैं ...

              
  
कुछ और मंदिर एवं दर्शनीय स्थलों को आप तक पहुंचाती हूँ गूगल बाबा की अनुकम्पा से ...

निधिवन कृष्ण जी कि रासलीला स्थली के रूप में जानी जाती है जैसे कि  पहले भाग में बता चुकी हूँ कि स्वामी हरिदास यहाँ कुटी बनाकर रहते थे और यहाँ ही बांके बिहारी जी को प्रकट किया गया था ,ऐसा मानना है कि राधा कृष्ण यहाँ रात को रास रचाते हैं ,इसलिए 8 बजे के बाद यहाँ जाने नहीं दिया जाता है |
  
निधिवन शिलालेख 

निधिवन प्रवेश द्वार 

गोविन्द देव मंदिर का 1590 ई : में आमेर के राजा भगवान् दास के पुत्र राजा मानसिंह ने बनवाया था |भारत के शानदार मंदिरों में इसकी गिनती होती थी ,जैसा कि औरंगजेब के इस उद्धरण से पता चलता है ,जब औरंगजेब एक बार टहल रहा था तो उसकी भव्यता देख उसने उसे तुडवाने का आदेश दे दिया ,इसलिए अब इसकी 7 में से 4 मंजिल ही बची हैं इसे बनवाने में लगभग 10 बरस लगे थे और एक करोड़ रुपए इस पर खर्च हुए थे 

गोविन्द देव मंदिर
रंग नाथ जी मंदिर 
श्री संप्रदाय के संस्थापक रामानुजाचार्य के विष्णुस्वरूप श्री रंग जी के नाम से मंदिर सेठ लख्मीचंद के भाई सेठ गोविन्ददास एवं सेठ राधाकृष्ण दास ने  इसका निर्माण करवाया था |इसकी लागत 45 लाख रुपए आई थी इसके सामने 60 फीट ऊँचा ,20 फीट जमीं में धंसा हुआ एक तांबे का स्तम्भ खड़ा है इसका गोपुर काफी ऊँचा है यह मथुरा शैली का है इसमें भवन में एक भव्य रथ रखा है जो ब्रह्मुत्सव पर ही बाहर निकला जाता है 
चित्र:Rang-ji-temple-2.jpg
रंग नाथ जी मंदिर 
रंग नाथ जी मंदिर 







शुक्रवार, 17 मई 2013

वृन्दावन यात्रा भाग 1.

वृन्दावन का नाम आते ही मन पुलकित हो उठता है | योगेश्वर श्री कृष्ण की मनभावन मूर्ति आँखों के सामने आ जाती है | उनकी दिव्य अलौकिक लीलाओं की कल्पना से ही मन भक्ति और श्रद्धा से नतमस्तक हो जाता है | वृन्दावन को ब्रज का ह्रदय कहते हैं|

दिल्ली से वृन्दावन की दूरी लगभग 139 किलोमीटर है, इसलिए परिवार संग सुविधा से जाने के लिए हमने एक ट्रैवलर बुक की 17रुपए प्रति किलोमीटर में और रात के चार्जेज 200 रुपए में ,एक दिन के कम से कम 250 किलोमीटर के चार्जेज लिए जाते हैं | ट्रैवलर ठीक 6.30 बजे सुबह पहुँच गई ,7 बजे हम इस में सवार होकर कुछ सदस्यों को पटेलनगर से लेकर  निकल पड़े इस धार्मिक सफ़र पर सुंदर श्याम के भजनों के संग ,सुहानी ठंडी ठंडी पवन का आनंद लेते हुए हम अपने गंतव्य की ओर बढ़ने लगे|



                   कुछ नाश्ते की इच्छा हुई तो गुलशन के ढाबे की याद आई ,इसलिए हमने मुरथल में रुक कर पेट पूजा की ,कुछ देर सुस्ताने के बाद हम पुनः अपने गंतव्य की ओर चल दिए , मधुर संगीत ने जैसे सफ़र आसान कर दिया ,हँसते गाते हम 1.30 बजे के लगभग वृन्दावन पहुँच गए |
दिल्ली से बाहर के यात्री वृन्दावन जाने के लिए पहले दिल्ली आएं और फिर अपनी सुविधानुसार बस से या प्राइवेट टैक्सी से या रेल से सफ़र कर सकते हैं रेल आपको मथुरा स्टेशन पर उतारती है इसका किराया लगभग 200 रुपए है ,यहाँ से टैक्सी वृन्दावन तक के लिए 200 रुपए में मिल जाती है | अगर आप बस से यात्रा कर रहे हैं तो इसका किराया 200 रुपए से कम है | विदेशी यात्री दिल्ली एअरपोर्ट से सीधे टैक्सी सेवा ले सकते है छोटी एसी गाड़ी 2200रुपए में ,बड़ी गाड़ी  2600 रुपए में मिल जाती है |
   'कृष्ण सुदामा धाम' वृन्दावन  में पहले से ही कमरे बुक थे ,इसलिए जाकर कुछ स्नैक्स लिए और  सब कुछ देर के लिए  आराम करने लगे ,कृष्ण सुदामा धाम की बालकोनी से कृपालु जी महाराज के 'प्रेम मंदिर' का मनमोहक दृश्य देखा |




        आओ दोस्तो ,श्री कृष्ण के मंदिरों  की शुरुआत एक प्राचीन मंदिर से करते हैं श्री बांके बिहारी मन्दिर ,वृन्दावन |वृन्दावन उत्तरप्रदेश के मथुरा जिले की धार्मिक नगरी है जिसमें यह मंदिर वृन्दावन धाम के सुंदर एवं प्राचीन इलाके में स्थित है |इसका निर्माण स्वामी हरिदास ने 1864 में करवाया था |

श्री बांके बिहारी मन्दिर 
                        



4 बजे हम श्री बांके बिहारी जी मंदिर के दर्शन के लिए दोबारा से ट्रैवलर में बैठ कर निकल पड़े ,ट्रैवलर को सड़क किनारे रोक कर ,हम पैदल ही पुरातनता की  याद दिलाती संकरी गलिओं से होते हुए मंदिर की तरफ बढने लगे ,जो कृष्ण गीतों से फाल्गुनी रंगों में रंगी अपनी तरफ आकर्षित कर रहीं थी|



    जैसे जैसे मंदिर के प्रांगन की तरफ बढने लगे ,एक डर सा हवा में तैरने लगा ,बहुत भीड़ थी श्रदालु अपनी मंजिल की ओर बढ़ रहे थे |तभी एक भक्त बोला आगे बंदर हैं किसी का चश्मा ले गए हैं संभल कर चलना ,उन सबसे बचते बचाते अंदर पहुंचे तो लगा किसी पुरातन विभाग की कोई इमारत में आ गए हैं ,बहुत सारे मंदिर के रक्षक घुमा फिरा कर बांके बिहारी के दर्शनों के लिए सब को आगे बढ़ा रहे थे ,मंदिर में यहाँ बांके बिहारी जी की प्रतिमा स्थापित थी बिल्कुल अँधेरा था,जैसा कि बताया जाता है ,बांके बिहारी जी से आँखें मिल जाएँ तो वो आपके साथ ही चल पड़ते हैं ,इसीलिए मंदिर में अंधेरा रहता है और पर्दा बार बार हटाया जाता है|

श्रीबाँकेबिहारी जी के दर्शन सम्बन्ध में प्रचलित कहानियां :---
       एक बार एक भक्तिमती ने अपने पति को बहुत अनुनय–विनय के पश्चात वृन्दावन जाने के लिए राजी किया। इसलिए वो श्रीबिहारी जी के निकट रोते–रोते प्रार्थना करने लगी कि– 'हे प्रभु में घर जा रही हुँ, किन्तु तुम चिरकाल मेरे ही पास निवास करना उस समय श्रीबाँकेविहारी जी एक गोप बालक का रूप धारण कर घोड़ागाड़ी के पीछे आकर उनको साथ लेकर ले जाने के लिये भक्तिमति से प्रार्थना करने लगे। इधर पुजारी ने मंदिर में ठाकुर जी को न देखकर उन्होंने भक्तिमति के प्रेमयुक्त घटना को जान लिया एवं तत्काल वे घोड़ा गाड़ी के पीछे दौड़े।
          एक समय उनके दर्शन के लिए एक भक्त महानुभाव उपस्थित हुए। वे बहुत देर तक एक-टक से इन्हें निहारते रहे। रसिक बाँकेबिहारी जी उन पर रीझ गये और उनके साथ ही उनके गाँव में चले गये। बाद में बिहारी जी के गोस्वामियों को पता लगने पर उनका पीछा किया और बहुत अनुनय-विनय कर ठाकुरजी को लौटा-कर श्रीमन्दिर में पधराया। 
ऐसे ही अनेकों कारण से श्रीबाँकेबिहारी जी के झलक दर्शन अर्थात झाँकी दर्शन होते हैं।





      बहुत अधिक भीड़ होने के कारण मैं आगे जाकर मंदिर में झांक भी नहीं सकी ,कुछ लोग प्रभु के बन्दों को रिश्वत देकर प्रभु दर्शन करते पाए गए | मंदिर में फोटो लेने कि अनुमति नहीं थी ,खराब प्रबंधन और बंदरों के प्रकोप के कारण हमने मोबाइल ना निकालना ही सही समझा|
     आगे इसकी जानकारी के बारे में बताती हूँ और कुछ तस्वीरें भी आप तक पहुंचाती हूँ , जो मुझे गूगल बाबा से मिली ...



    श्रीहरिदास स्वामी विषय उदासीन वैष्णव थे। उनके भजन–कीर्तन से प्रसन्न हो निधिवन से श्री बाँकेबिहारीजी प्रकट हुये थे। स्वामी हरिदास जी का जन्म संवत 1536 में भाद्रपद महिने के शुक्ल पक्ष में अष्टमी के दिन वृन्दावन के निकट राजापुर नामक गाँव में हूआ था। इनके आराध्यदेव श्याम–सलोनी सूरत बाले श्रीबाँकेबिहारी जी थे। इनके पिता का नाम गंगाधर एवं माता का नाम श्रीमती चित्रा देवी था। हरिदास जी, स्वामी आशुधीर देव जी के शिष्य थे। इन्हें देखते ही आशुधीर देवजी जान गये थे कि ये सखी ललिताजी के अवतार हैं
        संसार से दूर होकर निकुंज बिहारी जी के नित्य लीलाओं का चिन्तन करने में रह गये। निकुंज वन में ही स्वामी हरिदासजी को बिहारीजी की मूर्ति निकालने का स्वप्नादेश हुआ था। तब उनकी आज्ञानुसार मनोहर श्यामवर्ण छवि वाले श्रीविग्रह को धरा को गोद से बाहर निकाला गया। यही सुन्दर मूर्ति जग में श्रीबाँकेबिहारी जी के नाम से विख्यात हुई यह मूर्ति मार्गशीर्ष, शुक्ला के पंचमी तिथि को निकाला गया था। अतः प्राकट्य तिथि को हम विहार पंचमी के रूप में बड़े ही उल्लास के साथ मनाते है।
श्री बाँकेबिहारी जी निधिवन में ही बहुत समय तक स्वामी जी द्वारा सेवित होते रहे थे। फिर जब मन्दिर का निर्माण कार्य सम्पन्न हो गया, तब उनको वहाँ लाकर स्थापित कर दिया गया। सनाढय वंश परम्परागत श्रीकृष्ण यति जी, बिहारी जी के भोग एवं अन्य सेवा व्यवस्था सम्भाले रहे। फिर इन्होंने संवत 1975 में हरगुलाल सेठ जी को श्रीबिहारी जी की सेवा व्यवस्था सम्भालने हेतु नियुक्त किया। तब इस सेठ ने वेरी, कोलकत्ता, रोहतक, इत्यादि स्थानों पर श्रीबाँकेबिहारी ट्रस्टों की स्थापना की। इसके अलावा अन्य भक्तों का सहयोग भी इसमें काफी सहायता प्रदान कर रहा है।



                   स्वामी हरिदास जी संगीत के प्रसिद्ध गायक एवं तानसेन के गुरु थे।एक दिन प्रातःकाल स्वामी जी देखने लगे कि उनके बिस्तर पर कोई रजाई ओढ़कर सो रहा हैं। यह देखकर स्वामी जी बोले– अरे मेरे बिस्तर पर कौन सो रहा हैं। वहाँ श्रीबिहारी जी स्वयं सो रहे थे। शब्द सुनते ही बिहारी जी निकल भागे।किन्तु वे अपने चुड़ा एवं वंशी, को बिस्तर पर रखकर चले गये।

झाँकी का अर्थ:---



                     श्रीबिहारी जी मन्दिर के सामने के दरवाजे पर एक पर्दा लगा रहता है और वो पर्दा एक दो मिनट के अंतराल पर बन्द एवं खोला जाता हैं, इसलिए बिहारी जी के झाँकी दर्शन की व्यवस्था की गई ताकि कोई उनसे नजर न लड़ा सके। 
                    यहाँ एक विलक्षण बात यह है कि यहाँ मंगल आरती नहीं होती। यहाँ के गोसाईयों का कहना हे कि ठाकुरजी नित्य-रात्रि में रास में थककर भोर में शयन करते हैं। उस समय इन्हें जगाना उचित नहीं है।  श्रीबाँकेबिहारी जी मन्दिर में केवल शरद पूर्णिमा के दिन  श्रीबाँकेबिहारी जी वंशीधारण करते हैं। केवल श्रावन तीज के दिन ही ठाकुर जी झूले पर बैठते हैं एवं जन्माष्टमी के दिन ही केवल उनकी मंगला–आरती होती हैं । जिसके दर्शन सौभाग्यशाली व्यक्ति को ही प्राप्त होते हैं । और चरण दर्शन केवल अक्षय तृतीया के दिन ही होता है |
    मेरी सलाह है की आपको इस मंदिर के बारे में पूरी जानकारी नेट से मिल जाएगी इसलिए वहां जाकर अपने प्रभु विश्वास को ठेस न पहुंचाएं |
एक सुझाव :---
            वहां के प्रशासन से एवं प्रबंधकों से हमारा अनुरोध है कि वहां की पुरातनता में दखल न करते हुए उसके प्रांगन का भव्य निर्माण किया जाए ताकि विश्व भर से आये श्रद्धालुओं को हिन्दू धर्म की अच्छी छवि देखने का मौका मिले ,दान राशि और बढ़ जाने से निश्चय ही वो आसपास की जमीन खरीद कर इस भव्य निर्माण को कर सकते हैं |
कुछ विशेष :


वृन्दावन यात्रा भाग 2.क्रमशः ......

मंगलवार, 14 मई 2013

वैष्णो देवी यात्रा भाग 4.

तीसरा दिन 
भवन से भैरों घाटी :---
                     सुबह 4.30 बजे सब उठना शुरू होकर तैयार होने लगे थे ,लगभग 6.10 पर हम भैरों बाबा के लिए निकल पड़े ,कुछ मेंबर्स को यहाँ से हेलिपैड तक का घोडा करके दिया 400 रुपए में बाकि सब पैदल ही चल पड़े, आगे चलकर हमने सीढ़ियों का रास्ता अपनाया लगभग 1200 सीढ़ी चढ़ कर हम भैरों घाटी लगभग 7 बजे पहुँच गए थे पर अभी मंदिर 8 बजे खुलना था तो वही कुछ चाय नाश्ता लेकर इंतज़ार करने लगे, लम्बी  पंक्ति में जाकर बारी बारी दर्शन किए ताकि जूते जमा कराने और वापिस लेने में समय बर्बाद न हो |
               भैरों बाबा [भैरव ने मरते समय क्षमा याचना की. देवी जानती थीं कि उन पर हमला करने के पीछे भैरव की प्रमुख मंशा मोक्ष प्राप्त करने की थी.उन्होंने न केवल भैरव को पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति प्रदान की, बल्कि उसे वरदान भी दिया कि भक्त द्वारा यह सुनिश्चित करने के लिए कि तीर्थ-यात्रा संपन्न हो चुकी है, यह आवश्यक होगा कि वह देवी मां के दर्शन के बाद, पवित्र गुफ़ा के पास भैरव नाथ के मंदिर के भी दर्शन करें.]के दर्शन के बाद हम सब जल्दी से हेलिपैड की तरफ बढ़ गए ,उतरने में डंडे की अहम् भूमिका रहती है ,लुढ़कने का खतरा कम हो जाता है| 

भैरों घाटी से सांझी छत एवं हेलिपैड :---
       हमें 9.30 बजे रिपोर्ट करना था हम सब बारी बारी 9.45 तक हेलिपैड तक पहुँच गए,जिसका रास्ता सांझी छत्त से होते हुए जाता है |हमने सोचा था हेलीकाप्टर से हमारा समय बचेगा क्योंकि 3 घंटे का सफ़र सिर्फ 3 मिनट में ही पूरा हो जाता है ,पर उसकी पूरी प्रतिक्रिया में पूरे 2 घंटे लग गए ,पहले सबका भार तोला गया उसके बाद काफी इंतज़ार के बाद बोर्डिंग पास बनाया गया ,जो मिलने के बाद हमने  चेकिंग चैनल से निकलने के बाद काफी देर इंतज़ार किया हमारा नंबर आने तक |

हेलीकाप्टर सेवा :---
यहाँ से दो हेलीकाप्टर सेवाएं उपलब्ध हैं ,पवन हंस और ग्लोबल ग्लैडिएटर ,जो बारी बारी से उडान लेती हैं ,इसमें 5 या 6 यात्रिओं को बिठाया जाता है , भार के अनुसार दो आगे चार पीछे | यहाँ तस्वीरें लेना वर्जित है | इसमें बैठाने से पहले उनके कर्मचारी आपको कुछ निर्देश देते हैं : पायलट के साथ बात चीत नहीं करनी है दुप्पट्टा वगेरह में गाँठ लगवा दी जाती है,आपका सामान ले लिया जाता है ,वोह पीछे के हिस्से में रख दिया जाता है,कर्मचारी ही आपको उसमें बैठाते हैं सीट बेल्ट लगाते हैं | मनमोहक दृश्यों का आनंद लेते हुए बहुत ही सुविधापूर्वक आप 3 मिनट में नीचे पहुँच जाते हैं , यहाँ फिर पहले से मौजूद कर्मचारी आपको बाहर का रास्ता दिखाते हैं | उतरने के बाद वहां से ऑटो उपलब्ध हैं जो 40 रुपए एक यात्री के लेते हैं कटरा तक पहुंचाने में |
कटरा से जम्मू :---
               वहां इंतज़ार करते करते भूख लग चुकी थी इसलिए हम सीधा ज्वेल रेस्टोरेंट के सामने ही उतरे और जाकर पेट पूजा की | वहीं पर हमने ट्रैवलर वाले ड्राईवर को फ़ोन कर दिया जो वहां पहुँच गया ,कुछ लोग होटल से सामान लेने चले गए और वहां से ही हम जम्मू के लिए चल दिए | हम 1.30 घंटे में जम्मू पहुँच गए ,गर्मी काफी बढ़ चुकी थी इसलिए सब का मन घबरा रहा था | इसलिए स्टेशन के बाहर ही कुछ शीतल पेय लेने लगे ,वहीँ से प्रसाद वगेरह भी ले लिया गया | गाड़ी चलने में अभी काफी समय था इसलिए हमने इंतज़ार किया वहीं स्टेशन पर ही क्योंकि हमारी कुछ टिकट कन्फर्म नहीं हुई थी जो हम नेट से समय समय पर चेक कर रहे थे, ठीक समय पर सब टिकट हमारी कन्फर्म हो चुकी थी |
जम्मू से दिल्ली :---
               स्टेशन के बाहर से हमने खाना रात के लिए पैक करवा लिया था ,वैसे ज्वेल रेस्टोरेंट वाले भी दो घंटे पहले बताने पर खाना पैक करवा कर भिजवा देते हैं स्टेशन पर ही | गाड़ी का समय हो चूका था ठीक समय पर गाड़ी आ गई थी ,हम सब सामान लेकर अंदर प्रवेश कर चुके थे वापिस घर लौटने के लिए बहुत सारी खट्टी मीठी यादें लिए |

कुछ विशेष ध्यान देने योग्य बातें :--- 
1.अगर आपका फ़ोन प्रीपेड है तो जम्मू में प्रवेश करते ही बंद हो जाएगा ,तो कोई पोस्ट पेड नंबर लेकर जाएं या सरकारी कंपनी का फ़ोन भी चलेगा |
2.यात्रा जूते पहन कर ही करें नंगे पैर या चप्पल से नहीं |
3. डंडा लेकर चलें ,उससे यात्रा में काफी सुविधा रहती है |
4.अपने साथ जरुरी दवाई वगैरह लेकर चलें |
5.चढाई के वक्त कम सामान लेकर चलें 
6.पर्सनल जुगाड़ डॉट कॉम से टिकट बुक करवाने में बहुत सुविधा रही ,आप भी इनकी सेवाएं निसंकोच ले सकते हैं |
7.भवन पर रुकने का मूड हो तो पहले से कटरा से ही कमरा बुक करने की सुविधा है |
8.समय बचाने के लिए हेलीकाप्टर सुविधा का लाभ नहीं उठाएं सिर्फ आनंद के लिए ऐसा कर सकते हैं क्योंकि बोर्डिंग से पहले बहुत समय नष्ट होता है |
9.चढाई में हेलीकाप्टर सेवा का आनंद लेकर काफी थकान बचा सकते हैं और समय भी ,इसका किराया अब 800 रुपए है |
10.भोजन श्राइन बोर्ड के भोजनालय में ही करें ,ताकि बाहर का बासी भोजन खाकर असुविधा ना हो|
11.मार्च से जुलाई एवं सितम्बर से नवम्बर तक का समय अति उत्तम है यात्रा के लिए,वैसे तो श्रद्धालु पूरा वर्ष यात्रा के लिए जाते हैं |
12.यात्रा विमान से ,रेल से या बस से सुविधानुसार कर सकते हैं |
यहाँ तक की कुछ तस्वीरें .....








मिलते हैं दोस्तो एक और यात्रा के साथ जल्दी ही 
शुभविदा ....

सोमवार, 13 मई 2013

वैष्णो देवी यात्रा भाग 3.

दूसरा दिन 

मैया के दर्शन :----

             सब जब नहाकर तैयार हो गए तो दर्शन के लिए दरबार की तरफ कूच किया, क्योंकि रात 6 बजे से 8 बजे तक आरती का समय रहता है तो भीड़ काफी हो जाती है ,इसलिए हमने 9 बजे के बाद का समय चुना दर्शन के लिए | सबने अपनी अपनी भेंट ली और पंक्ति में लग गए जोकि जल्दी ही पहुँच गई दरबार तक | ऐसा सुनने में आया कि  आरती जोकि लाइव दिखाई जाती है श्रद्धा चैनल पर उसमें अपने आप को टीवी में दिखाने के लिए एक हजार की एक मेंबर की पर्ची कटती है जिसकी पहले से ही बुकिंग होती है,जबकि कुछ वर्ष पहले मेरा बेटा सुबह की आरती में निशुल्क बैठा था  |
          जब दर्शन के लिए जा रहे थे तो हेलीकाप्टर बुकिंग काउंटर खुला देखकर उत्सुकता हुई इसलिए पूछने चल दिए ग्लोबल हेलीकाप्टर सेवा से पता चला कि कल के लिए सभी 13 मेंबर्स के लिए टिकट उपलब्ध है सुबह 9.30 बजे की, तो हमने बुक करवा ली और फिर ख़ुशी ख़ुशी दरबार की तरफ बढ़ गए |

पवित्र गुफा की मान्यता :---
इस बीच पंडित श्रीधर अधीर हो गए. वे त्रिकुटा पर्वत की ओर उसी रास्ते आगे बढ़े, जो उन्होंने सपने में देखा था.अंततः वे गुफ़ा के द्वार पर पहुंचे
| उन्होंने कई विधियों से 'पिंडों' की पूजा को अपनी दिनचर्या बना लिया| देवी उनकी पूजा से प्रसन्न हुईं |वे उनके सामने प्रकट हुईं और उन्हें आशीर्वाद दिया| तब से, श्रीधर और उनके वंशज देवी मां वैष्णो देवी की पूजा करते आ रहे हैं| दरबार में पवित्र गुफ़ा के द्वार पर देवी मां प्रकट हुईं| देवी ने ऐसी शक्ति के साथ भैरव का सिर धड़ से अलग किया कि उसकी खोपड़ी पवित्र गुफ़ा से 2.5 कि.मी. की दूरी पर भैरव घाटी नामक स्थान पर जा गिरी|

पिंडी दर्शन :---
दरबार में पहुँचने से पहले यात्रा पर्ची दिखाई जाती है ,जिसे ले जाना ना भूलें ,फिर अलग अलग पंक्ति में महिला और पुरुष श्रद्धालुओं की चेकिंग की जाती है इसलिए कैमरा,मोबाइल चमड़े का सब सामान पर्स बेल्ट वगैरह और जूते हम कमरे में ही छोड़ कर गए थे | वैसे मनोकामना भवन में आपको लाकर सुविधा उपलब्ध है जिसमें आप अपना सामान रख कर जा सकते हैं ,ताला अपना लगाना पड़ता है जो बाद में आपको वापिस मिल जाता है | दरबार के बाहर ही सामान घर की सुविधा भी उपलब्ध है | 
                  चेकिंग के बाद आप से नारियल ले लिया जाता है और एक टोकन दिया जाता है ,जिसे दिखाकर आप दर्शन के बाद अपना नारियल वापिस ले सकते हैं |जयकारे लगाते हुए सब दरबार में पहुँच गए पुराणी गुफा बंद थी जबकि दो और गुफा खुली थी ताकि श्रद्धालु आराम से दर्शन कर सकें,सब खुले दर्शन कर बहुत आनादित हो लौटे ,वापिसी में अपना अपना नारियल और हर श्रद्धालु को प्रसाद स्वरुप मिश्री का पैकेट मिलता है जिसके अंदर खजाना पहले से पैक होता है |
            बाहर आकर हमने सबने  रात्रि भोजन किया श्राइन बोर्ड के भोजनालय से क्योंकि 11 बज चुके थे, देर हो चुकी थी इसलिए दाल चावल,कड़ी चावल ,राजमां चावल से ही काम चलाना पड़ा ,थाली की सुविधा समाप्त हो चुकी थी ,दूसरे बहुत से ढाबे आपको भोजन के लिए मिल जाएँगे परन्तु उनकी सफाई और ताजे भोजन की कोई गारंटी नहीं है इसलिए पेट का ख्याल करते हुए श्राइन बोर्ड की सुविधा का ही लाभ उठाएं| रात्रि भोजन के बाद हम कमरे में जाकर सो गए क्योंकि सुबह जल्दी उठकर भैरों बाबा के दर्शन की अभिलाषा थी जोकि हमें जल्दी पूरी करनी पड़ी क्योंकि हमें हेलीकाप्टर सेवा का आनंद उठाना था |
यहाँ तक की तस्वीरें कुछ गुगूल से साभार ....





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शनिवार, 11 मई 2013

वैष्णो देवी यात्रा भाग 2.


दूसरा दिन 

जम्मू से कटरा :--- 
    वहां से हमने पेड टैक्सी ली कटरा तक जाने के लिए उनके चार्जेज निश्चित हैं 980 रुपए ,अगर आप टैक्सी स्टैंड से थोडा बाहर से टैक्सी लेते हैं तो वोह आपको आधे रेट पर ही मिल जाती है ,सुबह की ठंडी हवाओं का आनंद लेते हुए हम ठीक 7 बजे कटरा पहुँच गए ,यहाँ मेरी ननद का परिवार हमारा इंतज़ार कर रहा था ,उन्होंने ने पहले से ही यात्री पर्ची जो भवन के लिए कटती है कटवा ली थी |अभी पांच दिन पहले ही यह सुविधा भी ऑनलाइन उपलब्ध हो गई है ,आप एक महीना पहले ही यात्रा पर्ची ऑनलाइन ले सकते हैं |
कटरा से बाणगंगा :---
कटरा से ही हेलीकाप्टर सेवा भी उपलब्ध है जिसका भाड़ा पिछले वर्ष 700 रुपए था ,अब 800 रुपए कर दिया गया है,जिसकी बुकिंग हमें नहीं मिली क्योंकि पिछले वर्ष बुकिंग तभी के तभी कर रहे थे मौसम देख कर पर अब एक महीना पहले करवानी पड़ती है वोह भी ऑनलाइन | हमने कुछ देर वहां होटल में आराम किया और फ्रेश होकर निकल पड़े |बाहर जाकर कुछ पेट पूजा की शेरे ए पंजाब में ,फिर वहां से ऑटो लिया बाणगंगा तक का,जिसका किराया पिछले वर्ष तक 50 रुपए था , अब 100 रुपए है |
पहला दर्शन बाणगंगा :---
  • कुछ श्रद्धालु नंगे पाँव पूरी यात्रा पैदल ही करनी पसंद करते हैं ,आप ऐसा जोखिम न उठाएं ,चप्पल की बजाए जूते पहन कर यात्रा करें 
  • बाणगंगा पर ही घोडा उपलब्ध है आपकी सुविधा के लिए 780 रुपए भवन तक के लिए और 380 रुपए आध्कुवारी के लिए | 
  • असहाय बुजुर्गों के लिए और छोटे बच्चों को सुविधा से ले जाने के लिए पालकी की सुविधा भी यहीं से उपलब्ध है,जिसका किराया एक तरफ का वजन के अनुसार 2000 रुपए से लेकर 4000 रुपए तक पड़ जाता है |
  • सबसे पहली चेकिंग यहीं होती है ताकि कोई भी श्रद्धालु तम्बाकू, गुटका ,पान सुपारी या कोई भी नशीला पदार्थ या कैंची चाकू वगैरह न ले जा सके |फिर भी काफी घोड़े वाले यानि पिठ्ठू आपको बीड़ी पीते मिल जाएंगे |
  • पिट्ठू सेवा भी यहीं से उपलब्ध है इसलिए हमने कुछ भारी बैग उनको सौंप दिए और आध्कुवारी तक पैदल यात्रा शुरू की लगभग 11.40 पर |
एक कहानी जो बाणगंगा से जुड़ी है:--
श्रीधर मां वैष्णो देवी का प्रबल भक्त थे. वे वर्तमान कटरा कस्बे से 2 कि.मी. की दूरी पर स्थित हंसली गांव में रहता थे. एक बार मां ने एक मोहक युवा लड़की के रूप में उनको दर्शन दिए. युवा लड़की ने विनम्र पंडित से 'भंडारा' आयोजित करने के लिए कहा. पंडित गांव और निकटस्थ जगहों से लोगों को आमंत्रित करने के लिए चल पड़े. उन्होंने एक स्वार्थी राक्षस 'भैरव नाथ' को भी आमंत्रित किया. भैरव नाथ ने श्रीधर से पूछा कि वे कैसे अपेक्षाओं को पूरा करने की योजना बना रहे हैं. उसने श्रीधर को विफलता की स्थिति में बुरे परिणामों का स्मरण कराया. चूंकि पंडित जी चिंता में डूब गए, दिव्य बालिका प्रकट हुईं और कहा कि वे निराश ना हों, सब व्यवस्था हो चुकी है.उन्होंने कहा कि 360 से अधिक श्रद्धालुओं को छोटी-सी कुटिया में बिठा सकते हो. उनके कहे अनुसार ही भंडारा में अतिरिक्त भोजन और बैठने की व्यवस्था के साथ निर्विघ्न आयोजन संपन्न हुआ. भैरव नाथ ने स्वीकार किया कि बालिका में अलौकिक शक्तियां थीं और आगे और परीक्षा लेने का निर्णय लिया. उसने त्रिकुटा पहाड़ियों तक उस दिव्य बालिका का पीछा किया. 9 महीनों तक भैरव नाथ उस रहस्यमय बालिका को ढूँढ़ता रहा, जिसे वह देवी मां का अवतार मानता था. भैरव से दूर भागते हुए देवी ने पृथ्वी पर एक बाण चलाया, जिससे पानी फूट कर बाहर निकला. यही नदी बाणगंगा के रूप में जानी जाती है. ऐसी मान्यता है कि बाणगंगा (बाण: तीर) में स्नान करने पर, देवी माता पर विश्वास करने वालों के सभी पाप धुल जाते हैं.वैसे वहां अब कुछ लोग ही यानि परम श्रद्दालु ही खुले में स्नान करते हैं ,वहां ऐसी कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है |नदी के किनारे, जिसे चरण पादुका कहा जाता है, देवी मां के पैरों के निशान हैं, जो आज तक उसी तरह विद्यमान हैं.
दूसरा दर्शन आध्कुवारी:---
सबके साथ गाते जयकारे लगाते रास्ते में रुकते एक दूसरे का इंतज़ार करते 2.40pm तक हम आध्कुवारी तक पहुँच गए थे ,घोड़े पर यह सफ़र एक घंटे में तय हो जाता है| कुछ और मेम्बर जो पीछे छूट गए थे उनका इंतज़ार करने लगे| उनके पहुँचने पर सबने श्राइन बोर्ड के ही भोजनालय में भोजन किया जिसमें कड़ी चावल ,राजमां चावल हर समय उपलब्ध हैं ब्रेड पकौड़ा ,छोले पूरी समय पर ही मिलती है |यहाँ से दो रस्ते जाते हैं एक गर्भजून जो आध्कुवारी [इसके बाद वैष्णो देवी ने आध्कुवारी के पास गर्भ जून में शरण ली, जहां वे 9 महीनों तक ध्यान-मग्न रहीं और आध्यात्मिक ज्ञान और शक्तियां प्राप्त कीं. भैरव द्वारा उन्हें ढूंढ़ लेने पर उनकी साधना भंग हुई. जब भैरव ने उन्हें मारने की कोशिश की, तो विवश होकर वैष्णो देवी ने महा काली का रूप लिया.] में स्थित है से होते हुए हाथी मत्था,सांझी छत्त से होते हुए भवन को जाता है |दूसरा रास्ता जो ऑटो के लिए बना है आसान है,चढाई कम है |
                 रात को भवन पर रुकने का मन बनाया था, मनोकामना भवन में पहले से ही कमरे बुक थे, इसलिए आध्कुवारी से भवन तक ऑटो से जाने का मन था ,जिसकी टिकट मिलने का इंतज़ार हमने 4.45pm तक किया, भीड़ के दिनों में यह सुविधा सिर्फ 65 वर्ष से ऊपर ही उपलब्ध है,पर क्योंकि भीड़ इतनी नहीं थी इसलिए टिकट आसानी से मिल गई, इसकी टिकट पिछले वर्ष तक 100 रुपए थी अब यह 300 रुपए कर दी गई है |बच्चे और पुरुष लोग सब पैदल ही जा चुके थे ,हमें ऑटो ने आधे घंटे में पहुंचा दिया ,जबकि पैदल यात्रा 2 से अढाई घंटे तक लगते हैं |वहां पहुंचकर सबका इंतज़ार किया नीचे हाल में ही कुछ नाश्ता पानी लिया ,फिर हमने कमरे में जाकर थोडा आराम किया|
यहाँ तक की कुछ तस्वीरें .....












वैष्णो देवी यात्रा भाग 3.क्रमशः ......

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