रविवार, 29 सितंबर 2013

''श्री खाटू श्याम जी'' भाग 1.

दिल्ली से बाहर कहीं भी जाना हो तो सुबह सुबह का समय उत्तम रहता है , इस बार खाटू श्याम जी जाने के लिए समय अभाव के कारण हम दोपहर 2 बजे निकल पाए इसलिए हम भोजन करके ही निकले थे और फिर जाकर सीधा रुके जयपुर हाईवे पर बने किंग्स होटल पर ,जो कुछ  विश्राम करने और खाने के लिहाज से उत्तम जगह है हर प्रकार के  भोजन की बहुत ही उत्तम व्यवस्था है क्योंकि ज्यादा ट्रैफिक नहीं मिला था इसलिए हम ठीक 5 बजे यहाँ पहुँच गए थे रास्ते में सिर्फ टोल चुकाने के लिए रुके थे ,जोकि किस लिए और क्यों लिया जाता है वो समझ से बाहर है क्योंकि हर जगह अव्यवस्था फैली हुई है सडकों का बुरा हाल है और टोल पहले से दोगुना हो चुका है इतनी गाड़ियाँ निकलती हैं उनसे 20 रुपये या 25 रुपये लेना तो कुछ समझ आता है पर कहीं कहीं तो टोल 114रुपये तक है | 
                यहाँ से हमें  जयपुर होते हुए खाटू श्याम जी धाम जाना था ,वैसे तो 4..5 बार वहां जाना हुआ है हर बार का अनुभव अलग रहा है आज उन्हीं अनुभवों को आपके साथ बांटने जा रही हूँ |
खाटू श्याम जी 
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प्रवेश द्वार 
स्थिति :----
खाटूश्यामजी भारत देश के राजस्थान राज्य के सीकर जिले में एक प्रसिद्ध कस्बा है, जो रींगस से 17 किलोमीटर दूर है ,जहाँ पर बाबा श्याम का जग विख्यात मन्दिर है,यहाँ विराजित हैं भगवान श्री कृष्ण के कलयुगी अवतार खाटू श्याम जी | खाटू श्याम जी दिल्ली से लगभग 300 किलोमीटर व राजस्थान की राजधानी जयपुर से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं|



कैसे पहुँचें : -----

सड़क मार्ग : खाटू धाम से जयपुर, सीकर आदि प्रमुख स्थानों के लिए राजस्थान राज्य परिवहन निगम की बसों के साथ ही टैक्सी और जीपें भी यहाँ आसानी से उपलब्ध हैं।
रेलमार्ग : निकटतम रेलवे स्टेशन रींगस जंक्शन (15 किलोमीटर) है।
वायुमार्ग : यहाँ से निकटतम हवाई अड्‍डा जयपुर है, जो कि यहाँ से करीब 80 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
जैसा की विदित हुआ यहाँ तक कोई सुविधाजनक रेल यात्रा नहीं है केवल कुछ ही गाड़ियाँ यहाँ रूकती हैं | 

परिचय :----
राजस्थान की धरा यूँ तो अपने आँचल में अनेक गौरव गाथाओं को समेटे हुए है, लेकिन आस्था के प्रमुख केन्द्र खाटू की बात अपने आप में निराली है। श्याम मंदिर बहुत ही प्राचीन है, मूल मंदिर 1027 ई. में रूपसिंह चौहान और उनकी पत्नी नर्मदा कंवर द्वारा बनाया गया था. मारवाड़ के शासक ठाकुर के दीवान अभय सिंह ने ठाकुर के निर्देश पर वर्तमान मं‍दिर की आधारशिला सन 1720 में रखी गई थी। इतिहासकार पंडित झाबरमल्ल शर्मा के मुताबिक सन 1679 में औरंगजेब की सेना ने इस मंदिर को नष्ट कर दिया था। मंदिर की रक्षा के लिए उस समय अनेक राजपूतों ने अपना प्राणोत्सर्ग किया था।

पौराणिक प्रचलित कथा :----
श्याम बाबा की अपूर्व कहानी मध्यकालीन महाभारत से आरम्भ होती है। वे पहले बर्बरीक के नाम से जाने जाते थे। वे महान पान्डव भीम के पुत्र घटोतकच्छ और नाग कन्या मौरवी के पुत्र है। बाल्यकाल से ही वे बहुत वीर और महान यौद्धा थे।बालक वीर बर्बरीक के जन्म के पश्चात् घटोत्कच इन्हें भगवन श्री कृष्ण के पास लेकर गए और भगवन श्री कृष्ण ने वीर बर्बरीक के पूछने पर, जीवन का सर्वोत्तम उपयोग, परोपकार व निर्बल का साथी बनना बताया | उन्होने युद्ध कला अपनी माँ से सीखी। भगवान शिव की घोर तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया और तीन अभेध्य बाण प्राप्त किये और तीन बाणधारी का प्रसिद्ध नाम प्राप्त किया। अग्नि देव ने प्रसन्न होकर उन्हें धनुष प्रदान किया, जो कि उन्हें तीनो लोकों में विजयी बनाने में समर्थ थे।
                               जब बर्बरीक युद्ध में भाग लेने चले तब भगवन श्री कृष्ण ने राह में इनसे शीश दान में मांग लिया क्योकि अगर बर्बरीक युद्ध में भाग लेते तो कौरवों की समाप्ति केवल 18 दिनों में महाभारत युद्ध में नही हो सकती थी व युद्ध निरंतर चलता रहता | वीर बर्बरीक ने भगवान श्री कृष्ण के कहने पर जन-कल्याण, परोपकार व धर्म की रक्षा के लिए आपने शीश का दान उनको सहर्ष दे दिया व कलयुग में भगवान श्री कृष्ण के अति प्रिय नाम श्री श्याम नाम से पूजित होने का वरदान प्राप्त किया | बर्बरीक की युद्ध देखने की इच्छा भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक के शीश को ऊंचे पर्वत पर रखकर पूर्ण की |



                    युद्ध की समाप्ति पर पांडवों ने जानना चाहा,युद्ध  में विजय का श्रेय किसको जाता है, इस पर कृष्ण ने उन्हें सुझाव दिया कि बर्बरीक का शीश सम्पूर्ण युद्ध का साक्षी है अतैव उससे बेहतर निर्णायक भला कौन हो सकता है। सभी इस बात से सहमत हो गये। बर्बरीक के शीश ने उत्तर दिया कि कृष्ण ही युद्ध मे विजय प्राप्त कराने में सबसे महान पात्र हैं, उनकी शिक्षा, उनकी उपस्थिति, उनकी युद्धनीति ही निर्णायक थी।
                    कृष्ण वीर बर्बरीक के महान बलिदान से काफी प्रसन्न हुये और वरदान दिया कि कलियुग में तुम श्याम नाम से जाने जाओगे, क्योंकि कलियुग में हारे हुये का साथ देने वाला ही श्याम नाम धारण करने में समर्थ है। खाटू में श्याम के मस्तक स्वरूप की पूजा होती है, जबकि निकट ही स्थित रींगस में धड़ स्वरूप की पूजा की जाती है।

विशेष तिथियाँ :----
फाल्गुन मास की द्वादशी को बर्बरीक ने शीश का दान दिया था इसलिए हर साल फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष में यहाँ विशाल मेला लगता है, जिसमें देश-विदेश से भक्तगण पहुँचते हैं। हजारों लोग यहाँ पदयात्रा कर पहुँचते हैं, वहीं कई लोग दंडवत करते हुए खाटू नरेश के दरबार में हाजिरी देते हैं। कार्तिक शुक्ल एकादशी जन्मोत्सव वाले दिन भी भारी संख्या में श्रद्धालु यहाँ माथा टेकने आते हैं |

कुछ तस्वीरें :----



होटल किंग ,जयपुर हाईवे

श्री खाटू श्याम जी भाग 2.क्रमशः......

मंगलवार, 17 सितंबर 2013

पितृ पक्ष दिवस

पितृ पक्ष का शाब्दिक अर्थ है "पूर्वजों के पखवाड़े"| इसे महालय पक्ष भी कहा जाता है |पिता-माता आदि पारिवारिक मनुष्यों की मृत्यु के पश्चात्‌ उनकी तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक किए जाने वाले कर्म को पितृ श्राद्ध कहते हैं।

समय :---
इसकी अवधि  16 चांद्र दिन है जब हिंदु अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं | भाद्रपद महीने के कृष्णपक्ष के पंद्रह दिन पितृपक्ष के नाम से विख्यात है। पितृ पक्ष व श्राद्ध इस वर्ष वीरवार 19 सितंबर से शुरू होने जा रहे हैं। पूर्णिमा के दिन पहला श्राद्ध होगा| इन पंद्रह दिनों में लोग अपने पितरों (पूर्वजों) को जल देते हैं |
कौन सा श्राद्ध कब :---
तिथि दिनांक
पूर्णिमा 19 सितंबर
प्रतिपदा 20 सितंबर
द्वितीया 21 सितंबर
तृतीया 22 सितंबर
चतुर्थी 23 सितंबर
पंचमी 24 सितंबर
षष्ठमी 25 सितंबर
सप्तमी 26 सितंबर
अष्टमी 27 सितंबर
नवमी 28 सितंबर
दशमी 29 सितंबर
एकादशी 30 सितंबर
द्वादशी   1 अक्टूबर
त्रयोदशी      2 अक्टूबर
चतुर्दशी 3 अक्टूबर
अमावस्या 4 अक्टूबर
पितृ पक्ष का अन्तिम दिन सर्वपित्रू अमावस्या या महालय अमावस्या के नाम से जाना जाता है। पितृ पक्ष में महालय अमावस्या सबसे मुख्य दिन होता है। 
श्राद्ध के प्रकार :---
श्राद्ध कई प्रकार के होते हैं इनमें एकोदिष्ट श्राद्ध, अनावष्टक श्राद्ध व पार्वण श्राद्ध प्रमुख हैं। एकोदिष्ट श्राद्ध वर्ष में एक बार आने वाली कालतिथि को किया जाता है। इसके अलावा सौभाग्वती स्त्रियों का श्राद्ध नवमी तिथि को किया जाता है व यह अनावष्टक श्राद्ध होता है। पितरों के लिए पार्वण श्राद्ध किया जाता है।
श्राद्ध के नियम :---
           पितृपक्ष में हिन्दू लोग मन कर्म एवं वाणी से संयम का जीवन जीते हैं; पितरों को स्मरण करके जल चढाते हैं; निर्धनों एवं ब्राह्मणों को दान देते हैं। पितृपक्ष में प्रत्येक परिवार में मृत माता-पिता का श्राद्ध किया जाता है, परंतु गया श्राद्ध का विशेष महत्व है। वैसे तो इसका भी शास्त्रीय समय निश्चित है, परंतु ‘गया सर्वकालेषु पिण्डं दधाद्विपक्षणं’ कहकर सदैव पिंडदान करने की अनुमति दे दी गई है। 
           इसलिए हिंदू धर्म शास्त्रों में पितरों का उद्धार करने के लिए पुत्र की अनिवार्यता मानी गई हैं। राजा भागीरथ ने अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए गंगा जी को स्वर्ग से धरती पर ला दिया। जन्मदाता माता-पिता को मृत्यु-उपरांत लोग विस्मृत न कर दें, इसलिए उनका श्राद्ध करने का विशेष विधान बताया गया है।
भोजन प्रसाद :---
पूर्वजों के लिए किए गए भोजन प्रसाद आमतौर पर चांदी या तांबे के बर्तन में पकाया जाता है और आम तौर पर एक केले के पत्ते या सूखे पत्तों से बने कप पर रखा जाता है. भोजन में  खीर, चावल, दाल , वसंत सेम और एक पीला लौकी शामिल करना चाहिए |



File:Pitru Paksha 2007.jpg
पितृ पक्ष करते बाणगंगा ,मुबई 

पितृपक्ष में क्या करें :- 
* पशु-पक्षियों को भोजन कराएं।
* गरीबों और ब्राह्मणों को अपने सामर्थ्यनुसार दान करें।
* शुभ और कोई नए कार्य की शुरुआत न करें।
* पितृस्त्रोत का पाठ करें।
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गुरुवार, 12 सितंबर 2013

प्रभु सृजनकार है

प्रभु निराकार है महिमा अपरमपार है 
सारे विश्व का प्रभु, तू ही सृजनकार है 

धरती बनाई तूने,सब चाँद और सितारे 
नदियाँ बनाई तूने, जंगल,पहाड़ सारे 
सूरज की चमक में, तू ही करतार है 
सारे विश्व का प्रभु, तू ही सृजनकार है /

माता पिता तुम्ही हो,बन्धु सखा तुम्ही हो 
दिन रात गर्मी सर्दी बरसात में तुम्ही हो 
जलनिधि में जल के भरे हुए भण्डार हैं 
सारे विश्व का प्रभु, तू ही सृजनकार है /

मानव का सुन्दर चोला पाया है तुम्हीं से 
फल फूल प्यारे प्यारे सुगन्ध है तुम्ही से 
तू ही इस जीवन का सर्वोच्च आधार है 
सारे विश्व का प्रभु, तू ही सृजनकार है /

जन्म मरण है तुमसे, घृणा प्रेम तुमसे 
दीन दुखी निर्बल आंसू ख़ुशी है तुमसे 
तू ही विघ्नहर्ता ,तू ही लगाता पार है 
सारे विश्व का प्रभु, तू ही सृजनकार है /

प्रभु निराकार है महिमा अपरमपार है 
सारे विश्व का प्रभु, तू ही सृजनकार है 

मंगलवार, 10 सितंबर 2013

गणेश चतुर्थी भाग 2.

गणेश चतुर्थी पूजन के लिए 11 मन्त्र 
ऋण से मुक्ति के लिए
"ऊँ गणेश ऋणं छिन्धि वरणयं हुं नमः फट"
इस मन्त्र की एक माला का जाप करें।

संकट नाश के लिए
"ऊँ नमो हेरम्ब मदमोहित मम संकटान निवारय स्वाहा"
इस मन्त्र की 1 माला का जाप करें।

वशीकरण के लिए
"ऊँ श्रीं गं सौम्याय गणपते वरवरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा"
निम्न मन्त्र की 5 माला का जाप करें।

किसी तान्त्रिक क्रिया को नष्ट करने के लिए
"ऊँ वक्रतुंडाय हुम"
इस मन्त्र का जाप करते वक्त मुंह में पान, सुपारी, 
लौंग, इलायची, गुड़ आदि होना चाहिए। 
इसकी साधना में पवित्रता का विशेष ध्यान रखना होगा।

आलस्य, निराशा, कलह व विपत्ति नाश के लिए
"गं क्षिप्रप्रसादनाय नमः"
मन्त्र की कम से 2 माला का जाप करें।


धन व आत्मबल प्राप्ति के लिए
"ऊँ गं नमः"
निम्न मन्त्र की एक माला का जाप करें|

आर्थिक समृद्धि व रोजगार प्राप्ति के लिए
"ऊँ श्रीं गं सौभ्याय गणपते वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा"
इस मंत्र की एक माला का जाप करें।

विवाह में आने वाली बाधाओं के लिए
"ऊँ वक्रतुण्डैक दंष्टाय क्लीं ह्रीं श्रीं गं गणपते वर वरद सर्वजनं में स्वाहा"
मंत्र की कम से कम 1 माला का जाप करने से विवाह में आने 
वाली बाधायें दूर होगी और सुन्दर जीवन साथी प्राप्त होगा।

सभी मनोकामनाएं पूर्ण करने के लिये
"गं गणपते नमः"
मन्त्र का जाप करने से लगभग सभी प्रकार की 
मनोकामनायें पूर्ण होगी।

विद्या अध्ययन करते समय, विवाह के समय, 
भवन में प्रवेश करते समय, यात्रा करते समय, 
रोजगार के शुभारम्भ में, किसी भी शुभ कार्य 
करते समय गणेश के बारह नाम लेने से 
कार्यो में किसी भी प्रकार की अड़चने नहीं आयेंगी।
गणपति के 12 नाम
1- सुमुख, 2- एकदन्त, 3- कपिल, 4- गजकर्ण, 
5- लम्बोदर, 6- विकट, 7- विनायक, 8- धूम्रकेतु,
 9- गणाध्यक्ष, 10- भालचन्द्र, 11- गजानन, 12- विघ्रनाशन।

गणेश के बारह नामों के अर्थ
इन नामों का अर्थ- 
1- सुन्दर मुख वाले, 2- एक दांत वाले,
3- कपिल वर्ण के, 4- हाथी के कान वाले, 
5- लम्बे पेट वाले, 6- विपत्ति का नाश करने वाले, 
7-न्याय करने वाले, 8- धुये के रंग वाली पताका वाले,
 9- गुणों के अध्यक्ष, 10- मस्तक में चन्द्रमा धारण करने वाले 
11- हाथी के समान मुख वाले और 12- विघ्‍नों को हरने वाले।
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सोमवार, 9 सितंबर 2013

गणेश चतुर्थी भाग 1.

विघ्नहर्ता  गणेश के अवतरण दिवस को गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है | भगवान गणेश की उपासना के लिए भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से लेकर अनंत चतुर्दशी के 10 दिन मनोकामना और दुःखों को दूर करने के लिए अति शुभ है। इस उत्सव का समापन अनन्त चतुर्दशी के दिन श्री गणेश की मूर्ति को समुद्र में विसर्जित करने के पश्चात होता है।

 गणेश चतुर्थी की अलग अलग कथाएं एवं महत्व बयां करती कुछ तस्वीरें

गणेश चतुर्थी का पावन पर्व मंगलमूर्ति विघ्नहर्ता भगवान गणेश के अवतरण दिवस के रूप में देश ही नहीं, अपितु विश्व भर के हिन्दू धर्मावलम्बियों द्वारा बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. हिन्दू दर्शन के अनुसार गणपति आदि देव हैं जिन्हें प्रथम पूज्य की गरिमामय पदवी हासिल है. शुभत्व के प्रतीक विघ्नहर्ता गणेश का पूजन यूं तो हर परिस्थिति में शुभ फलदायक होता है किन्तु भाद्रपद मास की शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि को विधिविधान से किया गया भगवान गणेश का व्रत-पूजन कई गुना अधिक शुभ फल देता है.

श्रद्धालुओं की मान्यता है कि इस विशिष्ट मुहूर्त में की गयी छोटी भावपूर्ण प्रार्थना चमत्कारी परिणाम देती है. हिन्दू धर्म में हर मंगल आयोजन का शुभारंभ भगवान गणेश की पूजा-अर्चना के साथ किया जाता है. माना जाता है कि जिस शुभ आयोजन की शुरुआत गणेश पूजन के बिना होती है, उसका कोई शुभफल नहीं मिलता.

क्या है कथा-- 'शिव पुराण' के अंतर्गत रुद्र संहिता के चतुर्थ खंड (कुमार) में गणेश की उत्पत्ति की एक अन्य कथा वर्णित है. एक बार माता पार्वती ने स्नान से पूर्व एक बालक का पुतला बनाकर उसमें प्राण फूंककर उसे दुलारपूर्वक निर्देश देकर कहा, हे पुत्र, तू यह मुगदल पकड़ और इस गुफा के द्वार की निगरानी कर, मैं भीतर स्नान करने जा रही हूं. ध्यान रखना, मेरी अनुमति के बिना कोई भी भीतर प्रवेश न करने पाये.

कुछ देर बाद भगवान शिव वहां पहुंचे और गुफा के भीतर प्रवेश करने लगे तो द्वार पर तैनात बालक ने उन्हें रोक दिया. इस पर शिव क्रोधित हो उठे. नन्दी समेत अन्य गणों से उस बालक का भयानक युद्ध हुआ किन्तु वह बालक किसी के काबू में न आया. स्थिति बेकाबू होते देख शिव का क्रोध बढ़ गया और उन्होंने अपने त्रिशूल से बालक का मस्तक काट दिया. बालक के मरने का समाचार मिलते ही माता पार्वती क्रोध से आगबबूला हो उठीं.

उन्होंने प्रलय करने की ठान ली. इस पर सभी देवगण भयभीत हो उठे. उन्होंने स्तुति-विनय कर किसी तरह माता का क्रोध शांत किया. फिर ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र आदि देवों से विचारिवमर्श के उपरान्त विष्णु जी वन में गये और उत्तर दिशा में मिले पहले जीव (हाथी) का मस्तक काट कर ले आये.

शिव ने उस मस्तक को बालक के धड़ पर स्थापित कर बालक को पुनर्जीवित कर दिया. विपदा टलने पर सभी ने हर्षनाद कर उस बालक को बुद्धि, आयु और समृद्धि के स्वामी होने के साथ प्रथम पूज्य होने का वरदान दिया. शिव ने उन्हें अपने गणों का अध्यक्ष नियुक्त किया. यही बालक गजानन गणेश नाम से लोक विख्यात हुआ.

विशिष्ट शारीरिक संरचना विघ्नहर्ता गौरी पुत्र गणेश की मनोहारी शरीराकृति भी अपने में गहरे और विशिष्ट अर्थ संजोये हुए है. लंबा उदर इनकी असीमित सहन शक्ति का परिचायक है. चार भुजाएं चारों दिशाओं में सर्वव्यापकता की प्रतीक हैं, बड़े-बड़े कान अधिक ग्राह्य शक्ति, छोटी-छोटी पैनी आंखें तीक्ष्ण दृष्टि और लम्बी सूंड महाबुद्धित्व का प्रतीक है.

प्रमुख नाम--गणपति के 12 नाम जो लोकविख्यात हैं, इस प्रकार हैं- सुमुख, एकदंत, कपिल, गजकर्णक, लम्बोदर, विकट, विघ्नविनाशक, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचन्द्र और गजानन गणेश. लोकोत्सव दस दिनों तक मनाया जाने वाला गणेशोत्सव यूं तो पिछले कुछ वर्षों से पूरे देश में मनाया जाने लगा है किन्तु महाराष्ट्र में आयोजित होने वाली शोभा यात्राएं और झांकियां देखते ही बनती हैं. यहां गणेशोत्सव को लोकोत्सव का दर्जा हासिल है. सातवाहन, राष्ट्रकूट, चालुक्य आदि राजवंशों ने यहां गणेश उत्सव की परंपरा शुरू की थी. पेशवाओं ने भी गणेशोत्सव को बढ़ावा दिया.

छत्रपति शिवाजी महाराज भी खूब धूमधाम से गणेश उत्सव मनाते थे. कहते हैं कि पुणे में कस्बा गणपति नाम से सुप्रसिद्ध गणपति की स्थापना शिवाजी महाराज की मां जीजाबाई ने ही की थी. मगर आजादी के आंदोलन के दौरान लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने गणेशोत्सव को जो बृहद स्वरूप प्रदान किया, उससे गणेश राष्ट्रीय एकता के प्रतीक बन गये.

क्‍यों मनाते हैं गणेश चतुर्थी?
एक दिन गणेश चूहे की सवारी करते समय फिसल गये तो चन्द्रमा को हॅसी आ गयी। इस बात पर गणेश काफी क्रोधित होकर चन्द्रमा को श्राप दे दिया कि चन्द्र अब तुम किसी के देखने के योग्य नहीं रह जाओगे और यदि किसी ने तुम्हें देख लिया तो पाप का भागी होगा। श्राप देकर गणेश जी वहां से चले गये। चन्द्रमा दुःखी व चिन्तित होकर मन नही मन अपराधबोध महसूस करने लगा कि सर्वगुण सम्पन्न देवता के साथ ये मैंने क्या कर दिया?
चन्द्रमा के दर्शन न कर पाने के श्राप से देवता भी दुःखी हो गये। तत्पश्चात इन्द्र के नेतृत्व में सभी देवताओं ने गजानन की प्रार्थना और स्तुति प्रारम्भ कर दी। देवताओं की स्तुति से प्रसन्न होकर गणेश जी ने वर मांगने को कहा। सभी देवताओं ने कहा- प्रभु चन्द्रमा को पहले जैसा कर दो, यही हमारा निवेदन है। गणेश जी ने देवताओ से कहा कि मैं अपना श्राप वापस तो नहीं ले सकता हूं। किन्तु उसमें कुछ संशोधन कर सकता हूं।
जो व्यक्ति जाने-अनजाने में भी भाद्र शुक्ल चतुर्थी को चन्द्रमा के दर्शन कर लेगा, वह अभिशप्त होगा और उस पर झूठे आरोप लगाये जायेंगे। यदि इस दिन दर्शन हो जाये तो इस पाप से बचने के लिए निम्न मन्त्र का पाठ करें-
"सिंह प्रसेनमवधीत्सिंहो जाम्बवता हतः
सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्रोष स्यमन्तकः"

गणेश चतुर्थी भाग 2.क्रमशः...


रविवार, 8 सितंबर 2013

'' पर्यूषण ''

परिभाषा :---
पर्यूषण शब्द की परिभाषा व व्याख्या विभिन्न आचार्यों, साधु-साध्वियों ने विभिन्न विभिन्न रुप से की है। पर्यूषण शब्द का सन्धि-विच्छेद करते हुए परिउषण। परि का मतलब होता है चारों ओर से, सब तरफ से तथा उषण का अर्थ है दाह। जिस पर्व में कर्मों का दाह।विनाश किया जाये | 
पर्यूषण पर्व :---
पर्यूषण पर्व पर सामूहिक आराधना की जाती है। इन दिनों अध्यात्म मय माहौल देखने को मिलता है। इन दिनों में आध्यात्म पर प्रवचन, अध्यात्म का शिक्षण व अध्यात्म की साधना की प्रेरणा दी जाती है।
उद्देश्य :---
पर्यूषण पर्व को मनाने का मुख्य उद्देश्य आत्मा को शुद्ध करने के लिए आवश्यक उपक्रमों पर ध्यान केंद्रित करना होता है। पर्यावरण का शुद्धिकरण इसके लिए अनिवार्य बताया गया है।
पर्व समय:---
जैन धर्म में मुख्यतः दो सम्प्रदाय हैं- श्वेताम्बर संप्रदाय और दिगंबर संप्रदाय। श्वेताम्बर संप्रदाय को मानने वाले लोग पर्यूषण पर्व को भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की पंचमी तक मनाते हैं, जबकि दिगंबर संप्रदाय के लोग इस महापर्व को भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी से चतुर्दशी तक मनाते हैं। पर्यूषण पर्व में अनुयायी जैन तीर्थंकरों की पूजा, सेवा और स्मरण करते हैं। पर्व में शामिल होने वाले लोग आठ दिनों के लिए उपवास रखने का प्रण करते हैं, इसे 'अटाई' या आष्टान्हिक पर्व भी कहा जाता है। आठ दिनों तक चलने वाले इस पर्व में एक दिन स्वप्न दर्शन होता है, जिसमें उत्सव के साथ 'त्रिशाला देवी' की पूजा तथा आराधना आदि भी की जाती है|



आठ दिन का महत्व :---
जैन धर्म का यह प्रमुख पर्व पर्युषण महापर्व आठ दिनों का ही क्यों निर्धारित किया गया है ? तो उसका उत्तर है कि हमारी आत्मा के आठ प्रमाद है :-
1) अज्ञान, 2) संशय, 3) मिथ्या ज्ञान, 4) राग, 5) द्वेष, 6) स्मृति (स्मृति-भ्रंश), 7) धर्म-अनादर, 8) योग
दुष्परिणाम में फंसी हुई आठ मद :-
1) जाति, 2) कुल, 3) बल, 4) रुप, 5) तप, 6) लाभ, 7) श्रुत, 8) ऐश्वर्य
ऐश्वर्य के कारण 8 कर्म :- 1) ज्ञानावरणीय, 2) दर्शनावरणीय, 3) वेदनीय, 4) मोहनीय, 5) आयु, 6) नाम, 7) गौत्र, 8) अनाराम- से आवृत्त होकर अपनी सच्ची अलौकिक शक्ति तथा ज्ञान को खोती चली जा रही है। प्राचीन काल में 8 दिन के उत्सव होते थे तथा किसी भी शुभ कार्य में 8 का योग होना अच्छा मानते थे। मंगल आठ माने गए हैं। सिद्ध भगवान के भी 8 गुण बताए हैं। साधु की प्रवचन माता आठ है। संयम के भी आठ भेद बताए गए हैं।योग के 8 अंग हैं। आत्मा के रूचक प्रदेश भी आठ हैं। इस प्रकार आठ की गणना बड़ी महत्वपूर्ण रही है। 
क्षमापना :---
पर्यूषण पर्व पर क्षमापना या क्षमावाणी का कार्यक्रम ऐसा है जिससे जैनेतर जनता को काफी प्रेरणा मिलती है। इसे सामूहिक रूप से विश्व-मैत्री दिवस के रूप में मनाया जा सकता है। पर्यूषण पर्व के समापन पर इसे मनाया जाता है। गणेश चतुर्थी या ऋषि पंचमी को संवत्सरी पर्व मनाया जाता है।

उस दिन लोग उपवास रखते हैं और स्वयं के पापों की आलोचना करते हुए भविष्य में उनसे बचने की प्रतिज्ञा करते हैं। इसके साथ ही वे चौरासी लाख योनियों में विचरण कर रहे, समस्त जीवों से क्षमा माँगते हुए यह सूचित करते हैं कि उनका किसी से कोई बैर नहीं है।


क्षमापना मंत्र

है प्रभु पार्श्वनाथ, है प्रभु भेरवनाथ, मेरे से रात दिन हज़ारो अपराध होते रहते है.

मैं आपका दास हुं यह समझकर कृपा पूर्वक क्षमा करो |

मैं आपका आवाह्न करना नहीं जानता विसर्जन करना नहीं जानता

पूजा करने का ढंग नहीं जानता, है प्रभु मुझे क्षमा करो

मंत्रहिन् क्रियाहीन तथा भक्तिहिन् जो पूजन किया है. वह आपकी कृपा से पूर्ण हो |

है प्रभु मैं अज्ञानी हु, अपराधी हु, मैं आपकी शरण मैं आ गया हु,

इसलिए दया का पात्र  हूँ , आगे जो आपको उचित लगे वैसा करे

भूल से, अज्ञान से, बुधिभांत होने का कारन कुछ न्यूनता या अधिकता हो गयी

हो तो क्षमा करो

और जल्दी प्रसन्न हो आपतो गोपनीय से गोपनीय वास्तु की रक्षा करने वाले हो,

मेरे निवेदन किये गए इस पाठ को स्वीकार करो,

आपकी कृपा से मेरी मनोकामना पूर्ण हो |
Jain hand.svg

यदि किसीने हमारा अपराध कर दिया हो और हम उसके बदले उसे दण्ड देने में समर्थ हों, फिर भी दण्ड न दे कर उसे छोड़ दें – क्षमा कर दें तो इससे दोनों को प्रसन्नता होगी – अपराधी को भी और अपराध्य को भी|
अपराधी को तो इसलिए प्रसन्नता होगी कि वह दण्ड से बच गया और अपराध्य (जिसका अपराध किया गया है, उस व्यक्ति) को इसलिए प्रसन्नता होगी कि अपराधी को क्षमा करके उसने अपराधी के हृदय में अपनी उदारता की छाप लगा दी है – अपराधी को अपना मित्र बना लिया है – उसे सुधार दिया है या सुधरने के लिए एक अवसर और दे दिया है|
शिक्षा :---
मानव की सोई हुई अन्त:चेतना को जागृत करने, आध्यात्मिक ज्ञान के प्रचार, सामाजिक सद्भावना एवं सर्व-धर्म समभाव के कथन को बल प्रदान करने के लिए पर्यूषण पर्व मनाया जाता है। यह पर्व धर्म के साथ राष्ट्रीय एकता तथा मानव धर्म का पाठ पढ़ाता है। यह पर्व सिखाता है कि धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष आदि की प्राप्ति में ज्ञान व भक्ति के साथ सद्भावना का होना अनिवार्य है। भगवान भक्त की भक्ति को देखता है, उसकी अमीरी-गरीबी या सुख-समृद्धि को नहीं। जैन सम्प्रदाय का यह पर्व हर दृष्टीकोण से गर्व करने लायक़ है, क्योंकि इस दौरान गुरु भगवंतो के मुखारविद से अमृतवाणी का श्रवण होता है, जो हमारे जीवन में ज्ञान व धर्म के अंकुर को परिपक्व करता है।
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हम सब आए कन्हैया,मिल के तेरे दरबार!

तू है हम सब का दाता,भरता झोली जो खाली,
करदे कृपा तू ऐसी ,हमरा बेड़ा तू तार,
हम सब आए कन्हैया,मिल के तेरे दरबार!

हम सब पौधे हैं तेरे,तू है हम सब का माली,
शरण लगालो दाता,बनके हमरी सरकार,
हम सब आए कन्हैया,मिल के तेरे दरबार!

हम सब बच्चे हैं तेरे,तू है हम सब का वाली,
तुम पार लगादो नैया ,बनके हमरी पतवार,
हम सब आए कन्हैया,मिल के तेरे दरबार!

हम सब अपने में डूबे तू करता सबकी रखवाली,
यहाँ कोई ना किसी का,हमको तेरी दरकार,
हम सब आए कन्हैया,मिल के तेरे दरबार!

सारे श्रदा से आएँ,सबका तू ही सवाली,
तू है हारे का सहारा,सुनले हमरी पुकार,
हम सब आए कन्हैया,मिल के तेरे दरबार!!
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बुधवार, 4 सितंबर 2013

शिक्षक दिवस

शिक्षक दिवस गुरु की महत्ता बताने वाला प्रमुख दिवस है। भारत में 'शिक्षक दिवस' प्रत्येक वर्ष 5 सितम्बर को मनाया जाता है। शिक्षक का समाज में आदरणीय व सम्माननीय स्थान होता है। भारत के द्वितीय राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस और उनकी स्मृति के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला 'शिक्षक दिवस' एक पर्व की तरह है, जो शिक्षक समुदाय के मान-सम्मान को बढ़ाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार गुरु पूर्णिमा के दिन को 'गुरु दिवस' के रूप में स्वीकार किया गया है। विश्व के विभिन्न देश अलग-अलग तारीख़ों में 'शिक्षक दिवस' को मानते हैं। बहुत सारे कवियों, गद्यकारों ने कितने ही पन्ने गुरु की महिमा में रंग डाले हैं।
महत्व :---
गुरु गोविंद दोउ खड़े काके लागू पाय
बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय।
कबीरदास द्वारा लिखी गई उक्त पंक्तियाँ जीवन में गुरु के महत्त्व को वर्णित करने के लिए काफी हैं। भारत में प्राचीन समय से ही गुरु व शिक्षक परंपरा चली आ रही है। गुरुओं की महिमा का वृत्तांत ग्रंथों में भी मिलता है। जीवन में माता-पिता का स्थान कभी कोई नहीं ले सकता, क्योंकि वे ही हमें इस रंगीन खूबसूरत दुनिया में लाते हैं। उनका ऋण हम किसी भी रूप में उतार नहीं सकते, लेकिन जिस समाज में रहना है, उसके योग्य हमें केवल शिक्षक ही बनाते हैं। यद्यपि परिवार को बच्चे के प्रारंभिक विद्यालय का दर्जा दिया जाता है, लेकिन जीने का असली सलीका उसे शिक्षक ही सिखाता है। समाज के शिल्पकार कहे जाने वाले शिक्षकों का महत्त्व यहीं समाप्त नहीं होता, क्योंकि वह ना सिर्फ़ विद्यार्थी को सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं, बल्कि उसके सफल जीवन की नींव भी उन्हीं के हाथों द्वारा रखी जाती है।
शिक्षक का मान-सम्मान:---
गुरु, शिक्षक, आचार्य, अध्यापक या टीचर ये सभी शब्द एक ऐसे व्यक्ति को व्याख्यातित करते हैं, जो सभी को ज्ञान देता है, सिखाता है। इन्हीं शिक्षकों को मान-सम्मान,आदर तथा धन्यवाद देने के लिए एक दिन निर्धारित है, जो की 5 सितंबर को 'शिक्षक दिवस' के रूप में जाना जाता है। सिर्फ़ धन को देकर ही शिक्षा हासिल नहीं होती, बल्कि अपने गुरु के प्रति आदर, सम्मान और विश्वास, ज्ञानार्जन में बहुत सहायक होता है।'शिक्षक दिवस' कहने-सुनने में तो बहुत अच्छा प्रतीत होता है, लेकिन क्या हम इसके महत्व को समझते हैं। शिक्षक दिवस का मतलब साल में एक दिन अपने शिक्षक को भेंट में दिया गया एक गुलाब का फूल या ‍कोई भी उपहार नहीं है और यह शिक्षक दिवस मनाने का सही तरीका भी नहीं है। यदि शिक्षक दिवस का सही महत्त्व समझना है तो सर्वप्रथम हमेशा इस बात को ध्यान में रखें कि आप एक छात्र हैं और ‍उम्र में अपने शिक्षक से काफ़ी छोटे है। और फिर हमारे संस्कार भी तो यही सिखाते है कि हमें अपने से बड़ों का आदर करना चाहिए। अपने गुरु का आदर-सत्कार करना चाहिए। हमें अपने गुरु की बात को ध्यान से सुनना और समझना चाहिए। अगर अपने क्रोध, ईर्ष्या को त्याग कर अपने अंदर संयम के बीज बोएं तो निश्‍चित ही हमारा व्यवहार हमें बहुत ऊँचाइयों तक ले जाएगा और तभी हमारा 'शिक्षक दिवस' मनाने का महत्त्व भी सार्थक होगा।
प्रेरणा स्रोत:---
संत कबीर के शब्दों से भारतीय संस्कृति में गुरु के उच्च स्थान की झलक मिलती है। भारतीय बच्चे प्राचीन काल से ही आचार्य देवो भवः का बोध-वाक्य सुनकर ही बड़े होते हैं। माता-पिता के नाम के कुल की व्यवस्था तो सारे विश्व के मातृ या पितृ सत्तात्मक समाजों में चलती है, परन्तु गुरुकुल का विधान भारतीय संस्कृति की अनूठी विशेषता है। कच्चे घड़े की भांति स्कूल में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को जिस रूप में ढालो, वे ढल जाते हैं। वे स्कूल में जो सीखते हैं या जैसा उन्हें सिखाया जाता है, वे वैसा ही व्यवहार करते हैं। उनकी मानसिकता भी कुछ वैसी ही बन जाती है, जैसा वह अपने आस-पास होता देखते हैं। सफल जीवन के लिए शिक्षा बहुत उपयोगी है, जो गुरु द्वारा प्रदान की जाती है। गुरु का संबंध केवल शिक्षा से ही नहीं होता, बल्कि वह तो हर मोड़ पर अपने छात्र का हाथ थामने के लिए तैयार रहता है। उसे सही सुझाव देता है और जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है।
माली रूपी शिक्षक:---
शिक्षक उस माली के समान है, जो एक बगीचे को भिन्न-भिन्न रूप-रंग के फूलों से सजाता है। जो छात्रों को कांटों पर भी मुस्कुराकर चलने को प्रोत्साहित करता है। उन्हें जीने की वजह समझाता है। शिक्षक के लिए सभी छात्र समान होते हैं और वह सभी का कल्याण चाहता है। शिक्षक ही वह धुरी होता है, जो विद्यार्थी को सही-गलत व अच्छे-बुरे की पहचान करवाते हुए बच्चों की अंतर्निहित शक्तियों को विकसित करने की पृष्ठभूमि तैयार करता है। वह प्रेरणा की फुहारों से बालक रूपी मन को सींचकर उनकी नींव को मजबूत करता है तथा उसके सर्वांगीण विकास के लिए उनका मार्ग प्रशस्त करता है। किताबी ज्ञान के साथ नैतिक मूल्यों व संस्काररूपी शिक्षा के माध्यम से एक गुरु ही शिष्य में अच्छे चरित्र का निर्माण करता है। 
कुम्हार रूपी शिक्षक :---
जैसे एक कुम्हार मिटटी के घड़े को बाहर से ठोकता है और अन्दर हाथ रखकर उसे सहारा देता है वैसे ही शिक्षक शिष्य रूपी कच्चे घड़े को  एक कुम्हार की तरह डांट से प्यार से संवारता है 
             कई ऋषि-मुनियों ने अपने गुरुओं से तपस्या की शिक्षा को पाकर जीवन को सार्थक बनाया। एकलव्य ने द्रोणाचार्य को अपना मानस गुरु मानकर उनकी प्रतिमा को अपने सक्षम रख धनुर्विद्या सीखी। यह उदाहरण प्रत्येक शिष्य के लिए प्रेरणादायक है।
गुरु-शिष्य परंपरा कल और आज :---
गुरु-शिष्य परंपरा भारत की संस्कृति का एक अहम और पवित्र हिस्सा है, जिसके कई स्वर्णिम उदाहरण इतिहास में दर्ज हैं। लेकिन वर्तमान समय में कई ऐसे लोग भी हैं, जो अपने अनैतिक कारनामों और लालची स्वभाव के कारण इस परंपरा पर गहरा आघात कर रहे हैं। 'शिक्षा' जिसे अब एक व्यापार समझकर बेचा जाने लगा है, किसी भी बच्चे का एक मौलिक अधिकार है, लेकिन अपने लालच को शांत करने के लिए आज तमाम शिक्षक अपने ज्ञान की बोली लगाने लगे हैं। इतना ही नहीं वर्तमान हालात तो इससे भी बदतर हो गए हैं, क्योंकि शिक्षा की आड़ में कई शिक्षक अपने छात्रों का शारीरिक और मानसिक शोषण करने को अपना अधिकार ही मान बैठे हैं। किंतु कुछ ऐसे गुरु भी हैं, जिन्होंने हमेशा समाज के सामने एक अनुकरणीय उदाहरण पेश किया है। प्राय: सख्त और अक्खड़ स्वभाव वाले यह शिक्षक अंदर से बेहद कोमल और उदार होते हैं। हो सकता है कि किसी छात्र के जीवन में कभी ना कभी एक ऐसे गुरु या शिक्षक का आगमन हुआ हो, जिसने उसके जीवन की दिशा बदल दी या फिर जीवन जीने का सही ढंग सिखाया हो।
कुछ रोचक तथ्य:---
  • भारत में जहाँ 'शिक्षक दिवस' 5 सितंबर को मनाया जाता है, वहीं 'अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक दिवस' का आयोजन 5 अक्टूबर को होता है।रोचक तथ्य यह भी है कि शिक्षक दिवस दुनिया भर में मनाया जाता है, लेकिन सबने इसके लिए एक अलग दिन निर्धारित किया है। कुछ देशों में इस दिन अवकाश रहता है तो कहीं-कहीं यह कामकाजी दिन ही रहता है।
  • यूनेस्को ने 5 अक्टूबर को 'अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक दिवस' घोषित किया था। साल 1994 से ही इसे मनाया जा रहा है। शिक्षकों के प्रति सहयोग को बढ़ावा देने और भविष्य की पीढ़ियों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए शिक्षकों के महत्व के प्रति जागरूकता लाने के मकसद से इसकी शुरुआत की गई थी।
  • चीन में 1931 में 'नेशनल सेंट्रल यूनिवर्सिटी' में शिक्षक दिवस की शुरूआत की गई थी। चीन सरकार ने 1932 में इसे स्वीकृति दी। बाद में 1939 में कन्फ्यूशियस के जन्मदिवस, 27 अगस्त को शिक्षक दिवस घोषित किया गया, लेकिन 1951 में इस घोषणा को वापस ले लिया गया।साल 1985 में 10 सितम्बर को शिक्षक दिवस घोषित किया गया। अब चीन के ज्यादातर लोग फिर से चाहते हैं कि कन्फ्यूशियस का जन्म दिवस ही शिक्षक दिवस हो।
  • रूस में 1965 से 1994 तक अक्टूबर महीने के पहले रविवार के दिन शिक्षक दिवस मनाया जाता रहा। साल 1994 से विश्व शिक्षक दिवस 5 अक्टूबर को ही मनाया जाने लगा।
  • अमेरिका में मई के पहले पूर्ण सप्ताह के मंगलवार को शिक्षक दिवस घोषित किया गया है और वहाँ सप्ताह भर इसके आयोजन होते हैं।
  • थाइलैंड में हर साल 16 जनवरी को 'राष्ट्रीय शिक्षक दिवस' मनाया जाता है। यहाँ 21 नवंबर, 1956 को एक प्रस्ताव लाकर शिक्षक दिवस को स्वीकृति दी गई थी। पहला शिक्षक दिवस 1957 में मनाया गया था। इस दिन यहाँ स्कूलों में अवकाश रहता है।
  • ईरान में वहाँ के प्रोफेसर अयातुल्लाह मोर्तेजा मोतेहारी की हत्या के बाद उनकी याद में 2 मई को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। मोतेहारी की 2 मई, 1980 को हत्या कर दी गई थी।
  • तुर्की में 24 नवंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। वहाँ के पहले राष्ट्रपति कमाल अतातुर्क ने यह घोषणा की थी।
  • मलेशिया में शिक्षक दिवस 16 मई को मनाया जाता है, वहाँ इस खास दिन को 'हरि गुरु' कहते हैं।
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रविवार, 1 सितंबर 2013

प्रभु से गुज़ारिश


पुनि पुनि जन्म मरण
से मैं छुटकारा पाऊँ 

जिंदगानी अपनी 
तेरी शरण लगाऊँ
देह बदल के अपनी
ना फिर मैं आऊँ  

पुनि पुनि जन्म मरण
से मैं छुटकारा पाऊँ 

माया जाल में पुनः
ना अब खो जाऊँ 
भवसागर से हे हरी
अब यूँ तर जाऊँ  

पुनि पुनि जन्म मरण
से मैं छुटकारा पाऊँ 

शरणागत को हे प्रभु
अपनी शरण लगाओ
नैया मेरी अब तो 
प्रभु पार लगाओ

पुनि पुनि जन्म मरण
से मैं छुटकारा पाऊँ 
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